विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने सोमवार को कहा कि ग्लोबल साउथ (Global South) ‘मानसिकता, एकजुटता और आत्मनिर्भरता' से संबंधित है. उन्होंने साथ ही कहा कि ‘ग्लोबल साउथ' की प्रगति के बिना, पूरे विश्व की प्रगति देखने को नहीं मिलेगी. जयशंकर ने ‘नाइजीरियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स' (एनआईआईए) में ‘भारत और ग्लोबल साउथ' विषय पर चर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि आज वैश्विक एजेंडा पुनर्संतुलन और बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देना है ताकि दुनिया की प्राकृतिक विविधता को बहाल किया जा सके.
उन्होंने कहा कि आज का वैश्विक विमर्श 'ग्लोबल साउथ की उन्नति पर केंद्रित है क्योंकि ग्लोबल साउथ की उन्नति के बिना, हम पूरी धरती की प्रगति नहीं देख पाएंगे.''हालांकि, विदेशमंत्री ने कहा कि यह वैश्विक विमर्श अपने स्वभाव के अनुरूप लगातार विचलित होती रहती है.
उन्होंने कहा कि कोई संकट पैदा होता है, कोई बड़ी घटना घटती है, कोई और एजेंडा आ जाता है, फिर वैश्विक विमर्श बदल जाता है, पटरी से उतर जाता है; लोग इस बात पर ध्यान केंद्रित करना भूल जाते हैं कि प्राथमिकताएं क्या हैं.
मंत्री ने कहा, ‘‘हमारी (भारत की) जी20 अध्यक्षता की बड़ी उपलब्धियों में से एक यह थी कि ध्रुवीय आधार पर बहुत ही विभाजित दुनिया के साथ जिसके बारे में मैं कहूंगा कि यह बहुत अधिक था और एक विशेष क्षेत्र पर केंद्रित था... हम इसका ध्यान वापस ग्लोबल साउथ पर लाने में सक्षम हुए.''
उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ ‘‘एक मानसिकता, एकजुटता और आत्मनिर्भरता'' से संबंधित है.
जयशंकर ने कहा, 'ग्लोबल साउथ, सबसे अधिक एक मानसिकता है. जिनके पास यह है, उनके पास यह रहेगा. जिनके पास यह नहीं है, उन्हें यह कभी नहीं मिलेगा. यह एक मानसिकता है, जिसके कुछ मूल सिद्धांत हैं.''
उन्होंने कहा, ‘‘ये सिद्धांत हमारी आदतों से, हमारी राजनीतिक संस्कृति से, जिस तरह से हमने अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाए हैं, उनसे हैं...उदाहरण के लिए, गैर-हस्तक्षेप या गैर-आलोचनात्मक, या गैर-गुटबाजी. ग्लोबल साउथ पूरी तरह से एकजुटता के लिए है.''
जयशंकर ने कहा, ‘‘ग्लोबल साउथ का मतलब है सहृदय रखना. ग्लोबल साउथ का मतलब है साझा करने की इच्छा.''
अपनी टिप्पणी को विस्तारित करते हुए उन्होंने कहा कि जब भारत अपने लोगों का टीकाकरण कर रहा था,तभी उसने दुनिया के 100 अन्य देशों को टीके की आपूर्ति शुरू कर दी थी.
जयशंकर ने कहा, ‘‘ और जब मैं इसकी तुलना ग्लोबल नॉर्थ से करता हूं तो वहां ऐसे देश थे जो अपनी आबादी से आठ गुना अधिक टीके चाहते थे, और उन्होंने उन टीकों को अपने बगल के एक छोटे से द्वीप तक को नहीं दिया. ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच यही अंतर है.''
मंत्री ने कहा कि पिछले दशक में हुए बदलाव ने ‘‘भारत को एक उदाहरण, भागीदार और योगदानकर्ता बनने में सक्षम बनाया है.''
मंत्री ने यह भी कहा कि वैश्विक शासन, बातचीत और बहस को निर्देशित करने वाला सरल सिद्धांत यह दृढ़ विश्वास है कि किसी को भी पीछे नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘और जब हम किसी को पीछे नहीं छूटने देने की बात करते हैं तो मुझे लगता है कि अफ्रीका का कल्याण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. वास्तव में, मैं कहूंगा, अफ्रीका का उदय और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बदलती वैश्विक व्यवस्था में, हमने महाद्वीपों में विकास देखा है, एक बार जब वे उपनिवेश से मुक्त हो गए, तो समय के साथ उस विकास ने एक पुनर्संतुलन पैदा किया - राजनीतिक पुनर्संतुलन और आर्थिक पुनर्संतुलन.''
जयशंकर ने कहा, ‘‘समसामयिक चुनौतियां प्रभुत्व के पुराने रूपों के साथ-साथ नए आर्थिक संकेंद्रण से उत्पन्न होती हैं....''
उन्होंने कहा कि पिछले 200 से 300 वर्षों तक दुनिया पर प्रभुत्व रखने वालों में से कई आज भी नए माध्यमों, नए शासन, विभिन्न तकनीकों के साथ ऐसा कर रहे हैं.
पुरानी विश्व व्यवस्था हठपूर्वक जारी : जयशंकर
जयशंकर ने यह भी कहा कि पुरानी 'विश्व व्यवस्था हठपूर्वक जारी है क्योंकि जो लोग अगली कतार में हैं वे अन्य लोगों को अधिक स्थान नहीं देना चाहते हैं....''
ग्लोबल साउथ का इस्तेमाल उन देशों के लिए किया जाता है जो विकासशील और अल्पविकसित हैं तथा अधिकतर ऐसे देश दक्षिणी गोलार्ध में अवस्थित हैं. इसी प्रकार, ग्लोबल नार्थ का आश्य विकसित देशों से है जिनमें से अधिकतर यूरोपीय और उत्तर अमेरिकी देश हैं जो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में अवस्थित हैं.
जयशंकर युगांडा और नाइजीरिया के दौरे के अंतिम चरण में नाइजीरिया पहुंचे हैं. वह युगांडा में अयोजित गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद रविवार को नाइजीरिया की राजधानी अबुजा पहुंचे.
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