दरअसल 26 अक्टूबर को सुबह करीब पांच बजे एसपीए कैंपस में गर्ल्स हॉस्टल के एक कमरे में आग लग गई थी. इस आग में पूरा कमरा जलकर खाक हो गया. गनीमत यह रही कि जब आग लगी तब रूम में रहने वाली छात्राएं बाथरूम में थीं और बाथरूम कमरे के बाहर था. आग देखते ही छात्राएं हॉस्टल छोड़कर नीचे की तरफ भागने लगीं. इन लड़कियां की मदद के लिए गार्ड तो था, लेकिन आग कैसे बुझाई जाए, ये गार्ड को पता नहीं था. लड़कियों ने कई बार हॉस्टल के वार्डन को फोन किया, लेकिन वार्डन ने फोन नहीं उठाया. छात्राओं ने फायर ब्रिगेड को फोन किया और दो घंटे के बाद आग पर काबू पाया गया. छात्राओं का गुस्सा चरम पर था कि हॉस्टल में आग लग जाने के बाद प्रशासन इतनी लापरवाही कैसे कर सकता है. वे प्लानिंग ब्लॉक के सामने धरने पर बैठ गईं. न क्लास जाने के लिए तैयार थीं, न हॉस्टल. कॉलेज के दूसरे छात्रों ने भी उनका साथ दिया. प्रशासन को लगा कि शाम तक लड़कियां प्रोटेस्ट खत्म कर देंगी और हॉस्टल वापस चली जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. रात भर लड़कियां वहीं बैठी रहीं. नींद आई तो तकिया और बेडशीट लेकर क्लास रूम में सोने चली गईं.
जब किसी हॉस्टल की छात्राएं अपने हॉस्टल छोड़कर रात में क्लास रूम में सोती हैं तो यह कई सवाल खड़ा करता है. इन लड़कियों ने बताया कि पहले भी कई बार ऐसे शार्टसर्किट हुए थे, लेकिन आग लगने की घटना नहीं हुई थी. हॉस्टल में कई और समस्याएं भी हैं. एक लड़की ने बताई कि सांप, चूहे, बिल्ली जैसे जानवरों का हॉस्टल के अंदर घुसना आम बात है. कई बार ऐसा भी होता है कि जब छात्राएं क्लास खत्म कर हॉस्टल आती हैं तो बंदर बेड के ऊपर सोते हुए नजर आते हैं. सबसे बड़ी बात यह भी है कि पिछले कई सालों से हॉस्टल की छात्राएं पानी खरीदकर पी रहे हैं, क्योंकि यहां जो पानी है, वह पीने लायक नहीं है.
इतनी सारी समस्याओं से जूझ रही छात्राएं पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थीं. छात्राओं का प्रदर्शन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था. प्रशासन को लगा कि सब ठीक नहीं है. इसके बाद प्रशासन और स्टूडेंट काउंसिल के बीच कई राउंड की बातचीत हुई, लेकिन यह बेनतीजा साबित हुई. प्रोटेस्ट जारी रहा और प्रशासन पर भी दबाव बढ़ता गया. अब प्रशासन ने इन छात्राओं को धमकाने की कोशिश की. इनके घर लेटर भेजे गए, बावजूद इसके ये छात्राएं टस से मस नहीं हुईं.
30 अक्टूबर को स्टूडेंट काउंसिल और प्रशासन के बीच पांच घंटे की बैठक हुई. प्रशासन इन छात्राओं की लगभग सभी मांगें मानने को तैयार हो गया. यह छात्राओं के लिए बहुत बड़ी जीत थी. रात को करीब दो बजे छात्राओं ने अपना प्रोटेस्ट खत्म कर दिया. इस पांच दिन के प्रोटेस्ट ने प्रशासन को हिलाकर रख दिया. अगले दिन जब मैंने फोन किया तो कई छात्राओं का नंबर बंद मिला. कुछ घंटे के बाद मेरे पास फोन आया. एक छात्रा ने बताया कि प्रोटेस्ट खत्म हो जाने के बाद छात्राएं सो रही हैं, क्योंकि पिछले पांच दिनों से वे सही ढंग से सो नहीं पाई थी. अगर प्रशासन अपने वादे पर कायम रहता है तो ये छात्राएं रोज शांति से सो सकेंगी. यह 'प्रोटेस्ट एट मिडनाइट' इनके लिए 'फ्रीडम एट मिडनाइट' साबित हुआ.
सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...
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