नई राष्ट्रीय सहकारी नीति लगभग तैयार हो चुकी है और 47 सदस्यीय समिति इसे केंद्र सरकार के पास भेजने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है. समिति के चेयरमैन और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने यह जानकारी दी. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने पिछले साल घोषणा की थी कि देश में सहकारी आंदोलन को सशक्त करने के लिए जल्द ही एक इसी के लिए एक नीति तैयार की जाएगी. उन्होंने कहा था कि इसकी राष्ट्रीय स्तर की समिति की अध्यक्षता सुरेश प्रभु करेंगे.
समिति के सदस्यों में सहकारिता क्षेत्र के विशेषज्ञ और प्रतिनिधि के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रालयों के अधिकारी शामिल हैं. प्रभु ने यहां मर्चेंट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के मौके पर पीटीआई-भाषा से कहा, “नीति दस्तावेज लगभग तैयार है और इसे दाखिल करने की प्रक्रिया चल रही है. हम अब नीति जारी होने और इसके लागू होने की उम्मीद कर सकते हैं.” पूर्व वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने कहा कि नीति में भारत के सामाजिक-आर्थिक आयाम को बदलने की क्षमता है, जिससे कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सहकारी समितियों की हिस्सेदारी में काफी वृद्धि होगी.
प्रभु ने कहा कि नीति के पीछे का विचार कानूनी और संस्थागत ढांचे द्वारा समर्थित सहकारी-आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देना है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'मैं लंबे समय से सभी प्रकार की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहकारी समितियों से जुड़ा हुआ हूं और उनकी क्षमता जानता हूं. कोई भी आर्थिक गतिविधि लोगों के जीवन में मूल्य बढ़ाएगी, लेकिन सहकारी समितियां धन पैदा करने के साथ-साथ आय फैलाने और वितरित करने में भी मदद करती हैं.'
उन्होंने कहा, 'यही कारण है कि सरकार अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में सहकारी समितियों की हिस्सेदारी बढ़ाने के बारे में सोच रही है.' सहकारी समितियों पर मौजूदा राष्ट्रीय नीति 2002 में बनाई गई थी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 8.5 लाख सहकारी समितियां हैं, जिनका सदस्य आधार लगभग 29 करोड़ है. ये सहकारी समितियां कृषि-प्रसंस्करण, डेयरी, मत्स्य पालन, आवास, बुनाई, ऋण और विपणन जैसी विभिन्न गतिविधियों में लगी हुई हैं.
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