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This Article is From May 15, 2022

पोप ने देवसहायम पिल्लई को संत की उपाधि प्रदान की

पोप फ्रांसिस (Pope Francis) ने रविवार को वेटिकन में देवसहायम पिल्लई (Devasahayam Pillai) को संत (Saint) की उपाधि प्रदान की.

पोप ने देवसहायम पिल्लई को संत की उपाधि प्रदान की
वेटिकन के सेंट पीटर बैसिलिका में पोप फ्रांसिस ने देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया गया.
वेटिकन सिटी:

पोप फ्रांसिस (Pope Francis) ने रविवार को वेटिकन में देवसहायम पिल्लई (Devasahayam Pillai) को संत (Saint) की उपाधि प्रदान की. पिल्लई ने 18वीं सदी में ईसाई धर्म अपनाया था. देवसहायम, पहले भारतीय आमजन हैं जिन्हें पोप ने संत घोषित किया है. देवसहायम को पुण्य आत्मा घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने की अनुशंसा वर्ष 2004 में कोट्टर धर्मक्षेत्र, तमिलनाडु बिशप परिषद और कॉन्फ्रेंस ऑफ कैथलिक बिशप ऑफ इंडिया के अनुरोध पर की गई थी. पोप फ्रांसिस (85) ने रविवार को वेटिकन के सेंट पीटर बैसिलिका में संत की उपाधि प्रदान करने के लिए आयोजित प्रार्थना सभा में देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया.

पिल्लई के चमत्कारिक परोपकारी कार्यों को पोप फ्रांसिस ने वर्ष 2014 में मान्यता दी थी. इससे वर्ष 2022 में उन्हें (पिल्लई को) संत घोषित किए जाने का रास्ता साफ हो गया था. वेटिकन में पिछले दो साल में पहली बार संत की उपाधि प्रदान करने के लिए समारोह का आयोजन किया गया. पोप फ्रांसिस को पिछले कुछ महीनों से दाएं घुटने में दर्द की शिकायत है. वह व्हील चेयर पर बैठकर समारोह की अध्यक्षता करने आए. देवसहायम के अलावा नौ अन्य लोगों को भी यह उपाधि दी गई है जिनमें चार महिलाएं शामिल हैं. पोप ने समारोह में कहा,‘‘हमारा कार्य धर्म शिक्षा और हमारे भाइयों और बहनों की सेवा करना है. हमारा कार्य बिना किसी पारितोषिक की उम्मीद किए स्वयं को समर्पित करना है.

'' समारोह में जब देवसहायम के नाम की घोषणा की गई तब वहां तिरंगे के साथ मौजूद भारतीयों के समूह ने खुशी का इजहार किया. प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही पिल्लई पहले भारतीय आमजन बन गये जिन्हें मरणोपरांत संत घोषित किया गया है. उन्होंने वर्ष 1745 में ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद अपना नाम ‘लाजरस' रखा था.

देवसहायम का जन्म 23 अप्रैल 1712 को एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था. उनका मूल नाम नीलकंठ पिल्लई था. वह कन्याकुमारी स्थित नट्टलम के रहने वाले थे जो तत्कालीन त्रवणकोर राज्य का हिस्सा था. वह त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा के दरबार में अधिकारी थे. उन्हें डच नौसेना के कमांडर ने कैथलिक ईसाई धर्म की दीक्षा दी थी.

वेटिकन द्वारा उनके बारे में बताने के लिए तैयार नोट में कहा गया, ‘‘उपदेश देते हुए उन्होंने विशेष तौर पर जातिगत अंतर से परे सभी लोगों की समानता पर जोर दिया. इसकी वजह से उच्च वर्ग में उनके प्रति नफरत पैदा हुई. उन्हें वर्ष 1749 में गिरफ्तार किया गया था और उन्होंने मुश्किलों का सामना किया. 14 जनवरी 1752 को देवसहायम को गोली मार दी गई और अंतत: उन्हें शहादत का ताज मिला.''

‘‘लजारस'' या मलयालम में ‘‘देवसहायम'' का अभिप्राय है, ‘‘ईश्वर मेरा मददगार है.''देवसहायम के जन्म और मृत्यु से जुड़े स्थान कोट्टर धर्मक्षेत्र में हैं जो तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में स्थित है. देवसहायम को उनके जन्म के 300 साल बाद कोट्टर में दो दिसंबर, 2012 को ईसाई धर्मानुसार ‘सौभाग्यशाली' (ब्लेस्ड) घोषित किया गया था.


 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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