कश्मीर घाटी में 90 के दशक में हिंदुओं के पलायन की दर्दनाक घटना घटी. उनमें से एक परिवार दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर का भी था. एक्टर के दिल में आज भी वो जख्म हरा है और उन्होंने एक इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए उसे साझा किया है. कश्मीर घाटी में 90 के दशक में कश्मीरी हिंदू बड़ी संख्या में पलायन को मजबूर हुए थे. घाटी में आतंकवाद के कारण लाखों कश्मीरी हिंदू परिवारों को अपनी जमीन, घर और संपत्ति छोड़कर भागने के लिए मजबूर किया गया.
19 जनवरी को कश्मीरी हिंदुओं के पलायन दिवस के मौके पर अनुपम खेर ने उस काले दिन को याद करते हुए एक कविता सुनाई. भावुक कविता के एक-एक शब्द में विस्थापितों का दर्द छलका. कविता सुनते हुए अनुपम खेर की आंखें भी भर आईं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर अनुपम खेर ने कवि और फिल्म लेखक सुनयना काचरू की एक कविता सुनाई. सुनयना काचरू भी विस्थापित कश्मीरी पंडित हैं.
इसके साथ अनुपम खेर ने कैप्शन में लिखा, "19 जनवरी, 1990 कश्मीरी हिंदुओं का पलायन दिवस. 35 साल हो गए हैं, जब 5,00,000 से ज्यादा हिंदुओं को उनके घरों से बेरहमी से निकाल दिया गया था. वे घर अभी भी वहीं हैं, लेकिन उन्हें भुला दिया गया है. वे खंडहर हैं. इस त्रासदी की शिकार सुनयना काचरू भिडे ने उन घरों की यादों के बारे में दिल छूने वाली एक कविता लिखी. कविता की ये पंक्तियां उन सभी कश्मीरी पंडितों को वह मंजर याद दिला देंगी, जो इस भीषण त्रासदी के शिकार हुए थे. यह दुखद और सत्य दोनों है."
कश्मीरी पंडितों के घर शीर्षक वाली कविता को अनुपम ने पढ़ा, जिसमें डल झील, केसर की महक, पश्मीना शॉल और झेलम का जिक्र था. अनुपम खेर इन दिनों कंगना रनौत की फिल्म 'इमरजेंसी' में अपने अभिनय से चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने जयप्रकाश नारायण का किरदार निभाया है. यह फिल्म 1975 में भारत में लगे आपातकाल के घटनाक्रम पर आधारित है और इसमें कंगना रनौत ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार अदा किया है. कंगना ने न केवल अभिनय किया है बल्कि इस फिल्म का निर्देशन भी किया है.
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