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This Article is From Aug 10, 2022

क्या सुशील मोदी को बिहार BJP से दरकिनार करना पार्टी के लिए महंगा सौदा साबित हुआ?

मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद खुद नीतीश कुमार ने माना कि अगर सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री होते तो आज ये नौबत नहीं आती.

क्या सुशील मोदी को बिहार BJP से दरकिनार करना पार्टी के लिए महंगा सौदा साबित हुआ?
नीतीश कुमार और सुशील मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

बिहार में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में कुछ बातें साफ़ हैं. एक भाजपा ने नीतीश कुमार को अपने सहयोगी के रूप में खोया हैं . दूसरा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का बिहार भाजपा के क़द्दावर नेता सुशील कुमार मोदी को राज्य की राजनीति से अलग थलग करना उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ. मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद खुद नीतीश कुमार ने माना कि अगर सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री होते तो आज ये नौबत नहीं आती. सुशील मोदी जिन्हें पार्टी ने इस संकट की घड़ी में संवादाता सम्मेलन करने से लेके धरना पर फिर से उतारा हैं. उन्होंने माना कि 2020 के विधान सभा चुनाव के परिणाम के बाद नीतीश मुख्य मंत्री बनना नहीं चाहते थे लेकिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़ोन कर उन्हें मनाया . इसके अलावा सुशील मोदी ने ये भी माना कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के तमाम कोशिशों के बाबजूद नीतीश कुमार को राष्ट्रीय जनता दल , कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ जाने से रोक नहीं पाये .

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ख़ासकर बिहार भाजपा के केंद्रीय प्रभारी भूपेन्द्र यादव सुशील मोदी, नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार की तिकड़ी से असहज रहते थे. इसलिए उन्होंने पिछले विधान सभा चुनाव के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को अपने तर्कों से प्रभावित कर पहले मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं बनने दिया और उनके जगह तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उप मुख्य मंत्री बनाया और साथ साथ इस अटकलों को खूब हवा दी कि बिहार में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय कभी भी मुख्य मंत्री बन सकते हैं. लेकिन नीतीश अपने दोनों उप मुख्य मंत्री से पहले दिन से असहज थे और उनकी आशंका निर्मूल नहीं थी क्योंकि इन उप मुख्य मंत्रियों का सुशील मोदी की तरह ना तो विधायकों में इज़्ज़त थी और ना पार्टी में कोई पकड़.

साथ ही साथ बिहार इकाई के अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर संजय जायसवाल की भूमिका भी विवादास्पद रहता था जो हमेशा नीतीश कुमार की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने से परहेज़ नहीं करते थे . और नीतीश कुमार को सबसे अधिक चिढ़ बिहार विधान सभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा की सरकार को कठघरे में हमेशा खड़ा करने की सोची समझी रणनीति से भी थीं . दिक़्क़त था विधायक भी जमकर नीतीश को निशाना पर रखते थे और जिससे मीडिया और जनता में उनकी जमकर किरकिरी होती थी.

सुशील मोदी को राज्य सभा भेज तो दिया लेकिन बिहार की सरकार में उनके ना रहने के कारण विश्वास की कमी और एक राजनीतिक परिपक्वता का अभाव दिखा . सब कुछ अब बिहार भाजपा के नेता मानते हैं कि भाग्य भरोसे सा चल रहा था . पूरी पार्टी बेलगाम घोड़े की तरह चल रही थी . हालाँकि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लगता था कि तेजस्वी को एजेन्सी के माध्यम से डरा के और नीतीश को दबा के वो सरकार चला लेंगे लेकिन नीतीश के जाने के बाद सबको इस बात को स्वीकार करने में हिचक नहीं हो रही कि सुशील मोदी को दरकिनार करना ना ग़लत था बल्कि आने वाले कई वर्षों और चुनाव में इसका प्रतिकूल असर देखने को मिलेगा .

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