प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
सूखे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार झेल चुकी सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। सोमवार को राष्ट्रीय खरीफ सम्मेलन में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा "दस राज्यों में भयंकर सूखा है। स्थिति बहुत खराब है। पीने का पानी लोगों को नहीं मिल पा रहा है। लेकिन जो चित्र बन रहा है उससे लगता है कि 10 राज्यों में सर्वनाश हो गया है।" जाहिर है कृषि मंत्री राधामोहन सिंह तनाव में हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल हो गया है।
बीड़ के ओसला इलाके में टोकन से रोज प्रति व्यक्ति एक लीटर पानी
मुश्किल यह है कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, जलाशय सूखते जा रहे हैं और सूखा ग्रस्त इलाकों में हालात खराब होते जा रहे हैं। महाराष्ट्र के बीड़ जिले के सूखाग्रस्त असोला इलाके में पानी का संकट बड़ा होता जा रहा है। पीने के पानी के बंदोबस्त को लेकर महिलाओं और बच्चों को न सिर्फ कड़ी मशक्कत करनी पड़ी रही है बल्कि कई बार खतरों का सामना भी करना पड़ता है। इस गांव में प्रति व्यक्ति एक ही लीटर पानी मिल पाता है और इसके लिए भी परिवारों को टोकन लेना पड़ता है।
मॉनसून की दिशा और दशा का ऐलान मंगलवार को
जलाशय तालाब सरीखे स्रोत सूख चुके हैं। ज्यादातर बोरवेल भी अब किसी काम के नहीं रहे। कुओं में भी पानी का स्तर घटता जा रहा है और पाताल जा रहे पानी को निकालने में हर रस्सी छोटी पड़ती जा रही है। दरअसल देश में सूखे का संकट बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जा रही है, जलाशय और तालाब सूखते जा रहे हैं। मुश्किल यह है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अब भी करीब सात हफ्ते दूर है। यानी आने वाले दिनों में पानी का संकट और बड़ा होता जाएगा। अब मंगलवार को मौसम विभाग दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की दिशा और दशा को लेकर एक अहम ऐलान करने वाला है। अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि पिछले दो साल से कमजोर मॉनसून झेल रहे किसानों को इस बार क्या राहत मिल पाएगी?
सूखा पीड़ितों को राहत में देरी
सूखे पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार झेल रही भारत सरकार ने सूखा-प्रभावित इलाकों में राहत पहुंचाने में देरी की है। देश के चार राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में गृह मंत्रालय द्वारा आवंटित राशि का सिर्फ 7.9 फीसदी ही आठ मार्च तक पहुंच पाया था। दस राज्यों में सूखे के आधिकारिक ऐलान के बावजूद लोगों को राहत कब तक मिलेगी? सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह सवाल केंद्र और राज्यों से पूछा है।
प्रभावित राज्यों को दी गई अल्प राशि
केंद्र सरकार के अपने आंकड़े बता रहे हैं कि अभी दिल्ली से ही राहत नहीं चली है। सूखा ग्रस्त राज्यों को जो फंड देने की बात कही गई थी, उसका बड़ा मामूली हिस्सा ही राज्यों को मिला है। मसलन महाराष्ट्र के लिए 2548 करोड़ से ऊपर रकम दी जानी है, लेकिन 8 मार्च तक बस 637 करोड़ मिले। यानी सिर्फ़ 25 फीसदी। छत्तीसगढ़ को 835 करोड़ मिलने हैं, लेकिन सिर्फ 209 करोड़ रुपये मिले, यानी करीब 25 प्रतिशत। बाकी राज्यों का हाल और बुरा है। ओडिशा को 8 फीसदी से कम का फंड मिला है, 600 करोड़ में से सिर्फ 47 करोड़। तेलंगाना को भी 712 करोड़ में से सिर्फ 56 करोड़ मिले हैं। यह भी 8 फीसदी से कम है। यूपी जैसे बड़े राज्य को 934 करोड़ मिलने हैं, मिले हैं 74 करोड़ के आसपास, यानी 8 फीसदी से कम। मध्य प्रदेश को 1875 करोड़ का वादा है, मिला है 148 करोड़, यानी फिर वही कहानी- 7.9 प्रतिशत।
समय रहते सहायता में औपचारिकताएं बनीं बाधक
एनडीटीवी से बातचीत में कृषि राज्यमंत्री संजीव बालयान ने माना कि देरी हुई है। उन्होंने कहा, "यह सही है कि कागजी प्रक्रिया में समय नहीं लगना चाहिए था। फार्मेल्टीज पूरी करने में ज्यादा समय लग जाता है। पुरानी व्यवस्था को बदलने की ज़रूरत है।" कृषि राज्य मंत्री का कहना है कि औपचारिकताएं पूरी हो रही हैं। सवाल यही है कि जब लोगों को बिल्कुल फौरन राहत की ज़रूरत है तो इतनी देरी क्यों?
बीड़ के ओसला इलाके में टोकन से रोज प्रति व्यक्ति एक लीटर पानी
मुश्किल यह है कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, जलाशय सूखते जा रहे हैं और सूखा ग्रस्त इलाकों में हालात खराब होते जा रहे हैं। महाराष्ट्र के बीड़ जिले के सूखाग्रस्त असोला इलाके में पानी का संकट बड़ा होता जा रहा है। पीने के पानी के बंदोबस्त को लेकर महिलाओं और बच्चों को न सिर्फ कड़ी मशक्कत करनी पड़ी रही है बल्कि कई बार खतरों का सामना भी करना पड़ता है। इस गांव में प्रति व्यक्ति एक ही लीटर पानी मिल पाता है और इसके लिए भी परिवारों को टोकन लेना पड़ता है।
मॉनसून की दिशा और दशा का ऐलान मंगलवार को
जलाशय तालाब सरीखे स्रोत सूख चुके हैं। ज्यादातर बोरवेल भी अब किसी काम के नहीं रहे। कुओं में भी पानी का स्तर घटता जा रहा है और पाताल जा रहे पानी को निकालने में हर रस्सी छोटी पड़ती जा रही है। दरअसल देश में सूखे का संकट बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जा रही है, जलाशय और तालाब सूखते जा रहे हैं। मुश्किल यह है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अब भी करीब सात हफ्ते दूर है। यानी आने वाले दिनों में पानी का संकट और बड़ा होता जाएगा। अब मंगलवार को मौसम विभाग दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की दिशा और दशा को लेकर एक अहम ऐलान करने वाला है। अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि पिछले दो साल से कमजोर मॉनसून झेल रहे किसानों को इस बार क्या राहत मिल पाएगी?
सूखा पीड़ितों को राहत में देरी
सूखे पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार झेल रही भारत सरकार ने सूखा-प्रभावित इलाकों में राहत पहुंचाने में देरी की है। देश के चार राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में गृह मंत्रालय द्वारा आवंटित राशि का सिर्फ 7.9 फीसदी ही आठ मार्च तक पहुंच पाया था। दस राज्यों में सूखे के आधिकारिक ऐलान के बावजूद लोगों को राहत कब तक मिलेगी? सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह सवाल केंद्र और राज्यों से पूछा है।
प्रभावित राज्यों को दी गई अल्प राशि
केंद्र सरकार के अपने आंकड़े बता रहे हैं कि अभी दिल्ली से ही राहत नहीं चली है। सूखा ग्रस्त राज्यों को जो फंड देने की बात कही गई थी, उसका बड़ा मामूली हिस्सा ही राज्यों को मिला है। मसलन महाराष्ट्र के लिए 2548 करोड़ से ऊपर रकम दी जानी है, लेकिन 8 मार्च तक बस 637 करोड़ मिले। यानी सिर्फ़ 25 फीसदी। छत्तीसगढ़ को 835 करोड़ मिलने हैं, लेकिन सिर्फ 209 करोड़ रुपये मिले, यानी करीब 25 प्रतिशत। बाकी राज्यों का हाल और बुरा है। ओडिशा को 8 फीसदी से कम का फंड मिला है, 600 करोड़ में से सिर्फ 47 करोड़। तेलंगाना को भी 712 करोड़ में से सिर्फ 56 करोड़ मिले हैं। यह भी 8 फीसदी से कम है। यूपी जैसे बड़े राज्य को 934 करोड़ मिलने हैं, मिले हैं 74 करोड़ के आसपास, यानी 8 फीसदी से कम। मध्य प्रदेश को 1875 करोड़ का वादा है, मिला है 148 करोड़, यानी फिर वही कहानी- 7.9 प्रतिशत।
समय रहते सहायता में औपचारिकताएं बनीं बाधक
एनडीटीवी से बातचीत में कृषि राज्यमंत्री संजीव बालयान ने माना कि देरी हुई है। उन्होंने कहा, "यह सही है कि कागजी प्रक्रिया में समय नहीं लगना चाहिए था। फार्मेल्टीज पूरी करने में ज्यादा समय लग जाता है। पुरानी व्यवस्था को बदलने की ज़रूरत है।" कृषि राज्य मंत्री का कहना है कि औपचारिकताएं पूरी हो रही हैं। सवाल यही है कि जब लोगों को बिल्कुल फौरन राहत की ज़रूरत है तो इतनी देरी क्यों?
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