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This Article is From Jan 26, 2017

एक्सक्लूसिव : 'टॉप सीक्रेट' मिशन की तैयारियों में जुटी भारतीय नौसेना की पनडुब्बी पर NDTV

एक्सक्लूसिव : 'टॉप सीक्रेट' मिशन की तैयारियों में जुटी भारतीय नौसेना की पनडुब्बी पर NDTV
विशाखापट्टनम में आईएनएस सिंधुकीर्ति के क्रू के साथ NDTV के विष्णु सोम
जिस समय यह ख़बर लिखी जा रही है, ठीक उसी समय भारतीय नौसेना की सबसे पुरानी पनडुब्बियों में शुमार होने वाली किलो-क्लास पनडुब्बी का युवा सदस्यदल (क्रू) अपने अगले मिशन की तैयारी में जुटा हुआ है... पनडुब्बी की सभी प्रणालियों को ऊर्जा देने के लिए 900-900 किलोग्राम वज़न वाली बड़ी-बड़ी बैटरियों को लगाया जा रहा है, खाने-पीने का और अन्य सामान स्टॉक किया जा रहा है, मैकेनिकल खामियों को दूर किया जा रहा है...

विशाखापट्टनम में मौजूद आईएनएस सिंधुकीर्ति कुछ ही दिन में अपने अगले मिशन पर चल देगी, लेकिन फिलहाल कोई नहीं, यहां तक कि कप्तान भी नहीं, जानता कि कहां जाना होगा... तैनाती के आदेश टॉप सीक्रेट होते हैं... वे एक बंद लिफाफे में आते हैं, और कप्तान को वह लिफाफा तब तक खोलने की इजाज़त नहीं होती, जब तक वे समुद्र में न पहुंच चुके हों... पनडुब्बी पर तैनात क्रू स्टॉक किए गए रसद तथा अन्य सामान की मात्रा देखकर सिर्फ अंदाज़ा लगा सकता है कि उनका अगला मिशन कितने दिन चलने वाला है...

अगले कुछ हफ्तों, शायद एक महीने से भी ज़्यादा वक्त, तक आईएनएस सिंधुकीर्ति बंगाल की खाड़ी की गहराइयों को नापती रहेगी, और उसके क्रू का बाकी दुनिया से कतई कोई संपर्क नहीं रहेगा... हां, कभी-कभी वे न्यूज़ रिपोर्ट सुन सकेंगे, जिसकी व्यवस्था पानी के भीतर रहने के दौरान भी उनके पास रहेगी... एक महीने से भी ज़्यादा वक्त तक पनडुब्बी पर तैनात 67 अधिकारियों व नाविकों का अपने-अपने परिवारों से कोई संपर्क नहीं रहेगा... सिंधुकीर्ति के 39-वर्षीय कमांडिंग ऑफिसर कैप्टन जीएस रेड्डी कहते हैं, "आखिरी संपर्क लाइनें कट जाने के बाद आप कहीं नहीं होते, और परिवार से आपका कोई संपर्क नहीं रहता... जो कुछ भी होता है, पनडुब्बी पर ही होता है... आपके साथ कुछ भी हो, पनडुब्बी पर ही रहेगा... आप बिल्कुल अलग दुनिया में होते हैं..."
 
ins sindhukirti
भारतीय नौसेना की सबसे पुरानी पनडुब्बियों में शुमार है आईएनएस सिंधुकीर्ति

पनडुब्बी पर तैयारियां भी बहुत अफरा-तफरी वाली होती हैं... तैनात लोगों को हमेशा तैयार रखने के लिए लगातार ड्रिल जारी रहती हैं, जिनके दौरान पनडुब्बी के सबसे अहम कक्ष ऑपरेशन्स रूम में हमला होने की स्थिति से निपटने की तैयारियां की जाती हैं... ऑपरेशन्स रूम एक छोटा-सा कमरा होता है, जिसमें चारों तरफ इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले दिखते रहते हैं, पुराने एनालॉग सिस्टम हैं और दो पेरिस्कोप भी हैं... कैप्टन रेड्डी किसी भी निर्देश को चीखकर बताते हैं, और अधिकारी तथा क्रू के सदस्य जवाब देते हैं - आमतौर पर एक साथ... अफरा-तफरी होती है, लेकिन नियंत्रित, और हर कोई जानता है, उसे क्या करना है... अंतिम लक्ष्य होता है - अगर यह असल में हुआ, तो हो सकता है कोई मिसाइल या टॉरपीडो दागना पड़े...

सिंधुकीर्ति के एक्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर लेफ्टिनेंट कमांडर अंकुश व्यास कहते हैं, "यह प्रक्रिया बेहद अहम है, क्योंकि सबसे ज़रूरी बात यह है कि जिस वक्त दुश्मन की पनडुब्बी का पता चलता है, तब वास्तव में हमें कुछ दिखता नहीं है... हम सिर्फ सोनार के ज़रिये शुरुआती टारगेटिंग सूचना हासिल करते हैं, और उसी पर भरोसा करना होता है..."

वह आगे बताते हैं, "सोनार पूरी तरह निष्क्रिय संकेत होते हैं... हमें ही मोशन पैरामीटरों से यह पता लगाना होता है कि टारगेट, यानी लक्ष्य किस दिशा में बढ़ रहा है, किस गति से चल रहा है, और उसकी अनुमानित रेंज क्या है... इसके बाद हम फायर कंट्रोल सिस्टम को उससे निपटने के उपाय का सुझाव देते हैं... फिर फायर कंट्रोल सिस्टम न सिर्फ उपाय तय कर लेता है, बल्कि टॉरपीडो ट्यूब को तैयार भी कर देता है, और टॉरपीडो को टारगेटिंग डेटा भी दे देता है... और फिर जब कैप्टन की ओर से आदेश मिल जाता है, हम टारगेट पर टॉरपीडो फायर कर देते हैं..."

उसी वक्त पनडुब्बी पर किसी ओर कोने में कुछ लोगों को ग्रुप रेस्ट एरिया की तरफ जा रहा है, क्योंकि उनकी शिफ्ट खत्म हो चुकी है, और यह आराम करने का वक्त है... विशाखापट्टनम में ईस्टर्न नेवल कमांड में पनडुब्बी ऑपरेशन्स के निदेशक कैप्टन अनुराग श्रीवास्तव बताते हैं, "कभी-कभी हम पनडुब्बी पर तैनात लोगों की बॉडी-क्लॉक में भी बदलाव करते हैं... जब हम लम्बे वक्त के लिए तैनाती पर होते हैं, या दुश्मन के रास्ते के करीब होते हैं, हमें अपने बॉडी-क्लॉक को बदलना ही पड़ता है, ताकि रात के वक्त ज़्यादा चौकन्ने रह सकें... बैटरियों को चार्ज करने जैसी हमारी सारी गतिविधियां रात के वक्त ही की जाती हैं..."
 
engine controls of ins sindhukirti
आईएनएस सिंधुकीर्ति के इंजन कंट्रोल

भारतीय नौसेना के पास इस तरह की नौ पनडुब्बियां हैं, जिन्हें '80 के दशक में रूस से हासिल किया गया था... इन पनडुब्बियों को डीज़ल इंजनों से चार्ज की जाने वाली बैटरियों से सीमित ताकत ही मिलती है... हालांकि पनडुब्बी का मिशन 40 दिन तक का हो सकता है, लेकिन हर पनडुब्बी को हर 24 घंटे में कम से कम एक बार सतह पर आना पड़ता है, जिसे 'स्नॉरकेलिंग डेप्थ' कहा जाता है... इस दौरान पनडुब्बी को समुद्र की सतह से ज़रा ही नीचे रखकर पनडुब्बी में लगे डीज़ल इंजनों का भाप-रूपी धुआं (फ्यूम) बाहर फेंक (स्नॉर्ट आउट) दिया जाता है, और पनडुब्बी में मौजूद बासी हवा को बाह की ताज़ा हवा से बदल लिया जाता है...

यही वह वक्त है, जब आईएनएस सिंधुकीर्ति जैसी पनडुब्बियां सबसे 'कमज़ोर' होती हैं... बहुत ऊंची आवाज़ में हो रही 'स्नॉर्टिंग' तथा सतह से नज़दीकी की वजह से पनडुब्बी को शत्रु विमान, पोत या अन्य पनडुब्बियों से डिटेक्ट किया जा सकता है... किलो-क्लास पनडुब्बी कुछ धीमी भी होती हैं, और पानी के नीचे 31 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा रफ्तार से नहीं चल सकतीं... रूस से ही हासिल की गईं आईएनएस चक्र, तथा देश में परमाणु-चालित बैलिस्टिक मिसाइल ले जाने में सक्षम आईएनएस अरिहंत जैसी परमाणु-चालित पनडुब्बियां इनकी तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ होती हैं, और उन्हें सतह पर भी नहीं आना पड़ता, जहां उनके डिटेक्ट हो जाने का खतरा हो... उन पनडुब्बियों में बार-बार ईंधन भरने की ज़रूरत भी नहीं होती है, क्योंकि उन पर लगे परमाणु रिएक्टर इसी तरह तैयार किए जाते हैं, ताकि वे पनडुब्बी की पूरी आयु तक काम करते रह सकें...

सिंधुकीर्ति पर काम करना आसान नहीं है... पनडुब्बी के कोने-कोने में कोई न कोई ज़रूरी उपकरण मौजूद रहता है... जगह-जगह बनी इसकी सीढ़ियों और वाटर-टाइट हैचों के बीच से होकर इस पर इधर से उधर कहीं भी जाना कतई आरामदायक नहीं है... लेकिन इस पनडुब्बी का मकसद यह था भी नहीं... सोवियत काल में जब इसे बनाया गया था, उस समय क्रू के आराम के बारे में किसी ने नहीं सोचा... मुंबई में मझगाव डॉक पर असेम्बल की जा रही फ्रांसीसी डिज़ाइन से बनी स्कॉरपीन-क्लास पनडुब्बियों में काम करना उन नाविकों के लिए लक्ज़री-लाइनर जैसा अनुभव होगा, जो अब तक पुरानी पनडुब्बियों पर काम करते रहे हैं...

आईएनएस सिंधुकीर्ति पर तैनात लगभग 70 लोगों के लिए सिर्फ एक शौचालय है... नहाने के लिए शॉवर की कोई व्यवस्था है ही नहीं, और पनडुब्बी पर तैनात स्टाफ अपनी वर्दियों की जगह हल्के नीले रंग के वैसे ही डिस्पोज़ेबल गाउन पहना करता है, जैसे गाउन ऑपरेशन थिएटरों में डॉक्टर पहना करते हैं... इन गाउनों को तीन-दिन तक पहने रखा जाता है, और फिर फेंक दिया जाता है...
 
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रेस्ट एरिया में मौजूद आईएनएस सिंधुकीर्ति के क्रू सदस्य. इस जगह में छह लोग सोते हैं

मास्टर चीफ पेटी ऑफिसर एनपी महतो इस पनडुब्बी पर तैनात सबसे वरिष्ठ सदस्य या COXSWAIN कहलाते हैं... वह पनडुब्बी पर काम करने का खास अनुभव रखते हैं, और बुज़ुर्ग हैं... इस पद पर मौजूद व्यक्ति ही कैप्टन की आंखों और कान का काम करता है... जब वह पनडुब्बी पर अपनी ड्यूटी को अंजाम नहीं दे रहे होते हैं, यानी खाली होते हैं, तब भी एनपी महतो पनडुब्बी पर तैनात नाविकों का मनोबल बढ़ाए रखने की कोशिशों में जुटे रहते हैं... वह बताते हैं, "मैं उनसे कहता हूं कि देखो, मैं बूढ़ा होकर भी इधर से उधर भागदौड़ करता रहता हूं... सो, यह सब सुनकर उनमें भी जोश भर जाता है, और वे वह सब करते हैं, जिसकी हमें ज़रूरत होती है..."

पनडुब्बी पर तैनात लोगों के मनोबल को ऊंचा बनाए रखने की प्रक्रिया का एक हिस्सा उनके लिए ताज़ा भोजन की व्यवस्था करना भी होता है, जो एक छोटी-सी गैलरी में पकाया जाता है... पनडुब्बी पर तैनात शेफ (बावर्ची) के सिर पर काफी महती ज़िम्मेदारी होती है, क्योंकि नौसेना में भोजन को बहुत गंभीरता से लिया जाता है - और हर तरह का भोजन, चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी बेहद स्वादिष्ट होता है... सभी को कतई एक जैसा भोजन दिया जाता है - यानी अधिकारियों की कोई खास पसंद या विशेष भोजन नहीं होता...

कैप्टन कहते हैं, "नाविकों का एक दूसरे से जुड़ाव बनाए रखने के लिए हम बहुत-सी गतिविधियां संचालित करते हैं... हम कोशिश करते हैं कि कभी-कभार अपने रूटीन में बदलाव कर उनके बीच स्वस्थ प्रतियोगिताएं आयोजित करवाएं... नाविक अपनी पिछली तैनातियों के वक्त के बहुत-से दिलचस्प और मज़ेदार किस्से सुनाया करते हैं, जिन्हें कभी-कभी हम सभी के मनोरंजन के उद्देश्य से ब्रॉडकास्ट भी किया करते हैं..."

पनडुब्बी पर काम करना बेहद जोखिमभरा काम है... बैटरी पिटों में मौजूद हाइड्रोजन तथा अन्य गैसों का मिश्रण जानलेवा भी हो सकता है... छोटी-सी चिंगारी भी इतना बड़ा धमाका करवा सकती है, जिससे न सिर्फ पूरी पनडुब्बी तबाह हो सकती है, बल्कि उस पर तैनात हथियार भी, जिनमें मिसाइलें, टॉरपीडो और बारूदी सुरंगें शामिल हैं... यहां मौजूद सबी लोग मन ही मन सिर्फ 'सुरक्षा-सुरक्षा' भजते हैं... ये लोग उसके बारे में बात नहीं करते, लेकिन ये जानते हैं कि कितने खतरनाक हादसे यहां हो सकते हैं... वर्ष 2013 में बिल्कुल ऐसी ही पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरक्षक के हथियार कम्पार्टमेंट में हुए धमाके में 18 नाविकों की जान चली गई थी... एक साल बाद इसी तरह की एक और पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरत्न पर बैटरी पिट के नज़दीक लगी आग को बुझाने की कोशिश में दो अधिकारियों की मौत हो गई थी... इन हादसों की वजह से तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल डीके जोशी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था...
 
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आईएनएस सिंधुकीर्ति का ऑपरेशन्स रूम

समुद्र की गहराइयों में चीन की लगातार बढ़ती ताकत से भलीभांति परिचित भारत भी अपनी नौसेना को अत्याधुनिक बनाने की योजनाओं को गति प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है... विशेषकर इसलिए भी, क्योंकि चीन ने हिन्द महासागर में अपने प्रभुत्व को बढ़ाने की मंशा साफ-साफ ज़ाहिर कर दी है, जहां से तेल और अन्य अहम आयात होकर भारत पहुंचते हैं...

भारतीय नौसेना के पास इस समय सिर्फ एक ही परमाणु-चालित पनडुब्बी है, जिसे उसने वर्ष 2012 में रूस से हासिल किया था... देश की पहली स्वदेश-निर्मित परमाणु-चालित और परमाणु-टिप्ड मिसाइलों से लैस पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत ने भी बंगाल की खाड़ी में लम्बे-लम्बे ट्रायल पूरे कर लिए हैं... इनके अलावा भारत के पास 13 रूसी और जर्मन डिज़ाइन से बनी डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां भी हैं, और फ्रांसीसी डिज़ाइन से बनी छह स्कॉरपीन-क्लास पनडुब्बियां मुंबई में असेम्बल भी की जा रही हैं, लेकिन चीन के पास कम से कम 12 परमाणु-चालित पनडुब्बियां या तो सेवा में हैं या तैयार हो रही हैं, और 56 अन्य परंपरागत डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां भी हैं, जिनकी बदौलत वह हमसे कहीं आगे है, और अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा पनडुब्बियां संचालित करने वाला देश है...

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