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दल-बदल अगर न रोका जाए, तो यह लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है- CJI बीआर गवई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे सामने ये भी दलील दी गई कि आर्टिकल 136 और 226/227 के तहत स्पीकर के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश बहुत सीमित है. ये भी कहा गया कि चूंकि मामला बड़ी बेंच के सामने लंबित है तो इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है.

दल-बदल अगर न रोका जाए, तो यह लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है- CJI बीआर गवई
राजनीतिक दल बदल पर CJI की टिप्पणी.
  • सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलबदल को लोकतंत्र की नींव कमजोर करने वाला गंभीर मुद्दा बताया है.
  • संसद में दिए गए राजेश पायलट-देवेंद्रनाथ मुंशी के भाषणों का हवाला देते हुए कोर्ट ने स्पीकर की भूमिका स्पष्ट की.
  • SC ने कहा कि अयोग्यता की कार्यवाही का निर्णय स्पीकर को इसलिए दिया ताकि अदालतों में मामलों पर देरी न हो.
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सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दल-बदल (Supreme Court On Political Defection) को लेकर बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ये मुद्दा देश भर में बहस का विषय रहा है. अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने संसद में दिए गए कई नेताओं के भाषणों का हवाला भी दिया. कोर्ट ने राजेश पायलट,देवेन्द्रनाथ मुंशी जैसे सांसदों के भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि विधायक/सांसद की अयोग्यता तय करने का अधिकार स्पीकर को इसलिए दिया गया ताकि अदालतों में समय बर्बाद न हो और मामला जल्दी सुलझे.

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फैसला सुनाते हुए CJI  बीआर गवई ने क्या कहा 

  • राजनीतिक दलबदल राष्ट्रीय चर्चा का विषय रहा है
  • अगर इसे रोका नहीं गया तो यह लोकतंत्र को बाधित करने की शक्ति रखता है
  • हमने संसद में दिए गए विभिन्न भाषणों का हवाला दिया है
  •  जैसे श्री राजेश पायलट, देवेंद्र नाथ मुंशी
  •  हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अयोग्यता की कार्यवाही का निर्णय स्पीकर द्वारा करना अदालतों में होने वाली देरी से बचने के लिए था.
  • इसलिए कार्यवाही के शीघ्र निपटारे के लिए यह कार्य स्पीकर को सौंपा गया था
  • यह तर्क दिया गया कि चूंकि मामला एक बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है, इसलिए हम इस मामले का निर्णय नहीं कर सकते
  • हमने किहोतो होलोहन फैसले का भी हवाला दिया है, जहां अनुच्छेद 136 और अनुच्छेद 226 व 227 के संबंध में न्यायिक समीक्षा की शक्तियां बहुत सीमित हैं 

दल-बदल पर सुप्रीम कोर्ट की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे सामने ये भी दलील दी गई कि आर्टिकल 136 और 226/227 के तहत स्पीकर के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश बहुत सीमित है. ये भी कहा गया कि चूंकि मामला बड़ी बेंच के सामने लंबित है तो इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है. इन दस BRS विधायकों ने कांग्रेस जॉइन कर लिया था लेकिन स्पीकर ने इनकी अयोग्ता पर लंबे समय तक कोई फैसला नहीं लिया. 

जस्टिस गवई ने कहा कि स्पीकर ने सात महीने बाद नोटिस जारी किया जब इस अदालत ने इस मामले में नोटिस भेजा.  
संसद का ये काम स्पीकर को सौंपने की मंशा ये थी कि अदालतों में टालमटोल की स्थिति से बचा जा सके.

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