तीस्ता सीतलवाड़ को मिली बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत; गुजरात हाईकोर्ट का फैसला रद्द

पिछले साल सितंबर को तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत पर रिहा कर गुजरात हाईकोर्ट को मामले में मेरिट के आधार पर निर्णय करने को कहा था.

तीस्ता सीतलवाड़ को मिली बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत; गुजरात हाईकोर्ट का फैसला रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, अगर तीस्ता जमानत शर्तों का उल्लंघन करती हैं तो सरकार अर्जी दाखिल कर सकती है.

नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुनवाई की. तीस्ता सीतलवाड़ को बड़ी राहत मिल गई. उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी. गुजरात हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया गया. हाईकोर्ट ने एक जुलाई को जमानत याचिका खारिज कर तुरंत सरेंडर करने को कहा था. तीस्ता का पासपोर्ट निचली अदालत के पास ही सरेंडर रहेगा, तीस्ता गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ज्यादातर सबूत दस्तावेजी हैं,  चार्जशीट दाखिल हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीस्ता से हिरासत में पूछताछ की कोई जरूरत नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, अगर तीस्ता जमानत शर्तों का उल्लंघन करती हैं तो सरकार अर्जी दाखिल कर सकती है. निचली अदालत को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की किसी टिप्पणी से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट पर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, हाईकोर्ट का फैसला विकृत है. हाईकोर्ट ने जिस तरह का फैसला दिया है उससे आरोपियों को जमानत मिलना मुश्किल है. हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष गलत कि तीस्ता ने FIR रद्द करने की अर्जी नहीं दी.

सुनवाई के दौरान तीस्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने पूरा मामला समझाया. उन्‍होंने कहा कि फर्जी तौर पर सबूत गढ़ कर एफआइआर दर्ज की गई. गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियमित जमानत देने से इनकार किए जाने के तुरंत बाद कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया, लेकिन उन्हें अंतरिम सुरक्षा देने के मुद्दे पर न्यायाधीशों में मतभेद दिखे. यह मामला 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने से संबंधित है.

पिछले साल सितंबर को तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत पर रिहा कर गुजरात हाईकोर्ट को मामले में मेरिट के आधार पर निर्णय करने को कहा था. पिछले शनिवार को हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत रद्द कर तुरंत आत्मसमर्पण करने को कहा था. तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. छुट्टी होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस प्रशांत मिश्र की पीठ शाम साढ़े छह बजे बैठी. सुनवाई के दौरान दोनों जजों के विचार अलग-अलग थे. लिहाजा तीन जजों की पीठ के सामने इस मामले की सुनवाई की सिफारिश की गई. उसी रात सवा नौ बजे जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने तीस्ता को एक हफ्ते के लिए राहत देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता महिला है, लिहाजा राहत की हकदार है. बाद में इस राहत को 19 जुलाई तक बढ़ा दिया गया था.  

तीस्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने पूरा मामला समझाते हुए कहा, "फर्जी तौर पर सबूत गढ़ कर एफआइआर दर्ज की गई. एफआईआर करने के बाद तीस्ता को गिरफ्तार किया गया. अभी तक कोई जांच आगे नहीं बढ़ी. छह दिन पुलिस रिमांड पर लेने के बावजूद सिर्फ एक दिन पूछताछ की गई. गुजरात हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी, क्योंकि तब चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी. चार्जशीट भी दाखिल हो गई, लेकिन तीस्ता को जमानत नहीं मिली. अब सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली है.

सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि देश छोड़कर भागने या गवाहों को प्रभावित करने का कोई जोखिम नहीं है. तीस्ता को क्यों गिरफ्तार किया गया? तीस्ता को अलग क्यों रखा गया है? उनके अनुसार हलफनामा मनगढ़ंत है. यह मामला 2002 में हुआ था. तब से तीस्ता ने किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है और अंतरिम जमानत पर हैं. तीस्‍ता को जमानत मिले दस महीने हो गए, किसी को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की, फिर किस आधार पर जमानत खारिज कर दी गई?

उन्‍होंने कहा, "बेस्ट बेकरी मामले को लेकर ट्रायल चल रहा था. फिर जाहिरा शेख, तीस्ता के पास और उन्होंने उसे NHRC को भेज दिया. एनएचआरसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि सभी 8 मामलों को गुजरात से बाहर ट्रांसफर कर दिया जाए. यह एक वैधानिक निकाय है. पुलिस की ओर से ही एफआईआर दर्ज की गई थी. मेरे गवाहों के बयान के आधार पर वास्तविक आरोपी पर एफआईआर तक दर्ज नहीं करने दी गई. 2002 से लेकर 2022 तक तीस्ता के खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी. फिर अचानक सबूत गढ़ने का मामला दर्ज लिया गया. मामले मे  सुप्रीम कोर्ट NHRC आया था तीस्ता नहीं. मामले में चश्मदीद गवाह हैं. उनकी जांच की गई और जिरह की गई. वे इन हलफनामों पर कायम रहे. 20 साल तक कोई शिकायत नहीं हुई. इतनी भी क्या जल्दी थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, अगले ही दिन कार्रवाई शुरू कर दी गई. फिर FIR दर्ज कर ली गई और तीस्ता को गिरफ्तार कर लिया गया. FIR में वही सब कहा गया है जो सॉलिलिटर जनरल ने गुजरात सरकार की ओर से दलील दी थी. 

सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा, "समस्या रईस खान के रूप में पैदा हुई. ये एक प्रमुख गवाह है, जो मेरे साथ काम कर रहा था. मैंने उसकी सेवाएं समाप्त कर दीं. तब से वह मेरे खिलाफ शिकायत पर शिकायत दर्ज करा रहा है. इन सबका आधार उनकी शिकायत है. अब रईस खान वक्फ बोर्ड का सदस्य हैं. फिर तीस्ता ने रईस खान के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया और वह पेश नहीं हुआ. अब उसने एक नया बयान दिया है कि अहमद पटेल ने सरकार को अस्थिर करने के लिए 2002 में तीस्ता को 30 लाख दिए थे और जज ने इसे स्वीकार कर लिया है.  

सुनवाई के दौरान कपिल सिब्‍बल ने कहा, "रईस खान इस मामले में मुख्य गवाह है. रईस खान द्वारा एक बिल्कुल नया आरोप लगाया गया था, जो 2002 के बाद कभी नहीं लगाया गया था. एक नया आरोप एक ऐसे व्यक्ति के लिए है, जिसकी मृत्यु हो चुकी है, ताकि वह इससे इनकार नहीं कर सके. अब वह एक प्रमुख गवाह है, जो अदालत द्वारा भरोसा किए गए कुछ कह रहा है. एक ऐसे व्यक्ति (अहमद पटेल) के बारे में जो अब नहीं हैं. आप लोगों पर अत्याचार करने के लिए मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकते. लोगों को चश्मदीद गवाहों के आधार पर दोषी ठहराया गया, न कि हलफनामों के आधार पर. वे तीस्ता को दूसरों के साथ फंसाने की कोशिश कर रहे हैं. इनके इस स्टार गवाह को हर मामले में पेश किया गया है. अदालतों ने इसे खारिज भी किया है. और अब उन्होंने एक नया बयान दिया है कि अहमद पटेल ने राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए 2002 में 30 लाख दिए थे.

गुजरात सरकार के लिए ASG एसवी राजू ने कहा कि, दावा किए गए इन आधारों पर अपराधों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. अन्य लोग भी हैं जो इसके गवाह हैं, लेकिन इससे यह तथ्य खत्म नहीं हो जाता कि तीस्ता ने किसी राजनीतिक दल के इशारे पर उच्च अधिकारियों को फंसाने की कोशिश की.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि एक तरफ हाईकोर्ट कहता है कि यह मेरिट पर नहीं जाएगा, दूसरी तरफ वह इसमें चला गया. यह  अपने आप में विरोधाभासी है. आप फैसले के एक हिस्से को नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं और दूसरे पर ध्यान दे सकते हैं. जमानत के लिए यह देखना होगा कि क्या प्रथम दृष्टया मामला बनता है. फरार होने का खतरा है और व्यक्ति सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है. हाईकोर्ट ने जमानत पर इन मुद्दों पर गौर क्यों नहीं किया? 

एसवी राजू ने कहा कि, हाईकोर्ट का फैसला एसआईटी की दलीलों पर आधारित था. उच्च पदों पर बैठे लोगों को फंसाने की बात कही गई  थी. कांग्रेस पार्टी से लिए गए पैसे की पुष्टि नरेंद्र ब्रह्ममभट्ट ने भी की थी.  

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अब ब्रह्मभट्ट किस पार्टी में हैं? एएसजी ने कहा,  वह कांग्रेस में ही थे. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, लेकिन अब? सिब्बल ने कहा, लेकिन अब वह बीजेपी में हैं. राजू ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा, आप 2022 तक क्या कर रहे थे? उसे गिरफ्तार करने के बाद आपने क्या जांच की है? राजू ने कहा, यह एसआईटी रिपोर्ट पर आधारित है. एफआईआर में इसका जिक्र है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार पर सवाल उठाया कि तीस्ता को हिरासत में रखने के पीछे क्या उद्देश्य है? गुजरात सरकार ने कहा, ये गंभीर अपराध है. सुप्रीम कोर्ट ने फिर सवाल उठाते हुए कहा कि, सिर्फ बयानों की तुलना सबूतों से नहीं की जा सकती. अगर गुजरात सरकार की दलीलों को माना जाएगा तो साक्ष्य अधिनियम को ही कूड़ेदान में फेंकना पड़ेगा.

जस्टिस दीपांकर दत्ता ने गुजरात सरकार से पूछा कि आप चाहते हैं कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनवाई पूरी होने तक कोई व्यक्ति जेल में रहे. एएसजी राजू ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां सजा उम्रकैद तक है. ऐसे मामले में जब जमानत पर विचार करना हो तो उम्रकैद के मामले में एक अलग स्तर पर विचार होना चाहिए.

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