सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज भी हिजाब मामले (Hijab case) पर सुनवाई हुई. इस मामले में आज सुनवाई का 9वां दिन है. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच सुनवाई कर रही है. कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल पीके नवदगी ने कोर्ट में बहस की. जस्टिस गुप्ता ने कर्नाटक सरकार से कहा कि, हमें हिजाब मामले में साजिश संबंधी चार्जशीट और सर्कुलर का कन्नड़ से अनुवाद कर दीजिए. एडवोकेट जनरल ने कहा कि अनुवाद चल रहा है. आज हो जाएगा तो दाखिल कर देंगे.
हिजाब मामले पर कर्नाटक के AG पीके नवदगी ने कहा कि, हिजाब पहनना एक धार्मिक प्रथा है. यह संभव है, जैसा कि कुरान में कहा गया है, धर्म से जुड़ी हर सांसारिक गतिविधि एक आवश्यक धार्मिक अभ्यास नहीं हो सकती है. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि, उनकी दलील है कि कुरान में जो कुछ कहा गया है वह ईश्वर का वचन है और अनिवार्य है.
कर्नाटक के AG ने कहा कि हम कुरान के विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन कुरान का हर शब्द धार्मिक हो सकता है लेकिन अनिवार्य नहीं. गौहत्या पर कुरैशी का फैसला है जिसमें बकरीद पर गोहत्या करना एक आवश्यक प्रथा नहीं है. सिर्फ इसलिए कि कुरान में कुछ उल्लेख किया गया है, यह जरूरी नहीं हो सकता है.
जस्टिस गुप्ता ने कहा, कुरैशी फैसले में जो कहा गया है कि गौहत्या अनिवार्य नहीं है क्योंकि बकरी का एक विकल्प दिया गया है. मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि इस्लाम के पांच पहलू अनिवार्य हैं. ये "तौहीद" के तहत आएंगे इसलिए इसे पहनना मुस्लिम महिलाओं के दायित्व का हिस्सा है. तो हम जानना चाहेंगे कि तौहीद किस हद तक जरूरी है. AG ने कहा, यह अनिवार्य नहीं है. हमारे यहां बड़ी संख्या में मां और बहनें हैं जो हिजाब नहीं पहनती हैं. फ्रांस या तुर्की जैसे देश हैं जहां हिजाब प्रतिबंधित है. हिजाब नहीं पहनने वाली महिला, कम मुस्लिम नहीं हो जाती.
जस्टिस गुप्ता ने कहा, मैं पाकिस्तान में लाहौर हाईकोर्ट के एक जज को जानता हूं, वह भारत आया करते थे. उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं. मैंने कम से कम भारत में उन छोटी लड़कियों को हिजाब पहने हुए कभी नहीं देखा. पंजाब में ज्यादा मुस्लिम परिवार नहीं हैं. जब मैं यूपी या पटना गया, तो मैंने मुस्लिम परिवारों से बातचीत की है और महिलाओं को हिजाब पहने नहीं देखा है.
AG नवदगी ने कहा कि, शायरा बानो में तीन तलाक केस पर SC ने कहा था कि ऐसे कई धार्मिक समूह हैं जो विभिन्न प्रकार की पूजा करते हैं या धर्मों, अनुष्ठानों, संस्कारों आदि का अभ्यास करते हैं. इसलिए धर्म की एक परिभाषा तैयार करना मुश्किल होगा जिसे सभी धर्मों पर लागू माना जाएगा. इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण धार्मिक अभ्यास के साथ है जो धर्म का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है. कोई प्रथा, धार्मिक प्रथा हो सकती है लेकिन उस धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है. केवल अनिवार्य प्रथा ही संविधान द्वारा संरक्षित है. शिक्षा संस्थान किसी विशेष धर्म या जाति को मानने, प्रचार करने का स्थान नहीं है और इसके विपरीत छात्रों को वर्दी पहननी होती है. इस नेक उद्देश्य के लिए छात्रों को संस्थान या संबंधित प्राधिकरण द्वारा निर्धारित वर्दी और कपड़े पहनने की आवश्यकता होती है.
AG नवदगी ने कहा कि, इस्लाम में बहुविवाह एक अनिवार्य प्रथा नहीं है. उस मामले में एक मुस्लिम व्यक्ति ने एक से अधिक पत्नी वाले इस प्रतिबंध को चुनौती दी थी कि एक से अधिक विवाह वाले व्यक्ति स्थानीय चुनाव नहीं लड़ सकते. इस्माइल फारूकी मामले में यह कहा गया है कि मस्जिद में नमाज़ अदा करना एक आवश्यक या अभिन्न प्रथा नहीं है. अभ्यास धर्म के लिए मौलिक और अनादि काल से होना चाहिए.
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यह सही नहीं हो सकता, मुस्लिम पक्ष ने भी हवाला दिया है. AG नवदगी ने कहा, इसमें कोई दलील नहीं है कि यह धर्म के लिए मौलिक है. दूसरी कसौटी यह है कि धर्म का पालन न करने से धर्म के स्वरूप में परिवर्तन करने की प्रथा बदल जाएगी. उदाहरण के लिए कई महिलाएं हिजाब नहीं पहनती हैं. फ्रांस या तुर्की जैसे कई देशों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया है. तर्क दिया गया कि यदि अभ्यास का पालन नहीं किया जाता है, तो आप जीवन के बाद ईश्वर के प्रति जवाबदेह होंगे. यह बहुत सामान्य परीक्षण है. सजा को निर्धारित किया जाना चाहिए.
नवदगी ने कहा कि, हिजाब पहनना धार्मिक हो सकता है, क्या यह धर्म के लिए जरूरी है? हाईकोर्ट ने कहा है नहीं. जस्टिस धूलिया ने कहा, फिर धर्म के लिए अनिवार्य रूप से धार्मिक क्या है? नवदगी ने कहा- संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत जो भी संरक्षित है वही धर्म के लिए आवश्यक है.
नवदगी ने कहा कि, ड्रेस कोड का नियम रूल 11 के तहत मिला है जो किसी संस्थान को ड्रेस निर्धारित करने का अधिकार देता है. इसलिए, क्या रूल 11 की अनुच्छेद 19 के तहत व्याख्या की जानी चाहिए. यदि कोई छात्र गलत ड्रेस पहनता है और शिक्षक उसे स्कूल से वापस भेज देता है, तो क्या छात्र अदालत जाकर कह सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया गया है?
जस्टिस धूलिया ने कहा कि, हो सकता है कुछ स्कूलों में यूनिफॉर्म न हो, तो आप उन्हें कैसे रोक सकते हैं? फिर कहते हैं समानता और एकरूपता के लिए है. नवदगी ने कहा- जहां वर्दी नहीं है वहां हिजाब या किसी पर भी बैन नहीं है. यहां तक कि स्कूल के ट्रांसपोर्ट या स्कूल परिसर में भी हिजाब पर बैन नहीं है. ये प्रतिबंध सिर्फ कक्षाओं में हैं. सभी सरकारी स्कूलों में सरकार द्वारा निर्धारित एक.ड्रेस है. कर्नाटक पहली से 10वीं तक के छात्रों को मुफ्त यूनिफॉर्म प्रदान करता है.
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि, अगर कोई हेडस्कार्फ़ पहनता है तो क्या वह समानता के अधिकार को प्रभावित कर रहा है? नवदगी ने कहा कि अगर स्कूल कहता है कि हम इसे प्रतिबंधित नहीं करते हैं तो हम नहीं रोक सकते.
एडवोकेट जनरल नवदगी की दलीलें पूरी होने के बाद राज्य सरकार की ओर से ASG केएम नटराजन ने बहस की. नटराजन ने कहा- मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि हिजाब पर राज्य में कोई प्रतिबंध नहीं है. राज्य ने केवल यह निर्धारित किया है कि स्कूल ड्रेस को निर्धारित कर सकते हैं जो धर्म से तटस्थ हो. हमने किसी भी धार्मिक गतिविधि को न तो प्रतिबंधित किया है और न ही प्रचारित किया है. स्कूल एक सिक्योर प्लेस है, और स्कूल में जो किया जा रहा है वह एक सुरक्षित गतिविधि है.
नटराजन ने कहा कि सभी को पूर्ण अधिकार दिया जा सकता है लेकिन जब आप किसी संस्थान में आते हैं तो सभी को एक ड्रेस में आना पड़ता है. धर्म के आधार पर वर्गीकरण की अनुमति नहीं है. नटराजन ने कहा कि, इस तरह इजाजत दी जाने लगी तो शिक्षण संस्थानों में अराजकता होगी. एक व्यक्ति हिजाब पहनने को कहेगा, दूसरा गमछा पहनने को कहेगा. धर्मनिरपेक्ष संस्था किसी भी प्रकार के धार्मिक प्रतीकों को मान्यता देने के लिए नहीं है.
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