
भारतीय संसद के इतिहास में 28 मई 1996 का दिन हमेशा याद रखा जाएगा. इसका कारण है एक ऐतिहासिक भाषण और 13 दिनों की सरकार की विदाई. भारतीय राजनीति को नए आयाम और एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में उस दिन जो भाषण दिया था, वह सिर्फ सत्ता का त्याग नहीं था, बल्कि लोकतंत्र, गरिमा और सिद्धांतों की शीर्ष परंपरा को भी बखूबी बयान करता है. वाजपेयी का बात कहने का अंदाज हमेशा से ही सबसे जुदा रहा, लेकिन उस वक्त जिसने भी यह भाषण सुना था, वो इसे आज भी याद करता है. वाजपेयी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके भाषण अब भी लोगों को प्रभावित और प्रेरित करते रहते हैं.
1996 के आम चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि सत्ता हाथ तो आई लेकिन बहुमत न होने के कारण यह सरकार सिर्फ 13 दिन ही टिक पाई.
संसद में अटल का ऐतिहासिक भाषण
लोकसभा में विश्वास मत से पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने जो भाषण दिया, वह सोशल मीडिया के इस युग में आज भी रह-रहकर लौट आता है और हर बार "वायरल भाषण" के रूप में हमारे सामने होता है. वाजपेयी ने अपने भाषण के दौरान विपक्ष पर हमला जरूर बोला लेकिन उससे ऊपर उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों को रखा.
अपने भाषण में वाजपेयी ने ये कहा था
- मुझ पर आरोप लगाया गया है और यह आरोप मेरे ह्रदय में घाव कर गया है. आरोप ये है कि मुझे सत्ता का लोभ हो गया है और मैंने पिछले 10 दिनों में जो भी किया है वो सत्ता के लोभ के कारण किया है. अभी थोड़ी देर पहले मैंने उल्लेख किया है कि मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं. सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा है, मेरा आचरण देखा है. जनता दल के मित्रों के साथ मैं सत्ता में भी रहा हूं. कभी हम सत्ता के लोभ में गलत काम करने के लिए तैयार नहीं हुए.
- इस चर्चा में एक स्वर सुनाई दिया है कि वाजपेयी तो अच्छा है, मगर पार्टी ठीक नहीं है. अच्छा तो अच्छे वाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं.
- पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा.
- भगवान राम ने कहा था मैं मृत्यु से नहीं डरता, डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं, लोकापवाद से डरता हूं. 40 साल का मेरा राजनीतिक जीवन खुली किताब है. जनता ने जब भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़े दल के रूप में समर्थन दिया तो क्या जनता की अवज्ञा होनी चाहिए? जब राष्ट्रपति ने मुझे बुलाया और सरकार बनाने के लिए बुलाया और कहा कि कल आपके मंत्रियों की शपथ विधि होनी चाहिए और 31 तारीख तक आप अपना बहुमत सिद्ध कीजिये तो क्या मैं मैदान छोड़कर के चला जाता, मैं पलायन कर जाता?
- कमर के नीचे वार नहीं होना चाहिए, नीयत पर शक नहीं होना चाहिए.
- जब मैं राजनीति में आया मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं एमपी बनूंगा, मैं पत्रकार था और यह जिस तरह की राजनीति चल रही है, यह मुझे रास नहीं आती है. मैं छोड़ना चाहता हूं, मगर राजनीति मुझे छोड़ना नहीं चाहती है.
- देश में ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए, ना सांप्रदायिक आधार पर, ना जातीय आधार पर, ना राजनीति ऐसे दो खेमों में बंटनी चाहिए कि जिनमें संवाद ना हो जिनमें चर्चा ना हो.
- देश आज संकटों से घिरा है और यह संकट हमने पैदा नहीं किए हैं. जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी है, संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है.
- सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएगीं-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी मगर यह देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए.
- हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है. हम देश की सेवा कार्य में जुटे रहेंगे, हम संख्याबल के सामने सिर झुकाते हैं और आपको विश्वास दिलाते हैं कि जो कार्य अपने हाथ में लिया है, जब तक राष्ट्र उद्देश्य पूरा नहीं कर लेते हैं, तब तक विश्राम से नहीं बैठेंगे, आराम से नहीं बैठेंगे.
यह भाषण क्यों है आज भी प्रेरणा?
यह भाषण सत्ता से अधिक संविधान और सिद्धांतों को महत्व देने का प्रतीक बन चुका है. संसद में संवाद का स्तर कैसा होना चाहिए, यह भाषण इसका आदर्श उदाहरण है. साथ ही राजनीति में नैतिकता और लोकतंत्र की परंपरा का जीवंत उदाहरण है. सोशल मीडिया पर अक्सर इस भाषण के क्लिप वायरल होते रहते हैं तो दूसरी ओर पूरा भाषण भी लोग ढूंढकर सुनते हैं.
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