India Success story : आज़ादी के बाद इन 78 साल के सफर में भारत ने कई बड़ी लकीरें खींची हैं ज़मीन से लेकर आसमान तक कई कीर्तिमान बनाए हैं. विकास यात्रा के इस क्रम में भारत अब उस रास्ते पर है, जहां दुनिया भारत की ओर देख रही है. अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम इसी की मुनादी कर रहे हैं. चंद्रयान, मंगलयान के बाद अब गगनयान की तरफ तेज़ी से भारत के मजबूत कदम बढ़ रहे हैं. कभी विज्ञान की रवायतों में, कभी इंसान की रुमानी खयालों में बसने वाला चांद दूर से जितना खूबसूरत लगता है, वो नजदीक से कैसा है, ये जानने की दिलचस्पी सदियों से जमाने को रहा. तभी तो भारत ने 2023 में अपना चंद्रयान चंद्रमा पर पहुंचा दिया, लेकिन चांद को लेकर हर हिंदुस्तानी की आंखों में बसने वाला सपना तो काफी बड़ा है. चांद पर किसी हिंदुस्तानी के कदमों के निशान का सपना कब अपना होगा?
जानें 2035 तक क्या होगा?
अब इस दिशा में भी भारत विचार कर रहा है. 1961 में सोवियत संघ के वोस्तोक 1 ने अंतरिक्ष में पहला मानवयुक्त मिशन शुरू किया था. 1984 में तो अंतरिक्ष में पहले भारतीय के रूप में विंग कमांडर राकेश शर्मा पहुंचे थे. जब अंतरिक्ष से उन्होंने दुनिया को देखा तो उनके मुंह से इतना ही निकला- 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा'. 1984 में अंतरिक्ष में एक भारतीय के पहुंचने से शुरू हुआ सफर 2040 तक चांद पर अंगद की तरह पांव जमा देने तक पहुंच सकता है. भारत का लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मनुष्यों को उतारना है. चांद पर भारत के कदम तभी पड़ेंगे, जब अंतरिक्ष में भारत का अपना स्टेशन हो. यूं तो अंतरिक्ष की सच्चाई से भारत काफी पहले ही वाकिफ हो चुका था, लेकिन दूसरे के अंतरिक्ष स्टेशन की मदद से. 1984 में, विंग कमांडर राकेश शर्मा सैल्यूट-7 स्टेशन पर पहुंचे थे, जो भारत का नहीं था. इसी साल प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन यानी बीएएस के प्रस्ताव को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाया है. अंतरिक्ष स्टेशन का लक्ष्य पृथ्वी से 400 किमी ऊपर परिक्रमा करना और 2035 तक बीएएस को स्थापित करने का है.
गगनयान की तैयारी शुरू
उम्मीदों की ये कड़ी गगनयान मिशन तक जाती है. इसके लिए इस साल के अंत तक एक परीक्षण उड़ान शुरू होने वाली है. इसमें तीन सदस्यीय दल को पृथ्वी की कक्षा में तीन दिनों की अवधि के लिए 400 किमी की ऊंचाई तक उड़ान भरना है. इस गगनयान मिशन में मानव सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इंजीनियरिंग सिस्टम को दुरुस्त किया जा रहा है. साथ ही जीएसएलवी एमके III, जिसे एलवीएम-3 भी कहा जाता है, उसका उपयोग गगनयान को लॉन्च करने के लिए किया जाएगा. इसके लिए चार पायलटों ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला में से केवल तीन ही मिशन के तहत अंतरिक्ष में जाएंगे. मिशन की अनुमानित लागत करीब 10,000 करोड़ रुपये है.
गरीबी मुक्त होगा भारत
जब देश की फिजा में आजादी घुली है तो उस आजादी के साथ उम्मीदें भी लहलहा रही हैं. अपनी विकास यात्रा में भारत चौमुखी लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ रहा है. हम विकसित भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं और 2047 तक हमने इस संकल्प की सिद्धि का लक्ष्य रखा है. विकसित भारत मतलब ऐसा भारत जो गरीबी से मुक्त होगा. जहां कोई अशिक्षित नहीं होगा. बेहतरीन स्वस्थ्य सेवाओं का इतना विस्तार होगा कि वो सबको सुलभ होंगी. हर हाथ को रोज़गार मिलेगा. उम्मीदों का आसमान बड़ा है और भारत पंख फैलाकर उड़ने को तैयार है. आजादी का असली आनंद तभी है जब हर पेट में भोजन हो, हर बदन पर कपड़ा हो और हर सिर पर एक छत हो. इसीलिए 15 अगस्त के जश्न में देश इस उम्मीद भरा है कि जब 2047 में आजादी के 100 साल पूरे होंगे तो भारत गरीबी मुक्त होगा.
शिक्षा-स्वास्थ्य पर काम की जरूरत
गरीबी से ये लड़ाई तब तक बेमानी है जब तक हर हिंदुस्तानी के लिए बेहतरीन शिक्षा की गारंटी ना मिले. दरअसल, शिक्षा ही गरीबी मिटाने की सबसे बड़ी गारंटी है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ उसी दिशा में बढ़ा एक मजबूत कदम है. सबका शिक्षित होना क्यों जरूरी है? इसको आप विश्व साक्षरता शिखर सम्मेलन की रिपोर्ट से समझ सकते हैं. उसके मुताबिक निरक्षता से ही भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना करीब 53 बिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है.
आजादी की खुली हवा में एक उम्मीद सबको बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधा को लेकर भी रहती है. भारत सरकार ने छह साल पहले आयुष्मान भारत योजना शुरू की थी, जिसमें 5 लाख रुपये तक निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा दी जाती है. इस योजना के तहत 34 करोड़ से ज्यादा आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके हैं. आजादी के 77 साल बाद भी भारत में 16.6 फीसदी लोग कुपोषित हैं. हर हिंदुस्तानी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए इस बार बजट में 90 हजार 958 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
अर्थव्यवस्था और रोजगार पर क्या?
हर हाथ को रोजगार देना आजादी की उम्मीदों में अहम है.भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत की कामकाजी आबादी 2011 के 2036 में 65 प्रतिशत फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है. जाहिर है कि इन हाथों को मिलने वाला काम ही आजादी के एहसास को मीठा बनाएगा. भारत आज दुनिया की पाचंवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, लेकिन ये मंज़िल नहीं है. हमारी मंजिल तो दुनिया की सबसे बड़ी और ताकतवर अर्थव्यवस्था बनना है और इस दिशा में सधे कदमों के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं. उम्मीद है कि 2030 तक हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन जाएंगे और हमारी अर्थव्यस्था का साइज़ 7 ट्रिलियन डॉलर तक हो जाएगा. इस विकास क्रांति का हिस्सा केवल शहर ही नहीं, हमारे गांव भी होंगे. देश में डिजिटल क्रांति का विस्तार हमारी विकास यात्रा की अहम कड़ी साबित होगा.
2047 तक ऐसा होगा भारत
दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकतों से हाथ मिलाना भारत का लक्ष्य नहीं है बल्कि भारत का लक्ष्य खुद ही सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन जाना है. इस दिशा में दो स्तरों पर काम हो रहा है. पहले चरण में 2030 तक भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की उम्मीद है. लगातार आर्थिक सुधारों से भारत की इकोनॉमी 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है लेकिन ये एक पड़ाव भर है, मंजिल नहीं. असली मंजिल तो दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का है. इस दिशा में बढ़ते कदम को तेजी से होता शहरीकरण भी दर्शाता है. संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2028 तक दिल्ली के इस धरती पर सबसे अधिक आबादी वाला शहर बनने का अनुमान है. वही विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2036 तक, इसके कस्बे और शहर 600 मिलियन लोगों या 40 प्रतिशत आबादी का घर होंगे. नीति आयोग के सीईओ परमेश्वरन अय्यर के मुताबिक 2047 तक भारत की 50 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहेगी. आबादी का शहरों की तरफ रुख करना डिजिटल इंडिया में नई क्रांति की भी उम्मीद जगाता है.यानी भारत की अर्थव्यवस्था को रफ्तार डिजिटल क्रांति और जनसंख्या के सही इस्तेमाल से मिल सकती है.
सैन्य ताकत बनने की ओर बढ़े
विकसित भारत के लिए सुरक्षित भारत पहली शर्त है और सुरक्षा के लिए ज़रूरी है सैन्य ताकत. ऐसी सैन्य ताकत जो दूसरों पर निर्भर ना हो. लिहाज़ा रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत तेज़ी से आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. इसका एक सुखद पहलू ये भी है कि भारत आज 85 देशों अपने रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रहा है. मसला केवल देश की सुरक्षा का नहीं है. देश की सीमाओं के भीतर महिलाओं की सुरक्षा भी बहुत अहम है. कभी भारत की सेना विदेशी मदद पर निर्भर करती थी लेकिन अब अपने पैरों पर खड़ा होने का कौशल इसे आ गया है. 2022-23 में भारत का रक्षा उत्पादन पहली बार एक लाख करोड़ रुपये की सीमा को पार कर गया. आलम ये है कि अब भारत 85 देशों को डिफेंस प्रोडक्ट निर्यात करता है, लेकिन इतना ही काफी नहीं है. भारत को उम्मीद है कि जल्द ही वो जश्ने आजादी आएगी, जब भारत ना सिर्फ सैनिक उत्पादों में आत्मनिर्भर होगा, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी ताकत भी हो सकता है.
बेटियों की सुरक्षा जरूरी
एक तरफ सेना का बल देश को मजबूत बनाता है तो दूसरी तरफ महिलाओं की ताकत से देश को ताकत मिलती है. उस महिला शक्ति के लिए जरूरी है कि उनकी सम्मान और सुरक्षा की व्यवस्था मुकम्मल हो. महिला आयोग के मुताबिक 2023 में महिला से बलात्कार और बलात्कार की कोशिशों की 1539 घटनाएं हुईं. जबकि 2024 में 12 अगस्त तक ऐसी 900 घटनाएं हो चुकी हैं. कोलकाता में एक महिला डॉक्टर से बलात्कार और हत्या की घटनाओं से आप समझ सकते हैं कि आजादी की सबसे बड़ी उम्मीदों में एक महिलाओं की सुरक्षा क्यों है? हिंदुस्तान की बेटियां ऐसी हैं कि जहां मौका मिले, वहां कामयाबी का झंडा गाड़ देती हैं. खेलों में भी उनके हुनर का सिक्का चलता है.
खेल से लेकर ग्लोबल वार्मिंग
भारत अपनी आजादी के मौके पर जहां खेलों में महिला भागीदारी और बेहतर होते देखना चाहता है. युवा यह टकटकी लगाए देख रहे हैं कि कब भारत में ओलंपिक होगा? पेरिस ओलंपिक में भारत ने करीब 470 करोड़ रुपये खर्च किये और उसे कुल 6 मेडल मिले, जबकि 6 एथलीट चौथे नंबर पर रहे. 2032 तक तो ओलंपिक की जगह तय हो चुकी है, लेकिन उम्मीद है कि भारत 2036 की ओलंपिक की मेजबानी के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकता है. देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत का संकल्प लिया था. उसका लक्ष्य 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना था. इसके तहत 14 मार्च, 2024 तक करीब 12 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि वो दिन भी जल्द आएगा, जब हर घर में शौचालय होगा. वही स्वच्छता का एक सिरा साफ सुथरी हवाओं से भी जुड़ता है. ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने के लिए पूरे भौगोलिक क्षेत्र के कम से कम 33 फीसदी हिस्से में जंगल जरूर होना चाहिए. अभी भारत के पास करीब 22 फीसदी क्षेत्र में जंगल है. जाहिर है कि अभी पचास फीसदी और जंगल की उम्मीद देश कर रहा है.
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