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68% मौतें तेज रफ्तार के कारण... जानें क्यों युवा होते हैं ओवर-स्पीडिंग के शिकार

शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों को सिर्फ यह बताना कि तेज गाड़ी चलाना खतरनाक है, पर्याप्त नहीं है.  इसके लिए जरूरी है कि दोस्तों और समाज के दबाव को कम किया जाए, उस गलत सोच को बदला जाए जिसमें स्पीडिंग को मर्दानगी से जोड़ा जाता है, और सड़कें इस तरह बनाई जाएं कि गाड़ियां अपने-आप धीमी हो जाएं.

68% मौतें तेज रफ्तार के कारण... जानें क्यों युवा होते हैं ओवर-स्पीडिंग के शिकार
  • जॉर्ज इंस्टीट्यूट के अध्ययन में तेज गति से गाड़ी चलाने के पीछे दबाव और कमजोर कानून-प्रवर्तन भी कारण हैं.
  • भारत में साल 2023 में तेज रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों के कारण कुल मौतों का 68 प्रतिशत हिस्सा है.
  • युवा पुरुषों पर दोस्तों और समाज के दबाव के कारण ओवर स्पीडिंग के कारण सड़क हादसों का जोखिम सबसे अधिक होता है.
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नई दिल्ली:

तेज गाड़ी चलाने के पीछे सिर्फ नियम तोड़ने की सोच नहीं होती है, बल्कि दोस्तों का दबाव, खराब सड़क डिजाइन और कमजोर कानून-प्रवर्तन जैसे कारण भी हैं. जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के अध्ययन में ये जानकारी सामने आई है, जो बीएमजे इंजरी प्रीवेंशन नाम के जर्नल में छपी है. अध्ययन के अनुसार, पुरुष में युवा वर्ग जिस की आयु 15 से 30 साल के बीच की है उन पर तेज गाड़ी चलाने का सबसे अधिक सामाजिक दबाव होता है. यही वजह है कि वो ओवर स्पीडिंग के कारण सबसे अधिक सड़क हादसे का शिकार होता है.

तेज गाड़ी चलाने से 68% की मौत 

आमतौर पर तेज गाड़ी चलाना लापरवाही माना जाता है. लेकिन अध्ययन में पता चला है इसके पीछे कई कारण होते हैं. यह अध्ययन ऐसे वक्त में सामने आया है जब हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) की आई रिपोर्ट से पता चला है कि सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना है. रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में कुल मौतों में से 68% से ज्यादा तेज गति से गाड़ी चलाने के कारण हुईं हैं.

सुरक्षित ड्राइविंग करना आसान हो 
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, इंडिया की प्रतिष्ठा सिंह ने कहा, “तेज गाड़ी चलाना सिर्फ व्यक्ति का अपना फैसला नहीं होता. यह हमारी संस्कृति, सड़क का डिजाइन और कानून की सख्ती पर भी निर्भर करता है. अगर हमें लोगों की जान बचानी है, तो ऐसे सिस्टम बनाने होंगे जहां सुरक्षित ड्राइविंग करना आसान हो, मुश्किल नहीं.”

शोधकर्ताओं ने 9 देशों की 14 स्टडी को मिलाकर यह समझने का प्रयास किया है कि आखिर लोग तेज गाड़ी क्यों चलाते हैं. इसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड, स्पेन, नेपाल, ईरान, वियतनाम, भारत और कोलंबिया जैसे देश शामिल है. ये इस तरह दुनिया की पहली ऐसी स्टडी है, जिसमें ओवर स्पीडिंग के कारण को तलाशने की कोशिश की गई है.

सड़क हादसे में हर घंटे 20 की मौत 
दरअसल, भारत में गाड़ियां और बाइक तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी की वजह से तेज गाड़ी चलाने और हादसों का खतरा लगातार बढ़ रहा है. इसका असर भारत में सबसे ज्यादा दिखता है, क्योंकि यहां दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क हादसों में मौतें होती हैं. साल 2023 में ही भारत में 4.8 लाख सड़क हादसे और 1.72 लाख मौतें हुईं यानी हर घंटे लगभग 55 हादसे और 20 मौतें.

शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों को सिर्फ यह बताना कि तेज गाड़ी चलाना खतरनाक है, पर्याप्त नहीं है.  इसके लिए जरूरी है कि दोस्तों और समाज के दबाव को कम किया जाए, उस गलत सोच को बदला जाए जिसमें स्पीडिंग को मर्दानगी से जोड़ा जाता है, और सड़कें इस तरह बनाई जाएं कि गाड़ियां अपने-आप धीमी हो जाएं.

स्पीड कम करने से घट सकता है मौत का आंकड़ा
डबलूएचओ इंजरी कोलैबोरेटिंग सेंटर (द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ) के सह- निदेशक डॉ जगनूर जगनूर ने कहा, "अगर गाड़ियों की औसत रफ्तार सिर्फ 10 किमी/घंटा कम कर दी जाए तो सड़क हादसे में मौत का खतरा 40% तक घट सकता है. तेज गाड़ी चलाना किसी देश की तरक्की की निशानी नहीं है, असली तरक्की इंसानी जिंदगी की अहमियत समझने में है. स्पीड लिमिट में रहकर चलना धीमा होना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि हर इंसान सुरक्षित घर पहुँचे.”

लाइसेंस के नियम हो सख्त, गाड़ियों में लगे स्पीड लिमिटर

शोधकर्ताओं ने ओवर स्पीडिंग के कारण हो रही मौत और हादसों से बचने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने की तरफ इशारा किया ताकि भविष्य में मामलों में कमी आ सकें. डॉ. सौम्यदीप भौमिक ने कहा, "ट्रैफिक नियमों को सख्त और पारदर्शी तरीके से लागू करने की जरुरत है. इसके लिए कैमरे और स्पीड रडार का इस्तेमाल करना चाहिए. नए ड्राइवरों को लाइसेंस देने के नियम सख्त किए जाएं और गाड़ियों में स्पीड लिमिटर की व्यवस्था हो." 

प्रतिष्ठा सिंह ने कहा, “ ओवर स्पीडिंग के बारे में लोगों को जागरूक करने की जरुरत है, इसके लिए शिक्षा और हेल्थ कैंपेन चलाएं जाएं , ताकि खतरनाक ड्राइविंग से जुड़े लैंगिक नजरिए को बदला जाए. साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर और सस्ता बनाने की जरुरत है ताकि लोग निजी गाड़ियों पर कम निर्भर रहें. "

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