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खतरे में किडनी, गला सुखा रही दिल्ली के पानी की यह रिपोर्ट

10 सितंबर की सीजीडब्ल्यूए रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय जल विज्ञान सर्वेक्षण के दौरान 2022-23 में दिल्ली में विश्लेषण किए गए 95 पानी के नमूनों में से 24 में ईसी 3,000 माइक्रो सीमेंस प्रति सेंटीमीटर से अधिक थी.

खतरे में किडनी, गला सुखा रही दिल्ली के पानी की यह रिपोर्ट
2,000 mg/L से अधिक TDS वाला पानी पीने के लायक नहीं है
नई दिल्ली:

धरती पर पानी के बिना जीवन की कल्पना भी करना नामुमकिन है. इंसान के शरीर में भी 60 फीसदी के आसपास पानी ही होता है. शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक खाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है साफ पानी पीना है. लेकिन चिंता की बात ये है कि दिल्ली के चार में से एक पानी के नमूने में बहुत अधिक इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस (ईसी) थी, जिसका मतलब ये है कि पानी खारा है और इसमें नमक की मात्रा है. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सेंट्रल ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में विश्लेषण किए गए पानी के 25% से अधिक नमूने खारे हैं, जो राजस्थान के बाद दूसरे स्थान पर है, जहां 30% नमूने खारे पाए गए.

दिल्ली में किस इलाके के पानी में हाई इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस

देशभर में इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस (ईसी) औसत 6% है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपी गई 10 सितंबर की सीजीडब्ल्यूए रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय जल विज्ञान सर्वेक्षण के दौरान 2022-23 में दिल्ली में विश्लेषण किए गए 95 पानी के नमूनों में से 24 में ईसी 3,000 माइक्रो सीमेंस प्रति सेंटीमीटर से अधिक थी. पानी के नमूने नई दिल्ली, उत्तर, उत्तर पश्चिम, दक्षिण पश्चिम और पश्चिम दिल्ली जिलों से लिए गए थे. हाई ईसी वाले शीर्ष तीन क्षेत्र रोहिणी में बरवाला थे, जहां ईसी 9,623 यूनिट थी, पीतमपुरा में संदेश विहार 8,679 यूनिट और टैगोर गार्डन 7,417 यूनिट था. बहुत अधिक ईसी स्तर वाले अन्य इलाकों में नजफगढ़ शहर, सुल्तानपुर डबास, छावला, अलीपुर गढ़ी, हिरन कुदना गांव और सिंघु गांव शामिल थे.

दिल्ली के चार में से एक पानी के नमूने में बहुत अधिक इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस (ईसी) थी, जिसका मतलब ये है कि पानी खारा है और इसमें नमक की मात्रा है.

आप जोखिम में क्यों हैं

  • दिल्ली में विश्लेषण किए गए पानी के 25% से अधिक नमूनों में हाई इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस (ईसी) थी.
  • हाई इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस (ईसी) उच्च कुल घुले हुए कणों (TDS) और सैलिनिटी या नमक की मात्रा से जुड़ा हुआ है.
  • हाई इलेक्ट्रिकल कंडक्टेंस (ईसी) के लिए राष्ट्रीय औसत 6% है. भारतीय मानक ब्यूरो ने पीने के पानी के लिए 500 mg/L की सीमा के साथ TDS के लिए एक मानक की सिफारिश की है, जो लगभग 750 μS/cm (माइक्रो सीमेंस प्रति सेंटीमीटर) के EC के अनुरूप है.
  • दिल्ली में विश्लेषण किए गए पानी के 25% से नमूने खारे, जो कि राजस्थान के बाद सबसे ज्यादा है.

खतरे में किडनी

भारतीय मानक ब्यूरो ने कुल घुलित ठोस पदार्थों (टीडीएस) के लिए 500 मिलीग्राम / लीटर तक सीमित पेयजल मानक की सिफारिश की है, जो लगभग 750 माइक्रो सीमेंस प्रति सेंटीमीटर के ईसी से मेल खाती है. हालांकि, अगर पानी का कोई वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध नहीं है, तो सुरक्षा मानदंड को 2,000 मिलीग्राम / लीटर के टीडीएस या लगभग 3,000 इकाइयों के ईसी तक बढ़ाया जा सकता है. हालांकि, 2,000 mg/L से अधिक TDS वाला पानी पीने के लायक नहीं है क्योंकि यह किडनी से संबंधित समस्याओं सहित बीमारियों का कारण बन सकता है.

केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, कंडेक्टिविटी को घोल में आयन सामग्री को मापने के एक तेज़, उचित और विश्वसनीय तरीके के रूप में मापा जाता है, और कई मामलों में, कंडेक्टिविटी सीधे कुल घुले हुए ठोस पदार्थों से जुड़ी होती है. रिपोर्ट में बताया गया है. विभिन्न पदार्थ पानी में घुल जाते हैं, जिससे उसे स्वाद और गंध मिलती है. वास्तव में, मनुष्यों और अन्य जानवरों ने ऐसा सेंस विकसित कर लिया है जो एक हद तक पानी की पीने योग्यता का मूल्यांकन करने में सक्षम हैं. जो बहुत अधिक नमकीन या सड़ा हुआ पानी से बचते हैं. भूजल में सैलिनिटी हमेशा मौजूद रहती है, लेकिन ये परिवर्तनशील मात्रा में होती है. जो कि कई कारकों से प्रभावित होती है."

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