नई दिल्ली:
काले धन के सवाल पर बाबा रामदेव की मुहिम से निपटने के रास्ते तलाश रही यूपीए सरकार फिर सवालों के घेरे में है। इस बार मामला बेनामी धन हस्तांतरण पर नकेल कसने के लिए तैयार प्रस्तावित बिल से जुड़ा है।
इस मामले से जुड़े बिल पर संसद में पेश रिपोर्ट में वित्त मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने बेनामी संपत्तियों के खिलाफ मुहिम छेड़ने की सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े किए हैं और बिल के प्रारूप में बड़े बदलाव की सिफारिश की है।
समिति ने कहा है कि बिल को लाने में सरकार ने देरी की है और अब उसे बिल को गंभीरता से संसद में पास कराकर इसे लागू कराने के लिए कदम उठाने चाहिए।
मौजूदा कानून में बेनामी धन हस्तांतरण करने का आरोप साबित होने पर तीन साल तक की सज़ा का प्रावधान है लेकिन प्रस्तावित बिल में सज़ा का प्रावधान घटाकर दो साल करने की बात कही गई है। स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि तीन साल तक की सज़ा के प्रावधान को नए बिल में भी शामिल किया जाना चाहिए जिससे की लोगों में ये संदेश जाए कि इस तरह की गैर−कानूनी गतिविधियों में शामिल होने पर उन्हें इसका खामियाज़ा भुगतना होगा।
समिति ने बेनामी संपत्ति रखने वाले लोगों को किसी भी तरह की छूट नहीं देने की वकालत की है। साथ ही समिति ने यह भी कहा है कि प्रस्तावित कानून के तहत बेनामी संपत्ति से जुड़े मामलों पर सुनवाई जल्दी पूरी हो। इसके लिए अलग से एक एपैलेट ट्रायब्यूनल का गठन होना चाहिए।
इस मामले से जुड़े बिल पर संसद में पेश रिपोर्ट में वित्त मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने बेनामी संपत्तियों के खिलाफ मुहिम छेड़ने की सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े किए हैं और बिल के प्रारूप में बड़े बदलाव की सिफारिश की है।
समिति ने कहा है कि बिल को लाने में सरकार ने देरी की है और अब उसे बिल को गंभीरता से संसद में पास कराकर इसे लागू कराने के लिए कदम उठाने चाहिए।
मौजूदा कानून में बेनामी धन हस्तांतरण करने का आरोप साबित होने पर तीन साल तक की सज़ा का प्रावधान है लेकिन प्रस्तावित बिल में सज़ा का प्रावधान घटाकर दो साल करने की बात कही गई है। स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि तीन साल तक की सज़ा के प्रावधान को नए बिल में भी शामिल किया जाना चाहिए जिससे की लोगों में ये संदेश जाए कि इस तरह की गैर−कानूनी गतिविधियों में शामिल होने पर उन्हें इसका खामियाज़ा भुगतना होगा।
समिति ने बेनामी संपत्ति रखने वाले लोगों को किसी भी तरह की छूट नहीं देने की वकालत की है। साथ ही समिति ने यह भी कहा है कि प्रस्तावित कानून के तहत बेनामी संपत्ति से जुड़े मामलों पर सुनवाई जल्दी पूरी हो। इसके लिए अलग से एक एपैलेट ट्रायब्यूनल का गठन होना चाहिए।
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