लॉकडाउन के दौरान श्रम सुधार और श्रम कानूनों (Labor Laws) को कुछ राज्यों में स्थगित करने पर विवाद उठ रहा है. अब ये मामला संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एजेंसी इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन यानी ILO (International Labor Organization) कोर्ट में पहुंच गया है. 10 सेंट्रल ट्रेड यूनियनों की ILO से की गई शिकायत का संज्ञान लेते हुए ILO के डायरेक्टर-जनरल Guy Ryder ने राज्य सरकारों की पहल पर गंभीर चिंता जताई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में दखल देने की मांग की है.
कुछ राज्य सरकारों के श्रम कानूनों को स्थगित करने और उनमें संशोधन करने पर विवाद उठा है, जिसके बाद यह मामला ILO पहुंचा है. 10 सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने ILO से इस मामले में दख़ल की मांग की थी.
ILO की पीएम से अपील
22 मई की एक चिट्ठी में ILO इंटरनेशनल लेबर स्टैंडर्ड्स विभाग की फ़्रीडम ऑफ़ एसोसिएशन ब्रांच की चीफ कैरेन कर्टिस ने कहा ILO-डीजी ने इस मसले में फ़ौरन दख़ल देते हुए गंभीर चिंता जताई है. ILO-डीजी ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की है कि वो केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दें कि श्रम मामलों पर भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को बहाल रखें.
सीटू के जनरल सेक्रेटरी तपन सेन ने NDTV से कहा, 'हमने कुछ राज्य सरकारों की ओर से श्रम कानून में बदलाव और उन्हें स्थगित करने के खिलाफ 14 मई को ILO से शिकायत की थी. ILO-डीजी ने पीएम से अपील की है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों का भारत को पालन करना चाहिए. उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया है कि भारत सरकार की तरफ से जवाब आएगा तो वो हमारे साथ साझा करेंगे.'
10 केंद्रीय मजदूर संगठनों ने सोमवार को ILO को लिखी दूसरी चिठ्ठी में कहा है कि श्रमिक संगठनों के विरोध के बावजूद 13 राज्यों ने श्रमिक संगठनो से बातचीत किए बगैर अध्यादेश या एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए श्रम कानून बदले. मज़दूरों के विरोध के बावजूद ड्यूटी 8 घंटे से बढाकर 12 घंटे की गई. मज़दूरों के हड़ताल के अधिकार ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात ने 3 साल के लिए स्थगित किया है.
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