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Exclusive: मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई जैविक खेती की महत्वाकांक्षी योजना

प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले अनूपपुर में स्थानीय प्रशासन द्वारा की गई जांच में पता चला है कि अधिकारियों ने करोड़ों रुपये का घपला किया है.

Exclusive: मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई जैविक खेती की महत्वाकांक्षी योजना
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में जैविक खेती की योजना में भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है.
भोपाल:

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 16.37 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती (Organic Farming) होती है, जो देश में सबसे बड़ा क्षेत्र है.  लेकिन इसी राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है. एक जांच में यह बात सामने आई है. पर्यावरण के अनुकूल खेती के तरीके मिट्टी, फसलों और यहां तक ​​कि उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद हैं. इसको बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये की राशि कथित तौर पर स्थानीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है. राज्य सरकार ने कहा है कि वह मामले की जांच करेगी और उचित कार्रवाई करेगी.

अधिकारियों पर कार्रवाई की अनुशंसा

 मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल अनूपपुर जिले में जैविक खेती के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ है. मामले की जांच के बाद स्थानीय प्रशासन ने आर्थिक अपराध शाखा और कृषि विभाग को संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की है. इस जांच रिपोर्ट की एक्सक्लूसिव जानकारी एनडीटीवी के पास है.

अनूपपुर जिले में स्थानीय प्रशासन ने गहन जांच में पाया है कि क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 में जिला खनिज निधि से आवंटित धन का दुरुपयोग किया गया है. 

साल 2019-20 में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए डीएमएफ यानी जिला खनिज निधि से कुल 6 करोड़ 92 लाख 59 हजार 230 रुपये स्वीकृत किए गए थे. इसमें से 2 करोड़ 90 लाख रुपये कृषि विभाग, आत्मा परियोजना अनुपपुर को स्वीकृत किए गए थे और 2 करोड़ 93 लाख रुपये ट्रेनिंग और दूसरे कामों के लिए स्वीकृत किए गए थे. एक करोड़ 80 लाख 96 हजार 930 रुपये सेल बायोटेक कंपनी को मृदा परीक्षण के नाम पर दिए गए थे.

गांवों में सामने आ गई हकीकत

जैविक खेती के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने की हकीकत जानने के लिए NDTV की टीम गांवों में पहुंची और किसानों से बात की. अनूपपुर जिले के कोतमा ब्लॉक के बसखली और चंगेरी जैसे गांव पहुंचते ही हकीकत से सामना हो गया. 

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बसखली में किसानों को दिए गए बेड छप्पर में लटके मिले जिन्हें किसानों ने बारिश से बचने के लिए लगा रखा था. किसान मोतीलाल सिंह ने कहा, ''मुझे एक नेट और एक बेड मिला था, केचुआ देने को कहा था लेकिन आज तक केचुआ नहीं मिला. सामग्री कोई काम नहीं आई और न केंचुए मिले न ही खाद बनी.''

किसान मोहन सिंह ने कहा कि, ''एक नेट और बेड मिला, मुझे भी केंचुआ नहीं मिला, न खाद बना, मैं खुद बाजार से फिर कुछ केंचुआ खरीद के लाया था और खाद बनाया था थोड़ा. अब छानी में टांग दिया हूं.'' बसखली के कुछ अन्य किसान कमलेश, सुनीता, लालमन और हीरालाल ने भी लगभग यही बात दुहराई.

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चंगेरी के बेलन सिंह मार्को के घर में भी नेट,बेड बाड़ी में रखा हुआ मिला, बेलन सिंह ने बताया पूरे गांव में कभी कोई ट्रेनिंग भी नहीं हुई. 

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गोहिन्द्रा, पथरौडी मनमारी, पेरिचुआ गांवों में भी किसानों को आधी अधूरी सामग्री मिली. न तो कोई ट्रेनिंग हुई न ही इस बारे में जानकारी दी गई. सबसे पहले इसकी शिकायत अनूपपुर जिले के पूर्व जिला पंचायत सदस्य बुद्धसेन राठौर ने की थी. उन्होंने कलेक्टर, कमिश्नर सबके दरवाजे खटखटाए, आरोप सही भी पाए गए लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. 

योजना क्या थी और क्या हुआ

दरअसल इस योजना में 5000 किसानों को वर्मी बेड, जैविक खाद, केंचुए, सीट नेट, साहित्य और प्रशिक्षण दिया जाना था. सभी वर्गों के किसानों को मल्टी फ्रेम, उन्नत हसिया, वर्मी बेड, बायो इनोक्यूलेंट और प्रशिक्षण दिया जाना था. जियो टैगिंग और परिवहन का खर्च भी विभाग को ही देना था. हर किसान के लिए 9770 रुपये स्वीकृत हुए थे.

दो करोड़ 90 लाख की राशि से किसानों को कोई साहित्य या प्रशिक्षण नहीं दिया गया. उन्हें आधा-अधूरा कृषि सामान दिया गया. दो करोड़ 93 लाख की राशि से किसी भी किसान को कोई काम नहीं दिया गया और पूरी रकम का दुरुपयोग किया गया.

सवालों के घेरे में आए अनूपपुर कृषि विभाग के उपसंचालक और आत्मा परियोजना संचालक से उनके दफ्तर में जाकर उनका पक्ष जानने की हमने कोशिश की लेकिन वे नहीं मिले, ना ही फोन पर जवाब दिया.

''किसी को बख्शा नहीं जाएगा''

कृषि विभाग और आर्थिक अपराध शाखा में जांच और शिकायती चिठ्ठी पहुंच गई है लेकिन मंत्री जी को पता हमारे सवाल से लगा है, फिर जवाब वही किसी को बख्शा नहीं जाएगा. कृषि मंत्री एंदल सिंह कंसाना ने कहा कि, ''मैं कलेक्टर से जानकारी लेता हूं लेकिन किसी को बख्शा नहीं जाएगा.''

मध्यप्रदेश में जैविक खेती का कुल रकबा लगभग 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर है, जो देश में सबसे अधिक है. राज्य में कुल 17 लाख 31 हजार हेक्टेयर क्षेत्र प्रमाणित जैविक है, जिसमें से 16 लाख 38 हजार हेक्टेयर एपीडा से पंजीकृत हैं और 93 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पीजीएस से पंजीकृत है.

यह घोटाला केवल किसानों के साथ धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि जैविक खेती के सपने को भी धक्का है. केन्द्र सरकार ने 20 जिलों के बैगा, सहरिया, भारिया आदिवासी किसानों के लिए यह जैविक खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई थी. हैरत की बात यह है कि स्थानीय अधिकारियों ने ही इस घोटाले को पकड़ा, लेकिन भोपाल आते-आते आरोपियों का रसूख उनकी रिपोर्ट पर हावी हो गया. देखते हैं इस बार क्या कार्रवाई होती है. फिलहाल यह एक जिले का मामला है, परतें खुलीं तो बाकी जिलों के हाल का भी पता लग जाएगा.

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