पिघलता बल्ब... जो महज़ रोशनी नहीं देता, बल्कि साफ हवा भी देता है. बोटिंग का लुत्फ देने के साथ-साथ पानी का कचरा साफ करने वाली बोट. पक्षियों का इंक्यूबेटर... और भी बहुत कुछ. स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के इंडस्ट्रियल डिजाइन में मास्टर्स कर रहे छात्रों ने इनोवेटिव आइडियाज पर ये चीजें बनाई हैं. दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में ऐसे 19 प्रोडक्ट की प्रदर्शनी चल रही है. शुक्रवार को इसका आखिरी दिन है. इन नायाब चीजों को देखने के लिए साइंस के छात्र और इंडस्ट्री के लोग पहुंच रहे हैं.
स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर इंडस्ट्रियल डिजाइन के चीफ पराग आनंद NDTV से बात करते हुए कहते हैं, "सारे क्रिएटिव आइडियाज छोटे से जगह में रहकर खत्म हो जाते हैं. हम इंडस्ट्री को दिखा सकते हैं कि इन बच्चों का टैलेंट आप इस्तेमाल कर सकते हैं. ये प्रोडक्ट्स नए आइडियाज हैं, जिनको हम आगे ले जा सकते हैं."
लगातार 12 घंटे जल सकता है ये बल्ब
पिघलते बल्ब 'Melting Everest' को हिमालय के रॉक सॉल्ट से बनाया गया है. ये एक लग्जरी लाइट है. इसे अलग-अलग तरह के स्टैंड में डेकोरेटिव लाइट के तौर पर लगाया जा सकता है. ये ठीक वैसे ही पिघलता है, जैसे हिमालय पिघल रहा है. ये बल्ब पिघलने पर हवा को प्यूरीफाई भी करता है. 8 किलो का ये रॉक सॉल्ट लगातार 12 घंटे जलाए रखने पर 1000 घंटा चल सकता है.
कचरा साफ करने वाली बोट
शिवानी कुमारी ने ऐसी बोट तैयार की है, जो बोटिंग के साथ ही पानी का कचरा साफ करने में मदद कर सकती है. इस प्रोडक्ट को 'Pure Waters' नाम दिया गया है. इसके व्हील पानी में घूमते जाएगा और कचरा इसमें इकट्ठा होता जाएगा.
शिवानी कुमारी बताती हैं, "इसकी साइकिल में एक बार में 50 किलो तक का कचरा होल्ड किया जा सकता है. इसके बाद इसमें से कचरा निकलना होगा. इस बोट में एल्गी, छोटे प्लांट, फ्लोटिंग गार्बेज भी इकट्ठा किया जा सकता है.
चिड़िया के बच्चों के लिए बना 'नेस्टो केयर'
चिड़िया के घोंसले से उसके बच्चे यानी बेबी वर्ड गिर न जाए, इसके लिए भी एक प्रोडक्ट बनाया गया है. इसे 'Nesto Care' का नाम दिया गया है. ये डिवाइस बेबी वर्ड की ठीक वैसे ही देखभाल करेगा जैसे उनकी मां घोंसले में करती हैं. इसे बनाने का आइडिया नागपुर के एक सेंटर से आया. यहां रोज़ाना एक ही सेंटर पर 5 से 6 चिड़ियों के छोटे बच्चे लाए जा रहे हैं.
टेराकोटा और लकड़ी का नायाब बंधन
इस प्रदर्शनी में आपको एक एक्वा बायो हार्वेस्ट भी देखने को मिलेगा, जो टेराकोटा और लकड़ी से बनी है. इसमें लकड़ियों के उन छोटे छोटे टुकड़ों का इस्तेमाल किया गया है, जो बड़ी लकड़ी काटने के वक्त बर्बाद हो जाते हैं. ये पूरी तरह से इको फ्रेंडली है.
एक्वा बायो हार्वेस्ट प्रोडक्ट मछली पालन करने वाले किसानों को ध्यान पर रखकर डिजाइन किया गया है.तालाब में वो मछली के भोजन के लिए एल्गी डालेंगे और उससे इस प्रोडक्ट की मदद से बायो ऑयल निकलेगा. यानी...आमदनी का एक नया जरिया. विवेक रामचंद्रन कहते हैं कि वो केरल से हैं जहां खूब मछली पालन किया जाता है. ये नए प्रोडक्ट की तकनीक उन मछली पालकों को बिना कुछ पैसा लगाते बायो ऑयल की की कीमत भी देगा.
कव्वाली सुनने के लिए अनोखी कुर्सी
एनवायरनमेंट प्रोडक्ट के अलावा यहां कव्वाली सुनने के लिए आरामदायक अनोखी कुर्सी भी है. गाने पर डिवाइस के अंदर थिरकने वाला सैंड भी मौजूद है. यहां जुंबा डांस के लिए स्प्रिंग वाइब्रेटर लगा मैट भी है. यहां एक ऐसा कूकर भी जो खाने का स्वाद बढ़ा दे, क्योंकि इसमें मिट्टी का इस्तेमाल है. इससे शहरों में रहने वालों को गांव का ज़ायका मिल सकता है.
आर्मी के लिए खास हेलमेट
इस प्रदर्शनी में आर्मी के लिए विशेष हेलमेट भी बनाया गया है. जिसमे अलग अलग भाषाओं के ट्रांसलेंशन की खूबी है तो दूसरी तरह बॉर्डर पर निगरानी करने वाले जवानों के लिए रफ्तार पर दौड़ने वाली गाड़ी, जिसको एक जवान या तो ड्राइव करे या फिर रिमोट से इसमें लगे कैमरे के जरिए निगरानी करे.
किचन टूल्स भी मौजूद
बच्चों को छोटी उम्र से किचन की एक समझ पैदा हो ऐसा सामग्री मापक भी है और प्यारा सा वॉश बेसिन भी. कम उम्र के बच्चों के लिया रॉक पेपर सीजर के तर्ज पर गेम भी हैं. बड़ों के लिए इसी गेम के जरिए ऑफिस में तरोताजा होने से लेकर एक्सरसाइज करने की खूबी भी यहां मिल जाएगी. विजुअली चैलेंज बच्चों के लिए ऐसा डिवाइस जो उनको माप, वज़न और ऑसिलेशन तक काउंट कर सकता है. वहीं, डिजिटल युग का ऐसा गेम जो फील डिजिटल का देता है पर मुमकिन है फिजिकल एक्टिविटी के जरिए ही.
बाइक राइड की तर्ज पर प्रोटोटाइप
इतना ही नहीं, बाइक राइड की तर्ज पर तैयार एक ऐसा प्रोटोटाइप जो पीछे आराम से बैठने की सुविधा देता है. मानो बाइक राइडर चला रहा हो और राइड लेने वाले को फील और कंफर्ट रिक्शा वाला लगे. यहां, बॉडी ड्रायर भी है, जो स्किन की बीमारी वालों के काम तो आ ही सकती है. इसकी खपत होटल इंडस्ट्री में भी मुमकिन है. इसके ज़रिए नहाया भी जा सकता है और बिना टॉवेल के बॉडी भी सुखाई जा सकती है.
स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के इंडस्ट्रियल डिजाइन की प्रोफेसर अदिति सिंह कहती हैं कि इससे बच्चों का मनोबल बढ़ता है. उनके तैयार किए प्रोडक्ट तो प्रदर्शनी में लोग देखते ही हैं, इंडस्ट्री भी प्रोडक्ट पसंद आ जाए तो करार करती है. अच्छे खासे वक्त की ये मेहनत है जिसमें दिल और दिमाग लगाकर इन सबने प्रोडक्ट को अंजाम तक पहुंचाया है.
बेशक ये प्रोजेक्ट और प्रोडक्ट इन छात्रों के कोर्स का हिस्सा है. लेकिन ये हमारे भविष्य के लिए भी उतना ही अहम है. इस प्रदर्शनी में आप कल के भारत की तस्वीर आज ही देख सकते हैं.
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