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This Article is From Apr 06, 2021

पत्नी का खर्च उठाना, वित्तीय सहायता मुहैया कराना पति का कर्तव्य: अदालत

न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद (Justice Subramaniam Prasad) ने एक निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पुरुष को उससे अलग रह रही पत्नी को 17,000 रुपये की राशि हर महीने देने का निर्देश दिया गया था.

पत्नी का खर्च उठाना, वित्तीय सहायता मुहैया कराना पति का कर्तव्य: अदालत
प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:

दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि पति का यह कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपनी पत्नी का खर्च उठाये और उसे एवं अपने बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान करे. अदालत (Court) ने कहा कि पति अपनी पत्नी और बच्चों की देखभल की जिम्मेदारी उस स्थिति के अलावा बच नहीं सकता जिसकी जो कानूनों में निहित कानूनी आधार की अनुमति देते हों. न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद (Justice Subramaniam Prasad) ने एक निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पुरुष को उससे अलग रह रही पत्नी को 17,000 रुपये की राशि हर महीने देने का निर्देश दिया गया था. उन्होंने कहा कि वह आदेश में किसी भी तरह की प्रतिकूलता का उल्लेख नहीं कर पाया है. अदालत ने कहा कि निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाला व्यक्ति, एक सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) है और अपनी पत्नी को 17,000 रुपये मासिक का भुगतान करने के लिए अच्छी कमाई कर रहा है, जिसके पास आय का कोई स्थाई स्रोत नहीं है.

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अदालत ने कहा, ‘‘यह दिखाने के लिए कोई भी सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई है कि प्रतिवादी (पत्नी) खुद अपना खर्च उठाने में सक्षम है. पत्रिका कवर यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है कि प्रतिवादी खुद का खर्च उठा सकती है.'' पुरुष और महिला की शादी जून 1985 में हुई थी और विवाह के बाद उनके दो बेटे और एक बेटी का जन्म हुआ. 2010 में बेटी का निधन हो गया और दोनों बेटे अब बालिग हैं और अब अच्छी तरह से कार्यरत हैं. दंपति 2012 से अलग रह रहे हैं और महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया और उसे घर से बाहर निकाल दिया गया. महिला का कहना था कि वह खुद का खर्च उठाने में असमर्थ है और उसे पुरुष से गुजारा भत्ता की आवश्यकता है.

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महिला ने दावा किया कि उसका पति प्रति माह 50,000 रुपये का वेतन प्राप्त कर रहा है और उसके पास कृषि योग्य भूमि भी है जिससे भी उसकी आमदनी होती है. हालांकि, व्यक्ति ने क्रूरता के आरोपों से इनकार किया और कहा कि उसने अपने बच्चों की देखभाल की है और उन्हें अच्छी शिक्षा दी है और यह महिला एक कामकाजी महिला और उसकी अच्छी आय है. उन्होंने दावा किया कि महिला जागरण में शामिल होती है और टीवी धारावाहिक भी करती है और वह खुद की देखभाल करने और अपना खर्च उठाने की स्थिति में है.

उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्रिकाओं और कुछ अखबारों की कतरन दाखिल करने के अलावा पुरुष द्वारा कुछ भी नहीं पेश किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि महिला खुद का खर्च उठाने के लिए पर्याप्त आय अर्जित कर रही है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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