दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि नफरत भरे भाषण लक्षित समुदाय के खिलाफ हमलों का शुरुआती बिंदु हैं और भड़काऊ भाषणों के बाद जनसांख्यिकीय बदलाव के भी उदाहरण हैं, जैसे कि कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ. न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि नफरत भरी बयानबाजी महज किसी धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है और देश के विभिन्न हिस्सों में जनसांख्यिकी के आधार पर विशिष्ट समुदायों के लोगों के खिलाफ लक्षित घृणास्पद भाषणों के उदाहरण हैं.
न्यायाधीश ने कहा कि घृणास्पद भाषण किसी समुदाय को लक्ष्य कर उनकी मनोदशा को प्रभावित करने के लिए किया जाता है और हमलों में भेदभाव से लेकर बहिष्कार, अल्पसंख्यक बस्ती कहकर संबोधित किए जाने, निर्वासन और यहां तक कि नरसंहार तक हो सकते हैं.
अदालत ने कहा, ‘‘नफरत भरे भाषण लगभग हमेशा एक समुदाय की तरफ लक्षित होते हैं, जिससे उनकी मनोदशा पर प्रभाव पड़ता है, इससे उनमें भय पैदा होता है. घृणास्पद भाषण लक्षित समुदाय के खिलाफ हमलों का शुरुआती बिंदु है जो भेदभाव से लेकर बहिष्कार, अल्पसंख्यक बस्ती घोषित करने, निर्वासन और यहां तक कि नरसंहार तक हो सकते हैं. यह तरीका किसी विशेष धर्म या समुदाय तक ही सीमित नहीं है.''
अदालत ने कहा, ‘‘जनसांख्यिकीय संरचना के आधार पर खास समुदायों के लोगों को लक्षित करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में घृणास्पद भाषणों की घटनाएं हुई हैं और होती रही हैं. इस तरह के नफरत भरे, भड़काऊ भाषणों के बाद जनसांख्यिकीय बदलाव के भी उदाहरण हैं. कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन एक प्रमुख उदाहरण है.''
उच्च न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शन को लेकर कथित नफरती भाषण के लिए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद प्रवेश वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के संबंध में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता वृंदा करात और के एम तिवारी की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. याचिकाकर्ताओं ने मामला दर्ज करने के लिए निर्देश देने से इनकार के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी.
अदालत ने अपने आदेश में जोर दिया कि घृणास्पद भाषण विशिष्ट समुदायों के सदस्यों के खिलाफ हिंसा और आक्रोश की भावनाओं को भड़काते हैं और ऐसे व्यक्तियों को हाशिए पर धकेलते हैं.
अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तर्कसंगत पाबंदी के अधीन हैं. संविधान का अनुच्छेद 15 भी किसी नागरिक के खिलाफ धर्म, नस्ल, जाति या लिंग आदि के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है.
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