लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे चार जून को आएंगे, लेकिन उससे पहले हर तरफ Exit Polls की चर्चा है. लंबे समय तक चली चुनावी गर्मी के बाद Exit polls बारिश के पहले वाली हल्की बूंदाबांदी की तरह चैन तो पहुंचाते ही हैं. खुद को चुनावी चाणक्य बताने वाले विश्लेषक और उनके Exit Polls सटीक अनुमान का दावा करते हैं, लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है और राजनीतिक पार्टियों का संभावित रिपोर्ट कार्ड बनाने वाले चाणक्यों की समीक्षा भी जरूरी है. चलिए पता करते हैं कि 1999 से 2019 तक चुनावी चाणक्य कितने सही रहे और कितनी बार उनका डिब्बा गुल हुआ.
1998 के चुनावों में Exit Poll लगभग सही
भारत में Exit Poll का सफर तो 60 के दशक से ही शुरू हो गया था. लेकिन सही मायने में लोगों तक ये नब्बे के दशक में पहुंचा. Exit Poll भारत में बड़े पैमाने पर 1998 के चुनावों से शुरू हुए. 1998 के चुनावों में प्रमुख चार चुनावी Exit Poll किए गए और इनमें भारतीय जनता पार्टी को आगे दिखाया गया. देश में राजनीतिक अस्थिरता और मजबूत चेहरे के अभाव वाली सरकारों की वजह से बीजेपी को फायदा हुआ. चुनावी चाणक्यों की भविष्यवाणी सही साबित हुई और भाजपा के 250+ सांसद चुनकर आए.
इसी दौरान Exit Polls वाले चाणक्यों और चुनाव आयोग के बीच संघर्ष भी शुरू हुआ. इन चुनावों में चुनावी चाणक्यों का तीर बिल्कुल निशाने पर लगा और Exit Polls के आंकड़े लगभग चुनावी नतीजों में भी दिखे. जोड़तोड़ से बनी सरकार ज्यादा वक्त के लिए नहीं चल पाई और देश 1999 में फिर एक बार चुनावों के लिए तयार हुआ.
1999 में Exit Polls ने भांप लिया था हवा का रुख
1999 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी बढ़त बनाए हुई थी. प्रमुख पांच पोल एजेंसी के Exit Polls में भाजपा को 300 से अधिक सीटें दिखाई गई थीं. चुनावी चाणक्यों ने भाजपा की अगुवाई में सरकार बनेगी यह भी बताया था, हालांकि वे बीजेपी के लिए सटीक आंकड़े बताने में चूक गए. यही नहीं चुनावी चाणक्यों ने क्षेत्रीय दलों के आंकड़ों और उनके असर भी Exit Polls में कम आंके थे.
1999 में एक्जिट पोल्स में बीजेपी को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो बीजेपी सरकार तो बना रही थी, लेकिन Exit Polls द्वारा अनुमानित सीटें उन्हें नहीं मिली. बेशक सही आकंड़े एक्जिट पोल नहीं पेश कर पाया, लेकिन हवा के रुख को उन्होंने भांप लिया था.
2004 के चुनावों ने तो राजनीति के चाणक्यों को हैरान ही कर दिया था
2004 के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने चुनावी चाणक्यों को पूरी तरह से चौका दिया था. ‘शाइनिंग इंडिया' वाली भाजपा की रणनीति पूरी तरह से परास्त हो गई. कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चुनाव जीती. सारे अनुमान गलत साबित हुए और चुनावी चाणक्य भारत की जनता को समझने में नाकाम हुए. 2009 लोकसभा चुनावों में कड़ा मुकाबला बताने वाले Exit Polls भी गलत साबित हुए. भारतीय मतदाता ने एक बार फिर चुनावी चाणक्यों को गलत साबित किया. यूपीए एक के कार्यकाल को देखते हुए मतदाताओं ने एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को मौका दिया.
2009 के चुनाव चुनावी पंडितों की समझ से परे
2009 के लोकसभा चुनाव परिणाम एक बार फिर चुनावी पंडितों की समझ से परे निकले. इन चुनावों में यूपीए ने अपने 2004-09 तक के कार्यकाल में किए गए कामों की बदौलत लोगों का विश्वास जीता. इसी विश्वास की गवाही चुनाव के नतीजे दे रहे थे. राजनीति पंडितों की समझ देश के चुनावी नतीजों में त्रिशंकु स्थिति की संभावना बता रही थी, लेकिन नतीजों यूपीए ने में अच्छी बढ़त के साथ खुद को मजबूत किया और फिर क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर सरकार बनाई.
इन चुनावों में Exit Polls ने कांग्रेस और साथी दलों के 200 से कम सांसद आएंगे यह अनुमान लगाया था, लेकिन असलियत में कांग्रेस + के 262 सांसद चुनकर आए जो उनकी 2004 के चुनाव नतीजों से भी ज्यादा थे. 2009 के लोकसभा चुनाव का गणित समझने में चुनावी चाणक्य चूक गए थे. त्रिशंकु स्थिति का अनुमान लगाए बैठे Exit Polls कांग्रेस और यूपीए-1 के कार्यकाल को लेकर मतदाताओं की सोच को नहीं पकड़ पाए.
Exit Polls ने 2014 में भाजपा को कम आंका था
2014 लोकसभा चुनाव के ऐतिहासिक परिणाम देखकर चुनावी चाणक्य और उनके Exit Polls सन्न रह गए थे. इन चुनावों में पोल का अनुमान भाजपा की सरकार आ रही है, यह जरूर था, लेकिन इतने भारी बहुमत की भविष्यवाणी वे नहीं कर पाए थे. 2014 के चुनावों में चली ‘मोदी लहर' के सामने विपक्ष परास्त हुआ और कांग्रेस सिर्फ 44 सांसदों तक सिमट गई. भाजपा इस चुनाव में 282 सांसदों के साथ सत्ता में दाखिल हुई.
Exit Polls में सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ जनता में आक्रोश दिखाई दे रहा था, लेकिन उसका इतनी सीटों में तब्दील होना राजनीतिक एक्सपर्टों को हैरान करने वाला था.
2019 के चुनाव में Exit Poll लगभग सही साबित हुए
2019 के चुनाव Exit Polls और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक बार फिर चौंकाने वाले थे. पोल में फिर एक बार नरेंद्र मोदी भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटेंगे यह तो सही बताया था, लेकिन Exit Polls ने भाजपा की सीटें कम आने की संभावना जताई थी. उस समय के एक्जिट पोल्स की बात करें तो सबसे सटीक अनुमान एक्सिस-इंडिया टुडे का था, जिसने भाजपा की 339-365 सीटें मिलने की संभावना जताई थी.
चुनाव जब भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में हो तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर क्षेत्र में अपने मुद्दे और स्थानीय समीकरण हावी हो सकते है. राष्ट्रीय मुद्दों से लेकर स्थानीय समस्याओं को ध्यान में रखकर चुनाव का विश्लेषण करना अपने आप में एक शिवधानुष्य उठाने जैसा मुश्किल काम है. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि कई बार चुनावी चाणक्य और उनके Exit Polls इस काम को करने में सफल रहे तो कई बार सटीक तस्वीर पेश करने से दूर.
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