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5 सितम्बर 1962 से सारे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है
राजनीति से पूर्व डॉ राधाकृष्णन ने जीवन के 40 वर्ष शिक्षक के रूप में बिताए
डॉ राधाकृष्णन देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति रहे
पूरी दुनिया में में शिक्षकों (गुरुओं) को सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है. कुछ देशों में शिक्षक दिवस के दिन छुट्टी रहती है जबकि कुछ देश इस दिन कार्य करते हुए मनाते हैं. भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति (1952-1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे. वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक कहे जाते थे. उनके गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण भारत के तिरुत्तनि स्थान में हुआ था जो चेन्नई से 64 किमी उत्तर-पूर्व में है. वे स्वतन्त्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे. राजनीति में आने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में बिताए थे. उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे. उन्होंने अपना जन्म दिन अपने व्यक्तिगत नाम से नहीं अपितु सम्पूर्ण शिक्षक बिरादरी को सम्मानित किये जाने के उद्देश्य से शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा व्यक्त की थी जिसके परिणामस्वरूप आज भी सारे देश में उनका जन्म दिन (5 सितम्बर) को प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के नाम से ही मनाया जाता है.
डॉ. राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे. उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जाना सम्भव है. इसीलिए समस्त विश्व को एक इकाई समझकर ही शिक्षा का प्रबन्धन किया जाना चाहिये. एक बार ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि मानव की जाति एक होनी चाहिये. मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है. यह तभी सम्भव है जब समस्त देशों की नीतियों का आधार विश्व-शान्ति की स्थापना का प्रयत्न करना हो. वे अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हंसाने व गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मन्त्रमुग्ध कर दिया करते थे. वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें. वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे. दर्शन जैसे गम्भीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे.
सन् 1962 में जब डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने थे, तब कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गए और उन्होंने उनसे निवेदन किया कि वे उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा- "मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चय ही मैं अपने को गौरवान्वित अनुभव करूंगा." तबसे आज तक 5 सितम्बर सारे देश में उनका जन्म दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. उनकी मृत्यु 17 अप्रैल 1975 को हुई थी.
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