राम जन्मभूमि के मामले में 2019 में ऐतिहासिक फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों को भी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर फैसला देने वाली पीठ में शामिल थे.
पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, न्यायाधीशों और शीर्ष वकीलों सहित 50 से अधिक न्यायविद भी राम मंदिर उद्घाटन समारोह में शामिल हो रहे हैं. आमंत्रितों में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल भी शामिल हैं.
अदालत ने 1992 में मस्जिद को ढहाने को 'एक सार्वजनिक पूजा स्थल को नष्ट करने का सोचा-समझा कृत्य' बताया था. 1045 पन्नों के फैसले में अदालत ने कहा, "...संभावनाओं के संतुलन पर, हिंदुओं के स्वामित्व के दावे के सबूत... मुसलमानों द्वारा दिए गए सबूतों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं."
कोर्ट ने ये भी आदेश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का 'उपयुक्त' भूखंड दिया जाए. न्यायाधीशों ने कहा, ये स्वीकार करना कि गलती हुई है और इसमें सुधार के लिए कार्रवाई की पेशकश की गई है.
डीवाई चंद्रचूड़ को छोड़कर, उस बेंच के सभी जज सेवानिवृत्त हो चुके हैं. गोगोई अब राज्यसभा सांसद हैं, उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित किया गया था.
इस बीच, 'प्राण प्रतिष्ठा' से कुछ दिन पहले गुरुवार को, लगभग ₹2,000 करोड़ के मंदिर परिसर के केंद्र में स्थित गर्भगृह में रामलला की मूर्ति लगाई गई. मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा काले पत्थर से बनाई गई 51 इंच की मूर्ति में राम को सुनहरे धनुष और तीर के साथ पांच साल के बच्चे के रूप में दर्शाया गया है.
22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
22 जनवरी को दोपहर 12:30 बजे अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इस मौके पर मुख्य यजमान के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत लगभग 6000 आमंत्रित साधु-संत और मेहमान शामिल होंगे.
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