
कृषि क्षेत्र में किसानों के संकट को लेकर जारी बहस के बीच अब एक राहत की खबर है. इस साल देश में रबी सीजन के दौरान गेहूं की पैदावार अब तक का सबसे ज्यादा होने का अनुमान है. हालांकि देश में अब भी एक तिहाई अनाज हमारी लापरवाही के कारण बर्बाद हो जाते हैं. एनडीटीवी से एक्सक्लूसिव बातचीत में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Indian Council of Agricultural Research) के डायरेक्टर जनरल डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि इससे पीछे दो अहम कारण रहे हैं. इस साल मौसम, गेहूं की फसल के लिए उपयुक्त रहा है और दूसरा देश के बड़े हिस्से में रबी सीजन में गेहूं की Climate Resilient Varieties की बुआई की गयी जिसका फायदा गेहूं के किसानों को मिला.
अनाज की बर्बादी है बड़ी चुनौती
एक तरफ जहां फ़ूड प्रोडक्शन बढ़ता जा रहा है, अनाज की बर्बादी का स्तर भी काफी ऊंचे स्तर पर बना हुआ है.पूसा काम्प्लेक्स में इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च की AGM में पेश तथ्यों के मुताबिक हर साल 1/3 अनाज की बर्बादी होती है. भारत में उत्पादित अनाज का एक तिहाई हिस्सा खाने से पहले ही बर्बाद या खराब हो जाता है. भारतीय घरों में सालाना 687 मिलियन टन खाना बर्बाद हो जाता है यानी. प्रति व्यक्ति 50 किलोग्राम अनाज की बर्बादी होती है.
"अनाज की बर्बादी रोकने की है जरूरत"
डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि "हम अपने स्टडी में पाते हैं कि लोस हार्वेस्ट से लेकर आपके थाली तक जो अनाज पहुंचता है उसमें काफी ज़्यादा है. हमें सोचना होगा कि हम अनाज की बर्बादी कैसे कम से कम करें...20% से 25% तक अनाज बर्बाद हो जाता है अनाज की हार्वेस्टिंग से लेकर खाने के प्लेट तक...हम मानते हैं कि इसे 10% से 15% तक हम अनाज की बर्बादी कम कर सकते हैं टेक्नोलॉजी की मदद से. समाज के जागरूकता फ़ैलाने के माध्यम से और इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करके इसे कम किया जा सकता है. ज़ाहिर है, अनाज की बर्बादी का संकट बड़ा है और इससे निपटने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर जल्दी पहल करना होगा.
112 मिलियन टन से अधिक उत्पादन की है उम्मीद
डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि इस बार हमारा अनुमान है कि गेहूं का उत्पादन जो पिछले साल 112 मिलियन टन तक पहुंचा था वो इस साल इससे भी ज़्यादा रहेगा. इसका कारण है कि अभी जो तापमान है वो गेहूं का फसल के लिए अच्छा रहा है. इससे भी महत्वपूर्ण कारण है कि इस बार 85% से ज़्यादा क्षेत्र में गेहूं की बुवाई में क्लाइमेट resilient varieties का इस्तेमाल किया गया है. इन लचीली गेहूं की किस्में की वजह से इस साल गेहूं का रिकॉर्ड पैदावार होने जा रहा है. इसका दूसरा फसलों पर भी अच्छा असर पड़ेगा".
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