- भारत सरकार ने बच्चों और किशोरों के लिए देश का पहला मेडिकल रेफरेंस डेटाबेस तैयार करने का निर्णय लिया है
- आईसीएमआर देश के छह भौगोलिक हिस्सों से नवजात से 18 वर्ष तक के बच्चों के नमूने एकत्र करेगा
- कम से कम पच्चीस प्रतिशत नमूने ग्रामीण इलाकों से लिए जाएंगे ताकि पूरे देश की स्वास्थ्य स्थिति प्रतिबिंबित हो
भारत अब बच्चों और किशोरों को लेकर अपना खुद का मेडिकल रेफरेंस डेटाबेस तैयार करने जा रहा है. केंद्र सरकार के आदेश पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने इसको लेकर तैयारी शुरू कर दी है. इसके तहत देशभर के बच्चों से रक्त, हार्मोन, विटामिन और दूसरे मेडिकल टेस्ट के नमूने लेकर एक नया हेल्थ डेटाबेस तैयार किया जाएगा.
फैसला से क्या होगा लाभ?
दरअसल, अभी तक भारत की प्रयोगशालाओं में जो जांच के मानक देखे जाते थे, वे ज्यादातर अमेरिका या यूरोप की जनसंख्या पर आधारित हैं. लेकिन भारत के बच्चों की उम्र, खानपान, शरीर की बनावट और वातावरण विदेशी बच्चों से काफी अलग होता है. यही वजह है कि कई बार बच्चों की रिपोर्ट को गलत तरीके से सामान्य या असामान्य बताया जाता है, जिससे इलाज और दवाएं भी गलत पड़ सकती हैं. ऐसे में केंद्र सरकार ने बच्चों और किशोरों के लिए अपना खुद का मानक बनाने का फैसला किया है.
ग्रामीण क्षेत्रों से लिए जाएंगे 25% नमूने
आईसीएमआर के अनुसार, देश के 6 अलग-अलग हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, मध्य और उत्तर-पूर्व से डाटा लिया जाएगा. हर हिस्से से नवजात शिशु से लेकर 18 साल के बच्चों तक के नमूने लिए जाएंगे. इन नमूनों के आधार पर आयु और लिंग के अनुसार अलग-अलग रेफरेंस वैल्यू तय की जाएगी, जिससे भविष्य में भारत का अपना बच्चों का स्वास्थ्य मानक तैयार हो सके. इसकी खास बात यह है कि कम से कम 25% सैंपल ग्रामीण इलाकों से लिए जाएंगे, ताकि पूरे देश की सही तस्वीर मिल सके.
आईसीएमआर ने देश के अन्य रिसर्च इंस्टिट्यूट से इसमें साथ देने के लिए आवेदन भी मांगे है जिसमें कहा गया है कि ब्लड प्रोफाइल, लिवर फंक्शन टेस्ट, किडनी फंक्शन, थायरॉयड, लिपिड, इलेक्ट्रोलाइट, हार्मोन स्तर, विटामिन्स और मिनरल्स से जुड़े करीब 100 से अधिक जैव-रासायनिक व हेमेटोलॉजिकल मानक निर्धारित किए जाएगें. इन संपलों का विश्लेषण इलेक्ट्रिकल इम्पीडेंस, फ्लो साइटोमेट्री, केमिकल एनालिसिस जैसी आधुनिक तकनीकों से किया जाएगा.
माता-पिता की लिखित मंजूरी लेना जरूरी
आईसीएमआर के मुताबिक, केवल उन्हीं बच्चों को शोध में शामिल किया जाएगा, जिनके माता-पिता लिखित रूप से मंजूरी देंगे. इसके अलावा बच्चों से भी उनकी सहमति ली जाएगी. रिसर्च इंस्टिट्यूट ने कहा कि यह एक बहुकेन्द्रीय आबादी आधारित क्रॉस-सेक्शनल शोध होगा. इसमें देशभर की मान्यता प्राप्त एनएबीएल लैबों को शामिल किया जाएगा, जो ब्लड व अन्य जैविक नमूनों का विश्लेषण करेंगी. सभी केंद्र को स्वस्थ बच्चों की पहचान करने के साथ साथ नमूनों का संग्रह और परिवहन के अलावा विश्लेषण और डाटा सत्यापन एकीकृत मानक प्रोटोकॉल (SOP) के तहत करनी होगा.
आईसीएमआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा पहली बार होगा जब भारत अपने बच्चों के लिए खुद के मेडिकल मानक तैयार करेगा. इससे भविष्य में बच्चों की जांच, इलाज और दवाएं ज्यादा सही तरीके से की जा सकेंगी. यह कदम भारत के बच्चों की सेहत के लिए एक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक रूप से बहुत जरूरी पहल है, जो आने वाले समय में स्वास्थ्य नीति निर्धारण में भी आधार बनेगा.
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