नई दिल्ली:
संसद में सरकार और विपक्ष के बीच 'शब्दों के खेल' को जन्म देने वाले आधार विधेयक को लेकर बुधवार को उच्च सदन राज्यसभा में जोरदार बहस हुई। दरअसल, गुरुवार से ही बजट सत्र के बीच होने वाला अवकाश शुरू हो रहा है, और इसके बाद बजट सत्र का शेष हिस्सा अप्रैल माह में होगा।
पिछले सप्ताह लोकसभा में 'विवादित' तरीके से इस बिल को पारित कराए जाने से गुस्साए विपक्ष ने बुधवार को सरकार के बिल को पेश करने के अधिकार पर ही सवाल खड़े कर दिए।
वामपंथी सांसद सीताराम येचुरी ने कहा, "मैं इस बिल को पारित करने के सदन के अधिकार पर सवाल कर रहा हूं..." उनका कहना था, चूंकि सुप्रीम कोर्ट में आधार बिल पर विचार जारी है, इसलिए यह सदन के 'विधायी अधिकारों' से बाहर है।
इस पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जवाब दिया, "यह लोकतंत्र में अभूतपूर्व तर्क है, जहां शक्तियां अलग-अलग होती हैं... कोर्ट के पास सिर्फ न्यायिक समीक्षा का अधिकार होता है..."
गौरतलब है कि एक रणनीति के तहत बीजेपी-नीत सरकार ने पिछले शुक्रवार को आधार बिल को धनसंबंधी विधेयक के रूप में लोकसभा में पारित करवा लिया था, जहां उनके पास बहुमत है। दरअसल, धनसंबंधी विधेयक में राज्यसभा कोई बदलाव नहीं कर सकती है, और सरकार उच्च सदन में अल्पमत में है। इसके अलावा राज्यसभा द्वारा सुझाए गए बदलावों को लोकसभा खारिज भी कर सकती है।
अरुण जेटली ने कहा, "यदि मूल उद्देश्य भारतीय खजाने से एक खास तरीके से पैसे खर्च करना है, और उस रकम को खर्च करने के लिए कोई मशीनरी बनाई जाती है, तो यह धनसंबंधी विधेयक है..."
अब विपक्ष बिल में संशोधन के सुझाव देकर उसे लोकसभा को लौटाने का विचार बना रही है, और सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस चार संशोधनों के लिए दबाव डालेगी।
इससे पहले वर्ष 1977 तथा 1978 में ऐसे मौके आए हैं, जब राज्यसभा ने धनसंबंधी विधेयकों को सुझावों के साथ लोकसभा को लौटाया था, हालांकि लोकसभा ने उन सुझावों को खारिज कर दिया था।
वैसे, राज्यसभा को किसी भी धनसंबंधी विधेयक पर उसके सदन में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर चर्चा कर लेनी होती है, वरना उसे 'पारित मान' लिया जाता है। इस बीच, सरकार इससे पहले इस बिल पर चर्चा के लिए राज्यसभा की बैठक को दो दिन बढ़ाने के विपक्ष के अनुरोध को खारिज कर चुकी है, और अब सत्र की 39 दिन की रिसेस गुरुवार से ही शुरू हो रही है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि इस बहस का नतीजा हम सब जानते हैं, और उसे बदला या टाला नहीं जा सकता। रमेश ने कहा, "हम राज्यसभा के ताबूत में कीलें ठोक रहे हैं... मुझे पूरा भरोसा है कि अर्जुन को 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' (फल की इच्छा किए बिना कर्म किए जा) का उपदेश देते वक्त भगवान कृष्ण के दिमाग में ज़रूर राज्यसभा में मौजूद विपक्ष के सदस्य ही रहे होंगे..."
पिछले सप्ताह लोकसभा में 'विवादित' तरीके से इस बिल को पारित कराए जाने से गुस्साए विपक्ष ने बुधवार को सरकार के बिल को पेश करने के अधिकार पर ही सवाल खड़े कर दिए।
वामपंथी सांसद सीताराम येचुरी ने कहा, "मैं इस बिल को पारित करने के सदन के अधिकार पर सवाल कर रहा हूं..." उनका कहना था, चूंकि सुप्रीम कोर्ट में आधार बिल पर विचार जारी है, इसलिए यह सदन के 'विधायी अधिकारों' से बाहर है।
इस पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जवाब दिया, "यह लोकतंत्र में अभूतपूर्व तर्क है, जहां शक्तियां अलग-अलग होती हैं... कोर्ट के पास सिर्फ न्यायिक समीक्षा का अधिकार होता है..."
गौरतलब है कि एक रणनीति के तहत बीजेपी-नीत सरकार ने पिछले शुक्रवार को आधार बिल को धनसंबंधी विधेयक के रूप में लोकसभा में पारित करवा लिया था, जहां उनके पास बहुमत है। दरअसल, धनसंबंधी विधेयक में राज्यसभा कोई बदलाव नहीं कर सकती है, और सरकार उच्च सदन में अल्पमत में है। इसके अलावा राज्यसभा द्वारा सुझाए गए बदलावों को लोकसभा खारिज भी कर सकती है।
अरुण जेटली ने कहा, "यदि मूल उद्देश्य भारतीय खजाने से एक खास तरीके से पैसे खर्च करना है, और उस रकम को खर्च करने के लिए कोई मशीनरी बनाई जाती है, तो यह धनसंबंधी विधेयक है..."
अब विपक्ष बिल में संशोधन के सुझाव देकर उसे लोकसभा को लौटाने का विचार बना रही है, और सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस चार संशोधनों के लिए दबाव डालेगी।
इससे पहले वर्ष 1977 तथा 1978 में ऐसे मौके आए हैं, जब राज्यसभा ने धनसंबंधी विधेयकों को सुझावों के साथ लोकसभा को लौटाया था, हालांकि लोकसभा ने उन सुझावों को खारिज कर दिया था।
वैसे, राज्यसभा को किसी भी धनसंबंधी विधेयक पर उसके सदन में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर चर्चा कर लेनी होती है, वरना उसे 'पारित मान' लिया जाता है। इस बीच, सरकार इससे पहले इस बिल पर चर्चा के लिए राज्यसभा की बैठक को दो दिन बढ़ाने के विपक्ष के अनुरोध को खारिज कर चुकी है, और अब सत्र की 39 दिन की रिसेस गुरुवार से ही शुरू हो रही है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि इस बहस का नतीजा हम सब जानते हैं, और उसे बदला या टाला नहीं जा सकता। रमेश ने कहा, "हम राज्यसभा के ताबूत में कीलें ठोक रहे हैं... मुझे पूरा भरोसा है कि अर्जुन को 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' (फल की इच्छा किए बिना कर्म किए जा) का उपदेश देते वक्त भगवान कृष्ण के दिमाग में ज़रूर राज्यसभा में मौजूद विपक्ष के सदस्य ही रहे होंगे..."
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