सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने अब मुख्य मामले के साथ ज्ञानवापी में शिवलिंग की पूजा और कार्बन डेटिंग की नई याचिका पर भी सुनवाई की इजाजत दी है. अब ये सुनवाई 21 जुलाई को होगी. याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु जैन ने ये मांग की थी कि शिवलिंग की पूजा और कार्बन डेटिंग की नई याचिका पर भी साथ ही सुनवाई हो. मुख्य न्यायधीश एन वी रमना ने कहा कि इसका सुनवाई भी मुख्य मामले के साथ होगी. याचिका में ज्ञानवापी सर्वे में मिले शिवलिंग पर काशी विश्वनाथ ट्रस्ट (Kashi Vishwanath Trust) को कब्जा देने के लिए निर्देश देने की मांग भी की गई है. इसके अलावे शिवलिंग के पूजा अधिकारों की बहाली की भी मांग की गई है. काशी विश्वनाथ ट्रस्ट द्वारा शिवलिंग के लाइव प्रसारण के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की भी मांग की गई है जिससे भक्त पूजा कर सकें.
कहा गया है ज्ञानवापी परिसर की पड़ताल के लिए जीपीएस (GPS) यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार सिस्टम के जरिए भूमिगत परिस्थिति का पता लगाने का आदेश दिया जाए और वहां से मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) कराई जाए जिससे उसकी प्राचीनता का पता चल सके. याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन के मुताबिक जीपीएस इस पूरे परिसर को इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रडार के जरिए जांचने का सबसे सुरक्षित सटीक और वैज्ञानिक तरीका है जिसमें बिना किसी चीज से छेड़छाड़ किए तथ्य जुटाए जा सकते हैं
एक वकील, एक प्रोफेसर और पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित सात महिला याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट से ये भी आग्रह किया गया है कि सनातन धर्मियों की भावनाओं के मद्देनज़र कोर्ट ज्ञानवापी से मिले आदि विश्वेश्वर शिवलिंग को विश्वनाथ मंदिर के पास स्थापित करने और उसकी पूजा अर्चना उपासना करने की इजाजत काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को दे. इस बाबत दलील यह है कि काशी में विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर पांच कोस यानी लगभग 15 किलोमीटर तक का दायरा काशी के अधिष्ठाता देव विश्वेश्वर का क्षेत्र है. यूपी श्री काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट 1983 के मुताबिक भी श्रद्धालुओं के अपने आराध्य की उपासना के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के लिए ट्रस्ट को ये अधिकार देना चाहिए
याचिका में उसे मस्जिद न मानने के तर्क देते हुए जैन की दलील है कि ये मंदिर के कुछ हिस्से को ढहा कर उसे मस्जिद में बदलने की कवायद तो हुई लेकिन मस्जिद घोषित करने का मूल काम नहीं हुआ. उसे मस्जिद घोषित करने से पहले इसे वक्फ घोषित नहीं किया गया क्योंकि विश्वनाथ जी के अलावा इस पर किसी का मालिकाना हक नहीं था. इसलिए इससे इस जमीन और संपत्ति पर देवता का अधिकार बरकरार है. याचिका में अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस बात की तस्दीक करता है कि देवता न्यायिक व्यक्ति (ज्यूरिस्ट पर्सन) है.
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