नई दिल्ली:
विदेशी कंपनियों से चंदा लेने के मामले में बीजेपी और कांग्रेस पर संकट के बादल आसानी से नहीं छटेंगे. सरकार ने वित्त विधेयक के ज़रिये 1976 के FCRA कानून को भले ही बदल दिया हो लेकिन चुनाव सुधार के लिये लड़ रही संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म का कहना है कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर विदेशी कंपनी वेदांता की भारत स्थित कंपनियों से चंदा लेने का मामला 2013 में सामने आया था जिसके बाद मार्च 2014 में दिल्ली हाइकोर्ट ने दोनों पार्टियों को विदेशी मुद्रा विनिमय कानून 1976 का दोषी पाया. दोनों पार्टियों ने ये चंदा 2009 और उससे पहले के सालों में लिया था. हाइकोर्ट ने चुनाव आयोग से इस मामले में कदम उठाने को कहा लेकिन आयोग की ओर से मामला गृहमंत्रालय को कार्रवाई के लिए भेजा गया. लेकिन सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पिछले साल के बजट में 2010 के FCRA कानून में संशोधन कर दिया और विदेशी चंदे के स्रोत की परिभाषा बदल दी. सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने इस मामले में अपील की और कहा कि इस संशोधन के बाद 1976 के कानून का कोई मतलब नहीं रह गया है.
लेकिन हाइकोर्ट ने 2014 के अपने फैसले में लिखा है कि क्योंकि याचिका में सिर्फ 2009 तक के चंदों का ही जिक्र है और इसलिए 2010 के कानून का इस फैसले में कोई लेना देना नहीं होगा. इसीलिए वित्त मंत्री ने एक बार फिर इस साल बजट में 1976 के कानून में बदलाव किया है. समस्या ये है कि 2010 में बने नये कानून के बाद 1976 का कानून पिछले 8 साल से निरस्त है. इसलिए उस कानून में संशोधन कैसे किया जा सकता है.
एडीआर के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर कहते हैं कि वह सरकार के इस संशोधन को अदालत में चुनौती देगी. छोकर कहते हैं, "8 साल से मृत पड़े कानून को कैसे बदला जा सकता है. ये तो कब्र से किसी आदमी तो निकाल कर ये कहने जैसा है कि इसे जिन्दा तो नहीं कर सकते लेकिन इसका घुटना बदल सकते हैं. हम इसे अदालत में चुनौती देंगे." छोकर के मुताबिक सरकार बीजेपी और कांग्रेस को बचाने के लिए ये सब कर रही है लेकिन ये करना सम्भव नहीं है.
VIDEO: विदेशी चंदे पर कांग्रेस और बीजेपी साथ-साथ
उधर टीएमसी ने संसद में इस संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन किया और कहा कि ये ब्लैक मनी को चुनावी चन्दे के रूप में वापस लाने की योजना है. टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने कहा, "अब सरकार ने खुले तौर पर विदेशी चंदे का रास्ता खोल दिया है. हमें डर इस बात का है कि पाकिस्तान अलगाव फैलाने वालों को चुनावी फंडिंग की आड़ में मदद करेगा." हालांकि सरकार ने अपनी सफाई में कहा है कि केवल वही कंपनियां चुनावी चन्दा दे पाएंगी जो भारत में रजिस्टर्ड हैं.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पिछले साल के बजट में 2010 के FCRA कानून में संशोधन कर दिया और विदेशी चंदे के स्रोत की परिभाषा बदल दी. सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने इस मामले में अपील की और कहा कि इस संशोधन के बाद 1976 के कानून का कोई मतलब नहीं रह गया है.
लेकिन हाइकोर्ट ने 2014 के अपने फैसले में लिखा है कि क्योंकि याचिका में सिर्फ 2009 तक के चंदों का ही जिक्र है और इसलिए 2010 के कानून का इस फैसले में कोई लेना देना नहीं होगा. इसीलिए वित्त मंत्री ने एक बार फिर इस साल बजट में 1976 के कानून में बदलाव किया है. समस्या ये है कि 2010 में बने नये कानून के बाद 1976 का कानून पिछले 8 साल से निरस्त है. इसलिए उस कानून में संशोधन कैसे किया जा सकता है.
एडीआर के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर कहते हैं कि वह सरकार के इस संशोधन को अदालत में चुनौती देगी. छोकर कहते हैं, "8 साल से मृत पड़े कानून को कैसे बदला जा सकता है. ये तो कब्र से किसी आदमी तो निकाल कर ये कहने जैसा है कि इसे जिन्दा तो नहीं कर सकते लेकिन इसका घुटना बदल सकते हैं. हम इसे अदालत में चुनौती देंगे." छोकर के मुताबिक सरकार बीजेपी और कांग्रेस को बचाने के लिए ये सब कर रही है लेकिन ये करना सम्भव नहीं है.
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उधर टीएमसी ने संसद में इस संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन किया और कहा कि ये ब्लैक मनी को चुनावी चन्दे के रूप में वापस लाने की योजना है. टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने कहा, "अब सरकार ने खुले तौर पर विदेशी चंदे का रास्ता खोल दिया है. हमें डर इस बात का है कि पाकिस्तान अलगाव फैलाने वालों को चुनावी फंडिंग की आड़ में मदद करेगा." हालांकि सरकार ने अपनी सफाई में कहा है कि केवल वही कंपनियां चुनावी चन्दा दे पाएंगी जो भारत में रजिस्टर्ड हैं.
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