नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और श्रीनगर से मौजूदा सांसद फारूक अब्दुल्ला स्वास्थ्य संबंधी कारणों से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. पार्टी ने बुधवार को यह जानकारी दी. फारूक अब्दुल्ला के चुनाव न लड़ने संबंधी यह घोषणा उनके बेटे और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने रावलपोरा में एक पार्टी समारोह के दौरान की.
उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'उन्होंने (फारूक अब्दुल्ला ने) अपने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से इस बार चुनाव नहीं लड़ने के लिए (पार्टी के महासचिव) अली मोहम्मद सागर और पार्टी के अन्य सदस्यों से अनुमति ली है.'
उन्होंने कहा कि अब यह पार्टी की जिम्मेदारी है कि वह इस निर्वाचन क्षेत्र से ऐसे उम्मीदवार को उतारे जिसे मतदाता जिताएं ताकि वह दिल्ली में यहां के लोगों की आवाज बन सके. वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों में उमर अब्दुल्ला को नेशनल कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था और फारूक अब्दुल्ला केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए.
फारूक अब्दुल्ला 2002 में जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा के लिए चुने गए और फिर 2009 में फिर से चुने गए. उन्होंने मई 2009 में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और उनकी पार्टी ने श्रीनगर से लोकसभा में एक सीट जीती.
अब्दुल्ला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री के रूप में शामिल हुए. अब्दुल्ला ने 2014 के चुनाव में फिर से श्रीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार तारिक हमीद कर्रा से हार गए.
कर्रा ने 2017 में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया, जिसके कारण श्रीनगर संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसे अब्दुल्ला ने पीडीपी उम्मीदवार नज़ीर अहमद खान को हराकर जीता.
उन्होंने 2019 में फिर से चुनाव जीता. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आगामी संसदीय चुनाव पिछले चुनावों से बहुत अलग हैं. उन्होंने कहा, 'पिछले 30 वर्षों से चुनाव किसी न किसी तरह से प्रभावित हुए हैं, जिसके कारण लोगों ने चुनावों में भाग नहीं लिया - चाहे वह बंदूक के कारण हो या बहिष्कार के आह्वान के कारण. श्रीनगर में हमारी राजनीति सीमित थी. कुछ क्षेत्रों में लोग वोट देने के लिए निकलते थे और हमारी राजनीति उसी पर चलती थी.'
उमर अबदुल्ला ने कहा, 'इस बार माहौल अलग होगा. हम कोई बहिष्कार का आह्वान नहीं देखेंगे और बंदूकों का प्रभाव बहुत कम होगा. इस बार श्रीनगर के लोगों को फैसला करना होगा कि वे यहां की राजनीति में भाग लेना चाहते हैं या नहीं. उन्हें यह तय करना होगा कि वे अपनी आवाज उठाना चाहते हैं या नहीं, वे अपना प्रतिनिधि चुनना चाहते हैं या नहीं.''
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