परिचित होने से इतना तो मालूम था, लेकिन इंसान अपने परिचितों के काम को गंभीरता से नहीं लेता है। मैं ऐसा ही था लेकिन हैबिटाट सेंटर में शहर की युवा पीढ़ी को इन दोनों के कामों में दिलचस्पी लेते देख मुझे अंदाजा हुआ ये दोनों वाकई थोड़ा गंभीर काम कर रहे हैं।
सुशील हमारे पेशे में ही हैं, कॉरपारेट हाउस के पत्रकार हैं। कामकाजी जिंदगी के तनाव और भागदौड़ के बीच वे कैसे वक्त निकालते हैं, दफ्तरों में थका देने वाले माहौल और दबाव के बीच वे कला की दुनिया में भागदौड़ करने की ऊर्जा कैसे निकाल लेते हैं, इस पर कभी तसल्ली से नहीं सोच पाया, लेकिन हैबिटाट सेंटर में सुशील से मिलकर लगा नहीं कि वे दफ्तर में अपना काम पूरा करके लौटे हैं और उत्साह से हर किसी को अपने सफ़र के बारे में बता रहे हैं।
मीनाक्षी की कला में एक मधुबनी पेंटिंग का रूझान दिखता है। ये भी ठीक है कि बतौर कलाकार स्थापित होने में अभी उन्हें वक्त लगेगा। लेकिन एक बात उन्हें दूसरों से ख़ासा जुदा करती है। वह है कि अब तक संपन्न घरों तक सिमटे कला की दुनिया को आम लोगों के बीच ले जाने का साहस कर रही हैं।
वह अपनी रंगों की पेटी और ब्रश लेकर बिहार झारखंड के खंडहर जैसी इमारत में चलने वाले स्कूली बच्चों के बीच पहुंच सकती हैं या मुजफ्फरपुर के सेक्स वर्करों के बच्चों के बीच पहुंच सकती हैं। गोवा और चेन्नई में किसी संपन्न अंकल-आंटी की घर की दीवारों को कलाकृति में बदल सकती हैं। मानो आप बताओ कि कहां रंगना है और कौन कौन पेंटिंग करना नहीं जानता है, ये पूछ रही हों और आपने बताया नहीं कि वे मिशन में लग जाती हैं। वे कलाकृति बनाने और उसे बातों बातों में सीखाने के हुनर में परफैक्ट होती जा रही हैं।
उनका अब तक का सफ़र इतना यागदार नहीं होता, अगर सुशील साथ नहीं होते। सुशील मीनाक्षी के साथ अपनी बुलेट के साथ देश भर के 13 राज्यों में जा चुके हैं। इन दोनों की तरह की इनकी हरी-भरी बुलेट भी मशहूर हो रही है। सुशील की कला में उतनी दिलचस्पी नहीं थी लेकिन मीनाक्षी की कला के लिए उन्होंने ना केवल वक्त निकाला बल्कि उनके मिशन में बराबर के साझेदार बन गए हैं।
ये मिशन है कला को हर किसी तक पहुंचाने का। मीनाक्षी का अपना एक ब्लॉग है जिसमें सुशील भी अपने अनुभव लिखते रहते हैं। हम जिस पुरुषवादी समाज में रहते हैं, उसमें अपने जीवनसाथी और महिला पार्टनर के लिए इस तरह का प्रयास बहुत कम लोग कर पाते हैं।
मीनाक्षी और सुशील के लिए अभी सफ़र शुरू हुआ है, उनकी उपलब्धियों का ग्राफ बढ़ेगा लेकिन मुझे इन दोनों की कोशिश एक मायने में समाज में महिलाओं को बराबरी का हक देने और कला के गरीब गुरबों तक पहुंचाने की कोशिश ज्यादा दिखती है। दोनों के सफर को आम लोग भी गंभीरता से लेते हैं जिसके चलते अब तक उनके पास कलात्मक गिफ्टों का भी संग्रह जमा होता जा रहा है, जिसका प्रदर्शन भी उन्होंने हैबिटैट सेंटर में किया।
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