
पिछले 32 साल से हर साल हुसैन डे का प्रोग्राम बेंगलुरू में कराया जा रहा है. इस साल 33वां साल था, जब कर्नाटक के बेंगलुरु में हुसैन डे मनाया गया. इमाम हुसैन हज़रत पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे थे, जिन्होंने हक, इंसाफ, सच्चाई और ज़ालिम के सामने ना झुकने की वजह से अपने 72 साथियों के साथ शहीद होना आसान पाया. 1400 साल से उनकी शहादत को आज तक हर धर्म के लोग याद करते हैं और जुल्म के खिलाफ उनकी आवाज़ को हर धर्म का इंसान याद करता हुआ नज़र आता है. इस साल भी 33वां हुसैन डे सम्मेलन एक प्रेरक मंच बना, जहां इमाम हुसैन की शहादत और उनकी शिक्षाओं ने न केवल आध्यात्मिक, बल्कि समकालीन सामाजिक मुद्दों को भी रोशन किया. हुसैन डे के संयोजक आगा सुलतान हैं. यहां जानिए किसने क्या कहा...
- आगा सुल्तान : इमाम हुसैन का यज़ीद के खिलाफ रुख उन्हें "न्याय के लिए खड़े होने" और गरीबी, भुखमरी, बीमारी और नफरत अपराधों जैसी कठिनाइयों का सामना कर रहे लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित करता है, खासकर जब "दुनिया चुप हो".
- डॉ. अब्दुल मजीद हकीम उल्लाही, आयतुल्लाह खामनेई के भारत में प्रतिनिधि: इमाम हुसैन "मानवता की चेतना से संबंधित हैं" और "इतिहास के अंधेरे पन्नों में स्वतंत्रता, न्याय और सम्मान की सबसे चमकीली ज्वाला हैं". उन्होंने महात्मा गांधी के हवाले से कहा, "मैंने हुसैन से सीखा कि उत्पीड़न के बावजूद जीत कैसे हासिल की जाए".
- सलीम मर्चेंट, सिंगर: इस बात पर प्रकाश डाला कि "इमाम हुसैन अल सलाम का संदेश... न्याय, करुणा और उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध का एक सार्वभौमिक आह्वान है" और यह उन्हें "दृढ़ता से खड़े होने, सत्य बोलने और कभी भी दबाव और तानाशाही के सामने न झुकने" की याद दिलाता है.
- पंडित गुलशन पाठक, कवि: कविता के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त की, जिसमें कहा, "मैं हिंदू माथुर हूं लेकिन शब्बीर का दुश्मन नहीं" और "करबला की धरती धन्य है". जितना आप लोगों के हजरत अली, इमाम हुसैन हैं, उतने ही हमारे लिए भी हैं. हम लोग भी हजरत अब्बास अस का परचम चूमते हैं और मैं जल्द ही इराक के करबला में स्थित इमाम हुसैन के श्राइन के दर्शन करने जाऊंगा. वहीं गुलशन पाठक करबला की दास्तान याद करते करते स्टेज पर ही उन 72 शहीदों को याद करके रोने लगे.
- लकी अली, एक्टर: साझा किया कि इमाम हुसैन की कहानी "आत्मा से बात करती है" और "मुझे व्यक्तिगत रूप से जमीन से जुड़े रहने, सत्य के लिए बोलने और अपने मंच का उपयोग लोगों को एकजुट करने और उत्थान करने के लिए प्रेरित करती है".
- मौलाना मोहम्मद शाकिरुल्लाह रशीदी, सुन्नी मुस्लिम धर्मगुरु: इमाम हुसैन का "न्याय के लिए सिर काटा जा सकता है, लेकिन यह सिर कभी भी बटिल (अन्याय) के सामने नहीं झुकेगा", साथ ही उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामनेई से भी अपील करी कि वो गाज़ा में उन भूखे बच्चों के लिए इंतज़ाम करवाएं.
- श्री शिव रुद्र स्वामी जी, हिंदू धर्म गुरु: बताया कि इमाम हुसैन के आदर्श "शांति" की ओर ले जाते हैं और उनका संदेश है कि "अशांति, अहंकार और हिंसा से घिरी दुनिया में अपने आप को किसी के लिए बलिदान करना".
- ज्ञानी सुखदेव सिंह, वाइस हेड, गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा बेंगलूरु - शहीदों का महत्व हमेशा रहा है. गुरु तेग बहादुर जी भी शहादत देकर गए. वहीं इमाम हुसैन साहब भी शहीद हुए, ईसा मसीह भी शहीद हुए. उन्हें सूली पर चढ़ाया गया, जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई. धर्म के नाम पर हिंसा नहीं करनी चाहिए, सबको मिलकर रहना चाहिए.
- फादर एडवर्ड थॉमस- ईसाई धर्मगुरु- ईश्वर सर्वोच्च न्यायाधीश है. वह हमें बताएगा कि हमने अपना कर्तव्य नहीं निभाया. इसलिए, मैं निष्कर्ष निकालता हूं: धार्मिक नेताओं, कृपया अपनी कुरान, अपनी बाइबल, अपने उपनिषदों, और बुद्ध व महावीर की शिक्षाओं के साथ एकजुट हों. एक साथ आएं. अपनी असहमतियों को भूल जाएं, ताकि गरीबों को एक अवसर मिल सके. अन्यथा, चर्च बनते रहेंगे, और धार्मिक प्रतिस्पर्धा जारी रहेगी.
- रेव. डॉ. विक्टर लोबो एसजे, वीसी, सेंट जोसेफ यूनिर्वसिटी, बेंगलुरु- इमाम हुसैन इंसानियत के लिए शहीद हुए थे. हमें उनके बलिदान को नहीं भूलना चाहिए. जहां भी ज़ुल्म हो फौरन वहां आवाज़ बनकर उठना चाहिए. ज़ालिम से कभी नहीं डरना चाहिए. गाज़ा में बच्चों को भूखा रखना, खाना पानी ना मिलना बहुत ही दुर्भाग्यपुर्ण है.
- जयश जंपा चुआंग, बौद्ध धर्मगुरु: जोर दिया कि इमाम हुसैन ने "करबला में मानवता के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए बलिदान दिया" और "हर किसी को इस दुनिया में मानवता और शांति को बनाए रखने की जिम्मेदारी है" क्योंकि "दुनिया सभी मानवता की है".
- अशोक कुमार पांडे: कहा कि गाजा का मुद्दा एक "मानवीय मुद्दा" और "मानवाधिकार मुद्दा" है. उन्होंने यह भी दावा किया कि "धर्म हमारे घर का मामला है" और किसी के नाम के आधार पर किसी के विश्वास पर सवाल उठाने का "कोई अधिकार नहीं है".
- मिस सारा मैथ्यूज: साझा किया कि उनकी प्रेरणा इमाम हुसैन हैं और "हुसैनी वह है, जिसके दिल में दूसरों के लिए दर्द हो". उन्होंने इमाम हुसैन के हवाले से कहा: "सबसे उदार व्यक्ति वह है जो सत्ता में होने पर भी क्षमा करता है".
- सौरभ कुमार शाही: इस बात पर प्रकाश डाला कि "अल्लाह सबसे अच्छा योजनाकार है" यह संदर्भ देते हुए कि दुनिया को फिलिस्तीन को भुलाने की योजना विफल रही, और ऐतिहासिक "खलनायकों" के साथ समानता खींची, जिन्होंने सोचा था कि उनकी योजनाएं सफल होंगी लेकिन अंततः विफल रहीं.
- रिज़वान अरशद , MLA- कहा कि करबला की घटना "देश पर शासन कौन करेगा" के बारे में नहीं थी, बल्कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने के बारे में थी, और यदि "शिया और सुन्नी मुस्लिम एकजुट होकर खड़े हों" तो उन्हें हिलाने की कोई ताकत नहीं होगी.
- नसीर अहमद एमएलसी: गाजा को "आज का करबला" बताया, जहां लोग "हर दिन इस्लाम का अभ्यास और बलिदान कर रहे हैं" ताकि इसे जीवित रखा जा सके, और दुख व्यक्त किया कि इस्लामी देश वहां उत्पीड़न को रोकने के लिए एकजुट नहीं हैं.
- कनक जोशी: जोर दिया कि इमाम हुसैन की शहादत "एक सिद्धांत की लड़ाई है" और उनका संदेश है कि अन्याय के खिलाफ खड़े होना, भले ही इसका मतलब अपने जीवन का बलिदान देना हो, क्योंकि "बात के सामने निषेध है। भले ही सिर कट जाए लेकिन झुके नहीं".
- मौलाना ज़मीर जाफरी: हुसैनियत को परिभाषित किया कि यह "नारा नहीं, जिम्मेदारी है" जिसका अर्थ है सत्य के रास्ते में "बलिदान के लिए तैयार रहना". उन्होंने इमाम हुसैन के हवाले से कहा: "अगर तुम्हारा कोई धर्म नहीं है और तुम नरक या स्वर्ग में विश्वास नहीं करते. मुक्त रहो, स्वतंत्रता सामान्य व्यक्ति का अधिकार है".
- अली अब्बास नकवी: जोर दिया कि "जहां कहीं भी कोई भी मज़लूम हो. वहां उसकी मदद करनी चाहिए. उसके साथ खड़ा रहना चाहिए. यहीं इमाम हुसैन ने 1400 साल पहले आवाज़ दी थी कि है कोई जो मेरी मदद को आए. उस वक्त लाखों लोग थे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की. वहीं अगर अब इमाम हुसैन को मानते हैं. तो हर एक मज़लूम के साथ रहें. कहीं फिर से ऐसा न हो कि मज़लूम आवाज़ दें और हम उनकी मदद ना कर सके.
- मैदी हमशारी: करबला जाने की हार्दिक इच्छा व्यक्त की, जिसमें कहा, "मेरी आँखें थक गई हैं, मुझे बनुल हरमैन देखने दो, यह मेरे दिल की ख्वाहिश है". मौलाना वसी हसन खान साहब: कहा कि "हुसैन का दिन मज़लूम (उत्पीड़ित) के साथ दिया गया था" और "मज़लूम के साथ देने के लिए कोई धर्म नहीं है, क्या कोई कैद है". उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इमाम हुसैन का संदेश है कि "न्याय के लिए यह सिर कट सकता है, लेकिन यह सिर कभी भी बटिल (अन्याय) के सामने नहीं झुकेगा".
- शकील हसन शम्सी - लेखक - इमाम हुसैन की शहादत को 1400 साल हो चुके हैं, लेकिन आज तक उनका गम ताज़ा है. उनके रास्ते पर हर इंसानियत का चाहने वाला चलता है और यज़ीद के साथ ना कल कोई था ना आज है और ना कल रहेगा.
एक प्रेरक संदेश
33वां हुसैन डे सम्मेलन ने इमाम हुसैन की विरासत को एक बार फिर जीवंत कर दिया. यह न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि एक ऐसा मंच था, जिसने विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों को एकजुट कर यह संदेश दिया कि हुसैनियत का मतलब है सत्य, न्याय और मानवता के लिए डटकर खड़ा होना. करबला की यह पुकार आज भी गाजा से लेकर वैश्विक मंचों तक गूंज रही है, जो हमें एकता, करुणा और बलिदान की राह दिखाती है.
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