यह रॉकेट संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर जाएगा
बेंगलुरु:
देश का अब तक का सबसे बड़ा रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3 लॉन्च हो गया है. इसरो ने इस लॉन्च के सफलतापूर्वक पूरा होने की घोषणा करते हुए इस दिन को ऐतिहासिक बताया. रॉकेट ने निर्धारित 5 बजकर 28 मिनट पर उड़ान भरी और संचार उपग्रह जीसैट-19 को कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया. इसमें देश में ही विकसित क्रायोजेनिक इंजन लगा है. इस रॉकेट की कामयाबी से अब भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में भारत का रास्ता साफ़ हो जाएगा.
जीएसएलवी मार्क 3 के तौर पर भारत न केवल अभीतक के सबसे विशाल रॉकेट के प्रक्षेपण में कामयाब रहा है बल्कि इसके साथ गया सेटेलाइन जीसैट 19 को संचार के लिहाज से एक गेमचेंजर माना जा रहा है, जो आने वाले दिनों में संचार और इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला सकता है. अकेला जीसैट-19 पुराने 6-7 संचार उपग्रहों की बराबरी कर सकता है. फिलहाल भारत के 41 उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं. इस स्वदेशी उपग्रह से डिजिटल इंडिया को ताकत मिलेगी जिसमें कई नई तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है. जीसैट-19 में स्वदेशी लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल किया गया है जो आगे चलकर कार या बस में इस्तेमाल हो सकती हैं. सबसे बड़ी खासियत ये है कि जीसैट 19 में कोई ट्रांसपोंडर नहीं है. इसमें मल्टीपल फ्रिक्वेंसी बीम के जरिए डाटा को डाउनलिंक किया जाएगा. इसरो के मुताबिक इसपर जियोस्टेशनरी रेडिएशन स्पेक्ट्रोमीटर लगा है जो उपग्रह पर स्पेस रेडिएशन और चार्ज पार्टिकिल्स के असर पर नजर रखेगा.
जीएसएलवी मार्क 3 रॉकेट को सोमवार शाम 5 बजकर 28 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा, ‘‘जीएसएलवी मार्क 3 के प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे से अधिक की उल्टी गिनती अपराह्न तीन बजकर 58 मिनट पर शुरू हुई.’’ इसरो अध्यक्ष एस एस किरण कुमार ने कहा था कि मिशन महत्वपूर्ण है, ‘‘क्योंकि यह अब तक का सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है जिसे देश से छोड़ा जाना है.’’
अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्चरों पर निर्भर रहना पड़ता था. जीएसएलवी मार्क 3 4000 किलोग्राम तक के पेलोड को उठाकर भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 हजार किलोग्राम तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है.
जीएसएलवी मार्क 3 से जुड़ी खास बातें...
- 640 टन का वजन, भारत का ये सबसे वजनी रॉकेट है
- नाम है जीएसएलवी मार्क 3 जो पूरी तरह भारत में बना है
- इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे. इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और ये चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है.
- अपनी पहली उड़ान में ये रॉकेट 3136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा
- इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है.
कैसे काम करता है जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट
- पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं
- उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है
- ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं
- उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती हैं
- अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है
- उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है
- भविष्य में ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम करेगा.
जीएसएलवी मार्क 3 के तौर पर भारत न केवल अभीतक के सबसे विशाल रॉकेट के प्रक्षेपण में कामयाब रहा है बल्कि इसके साथ गया सेटेलाइन जीसैट 19 को संचार के लिहाज से एक गेमचेंजर माना जा रहा है, जो आने वाले दिनों में संचार और इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला सकता है. अकेला जीसैट-19 पुराने 6-7 संचार उपग्रहों की बराबरी कर सकता है. फिलहाल भारत के 41 उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं. इस स्वदेशी उपग्रह से डिजिटल इंडिया को ताकत मिलेगी जिसमें कई नई तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है. जीसैट-19 में स्वदेशी लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल किया गया है जो आगे चलकर कार या बस में इस्तेमाल हो सकती हैं. सबसे बड़ी खासियत ये है कि जीसैट 19 में कोई ट्रांसपोंडर नहीं है. इसमें मल्टीपल फ्रिक्वेंसी बीम के जरिए डाटा को डाउनलिंक किया जाएगा. इसरो के मुताबिक इसपर जियोस्टेशनरी रेडिएशन स्पेक्ट्रोमीटर लगा है जो उपग्रह पर स्पेस रेडिएशन और चार्ज पार्टिकिल्स के असर पर नजर रखेगा.
जीएसएलवी मार्क 3 रॉकेट को सोमवार शाम 5 बजकर 28 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा, ‘‘जीएसएलवी मार्क 3 के प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे से अधिक की उल्टी गिनती अपराह्न तीन बजकर 58 मिनट पर शुरू हुई.’’ इसरो अध्यक्ष एस एस किरण कुमार ने कहा था कि मिशन महत्वपूर्ण है, ‘‘क्योंकि यह अब तक का सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है जिसे देश से छोड़ा जाना है.’’
अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्चरों पर निर्भर रहना पड़ता था. जीएसएलवी मार्क 3 4000 किलोग्राम तक के पेलोड को उठाकर भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 हजार किलोग्राम तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है.
जीएसएलवी मार्क 3 से जुड़ी खास बातें...
- 640 टन का वजन, भारत का ये सबसे वजनी रॉकेट है
- नाम है जीएसएलवी मार्क 3 जो पूरी तरह भारत में बना है
- इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे. इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और ये चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है.
- अपनी पहली उड़ान में ये रॉकेट 3136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा
- इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है.
कैसे काम करता है जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट
- पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं
- उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है
- ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं
- उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती हैं
- अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है
- उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है
- भविष्य में ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम करेगा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं