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Explainer: AI महाकुंभ में क्‍या करने वाले हैं पीएम मोदी, दुनिया के 90 देश हो रहे शामिल

भारत की अहमियत इस पेरिस एआई एक्शन समिट में इस बात से भी बढ़ जाती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन के सह अध्यक्ष होंगे. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों को लगता है कि भारत को एआई के मामले में अहम भूमिका निभानी है.

पेरिस एआई में भारत, चीन, अमेरिका जैसे बड़े देशों को बुलाया

नई दिल्‍ली:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है. एआई की अहमियत इतनी बढ़ गई है कि फ्रांस की राजधानी पेरिस में अगले हफ्ते दो दिनों का वैश्विक सम्मेलन होने जा रहा है, जिसमें 90 देशों के प्रमुख या उप प्रमुख पहुंच रहे हैं. भारत से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जा रहे हैं, जिन्हें सम्मेलन में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ सह अध्यक्ष भी बनना है, लेकिन ऐसे प्रोटोकॉल से आगे कैसे पेरिस सम्मेलन का एआई भारत के लिए डबल एआई है, जैसा प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, उसको समझने के लिए देखिए हमारी खास रिपोर्ट.

पेरिस एआई में भारत, चीन, अमेरिका जैसे बड़े देशों को बुलाया

दुनिया पर सिक्का उसका ही चलेगा जिसके हाथों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई की ताकत होगी. इस ताकत की लड़ाई में एक तरफ अमेरिका है, दूसरी तरफ चीन है. और इन दोनो के बीच संतुलन का एक नया खेल पेरिस में होने जा रहा है- जिसे पेरिस एआई का नाम दिया गया है. 10 और 11 फरवरी को फ्रांस की राजधानी पेरिस में होने वाले पेरिस एआई में भारत, चीन, अमेरिका जैसे बड़े देशों को बुलाया है. दुनिया के करीब 90 देशों को बुलाया गया है. भारत की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं. एआई को लेकर भारत की गंभीरता का अंदाजा आप इस साल के बजट से लगा सकते हैं, जिसमें सरकार ने एआई पर 500 करोड़ रुपये का बजट रखा है.

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भारत की तकनीकी ताकत को ग्लोबल फोरम पर उभरने का मौका

भारत की अहमियत इस पेरिस एआई एक्शन समिट में इस बात से भी बढ़ जाती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन के सह अध्यक्ष होंगे. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों को लगता है कि भारत को एआई के मामले में अहम भूमिका निभानी है. मैक्रों ने भारत को एक महत्वपूर्ण देश माना जो एआई के विकास और उसके दुरुपयोग पर रोक में सार्थक भूमिका निभा सकता है. अमेरिका और चीन में एआई के लिए छिड़े युद्ध जैसी स्थिति में भी भारत की भूमिका काफी अहम हो जाती है. साथ ही पीएम मोदी की मौजूदगी भारत की तकनीकी ताकत को ग्लोबल फोरम पर उभरने के लिए एक मौका देगा. 

पेरिस सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप निमंत्रण के बावजूद नहीं जा रहे हैं, बल्कि उनकी जगह उनके उप राष्ट्रपति वहां पहुंचेंगे. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का स्वयं वहां जाना इस बात को साफ कहता है कि भारत एआई के विकास और उसके इस्तेमाल के कायदे कानूनों को लेकर कितना गंभीर है. खास बात ये है कि पेरिस एआई सम्मेलन का एजेंडा और भारत का नजरिया काफी मिलता है. इसीलिए भारत की मौजूदगी के कारण पेरिस सम्मेलन की अहमियत काफी बढ़ गई है.

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भारत की अहमियत इसलिए है, क्‍योंकि...

सम्मेलन में एआई के विकास और उसके लिए वैश्विक दिशा निर्देश बनाने पर चर्चा होगी, ताकि लोगों की भलाई के लिए इसका बेहतर इस्तेमाल हो सके. भारत का भी यही रुख है और इसीलिए 1 फरवरी को पेश बजट में भारत ने एआई के जरिए विकास और नई खोज के लिए काम कर रहा है. सम्मेलन में एआई के उपयोग से जुड़े सामूहिक हितों पर चर्चा की जाएगी. भारत कृषि, स्वास्थ्य और टिकाऊ शहरी विकास के लिए एआई में एक्सीलेंस के तीन सेंटर बनाने जा रहा है. सम्मेलन में माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, मेटा और अल्फाबेट जैसी कंपनियों ने जिस तरह एआई पर अपने नियंत्रण की कोशिश की, उसपर भी चर्चा होगी. ऐसे में भारत की अहमियत इसलिए है कि यहां करीब साठ फीसदी कंपनियों के पास एआई के प्रोजेक्ट हैं. दरअसल फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने अमेरिका और चीन के बीच एआई पर बैल दौड़ को रोकने के लिए एक पहल कर दी है. अब देखिए कि दो दिनों के एआई मंथन से कितना अमृत और कितना जहर निकलता है. 

AI की दुनिया में भारत

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत चौथे नंबर पर है. सबसे ऊपर अमेरिका है, फिर चीन और ब्रिटेन, उसके बाद भारत.
  • आज भारतीय कंपनियों में एआई की पैठ इतनी बढ़ चुकी है कि 70 फीसदी कंपनियों में हाइब्रिड आईटी वाले एआई का वातावरण है.
  • एआई पर भारत अगले दो सालों में यानी 2027 तक 5.1 अरब डॉलर यानी  44 हजार करोड़ रुपये खर्च करने वाला है.
  • वहीं, 2030 तक भारत में एआई से 33 लाख 80 हजार करोड़ रुपये बरसने की संभावना है.
  • इतना नही अगले दो साल में भारत में एआई से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में करीब एक लाख बीस हजार नौकरियां मिलने के आसार हैं.

भारत में काम का माहौल हाइब्रिड लेवल पर

रिपोर्ट बताती है कि एआई पर काम कर रहे अग्रणी देश और एआई पर पिछड़े देश का एआई को लेकर अलग-अलग नजरिया है. वैश्विक स्तर पर, एआई-अग्रणी देशों में 67 फीसदी कंपनियों के पास हाइब्रिड आईटी वातावरण है. भारत 70 फीसदी के साथ अग्रणी है और जापान 24 फीसदी के साथ पीछे है, तो भारत को 2030 तक 34 लाख मूल्य का फायदा. गूगल ने बीते साल एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें यह अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक भारत में एआई को अपनाने से कम से कम 33.8 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में अमेरिका सबसे आगे है. इसके बाद चीन, ब्रिटेन, भारत, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, जापान और सिंगापुर का नंबर है. भारत में इसका मार्केट तेजी से बढ़ रहा है. इंटेल और इंटरनेशनल डेटा कॉरपोरेशन (आईडीसी) की ओर से बीते साल जारी एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार, भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर खर्च 2023 से 31.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है. यह 2027 तक 5.1 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. भारत में टेक्नोलॉजी सेक्टर में अगले दो साल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जनरेटिव AI और एनालिटिक्स में नौकरियों के 1.2 लाख मौके बनेंगे. जहां भारत सधे पांवों से एआई की दुनिया में अपने कदम बढ़ा रहा रहा है, वही इस वक्त अमेरिका और चीन में ये होड लगी है कि एआई की बादशाहत किसके पास रहेगी. डीपसेक के बाद ये जंग और तीखी होती दिख रही है.

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चीन-अमेरिका में AI पर जंग छिड़ी

अमेरिका और चीन में एआई पर जंग छिड़ी हुई है, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी के बाद ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनके टकराव के कई अहम कारणों ने सुर्खियां बटोरी. टैरिफ से टेक्नोलॉजी तक जिनमें एआई का मामला सबसे अहम है. चीनी एआई डीपसीक के आते ही अमेरिका में भूचाल मच गया. ये स्वाभाविक था, क्योंकि डीपसीक एक हफ्ते के भीतर अमेरिका में ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो गई. पूरी तरफ मुफ्त होने के कारण इसको सबसे ज्यादा लोगों ने अमेरिका में ही डाउनलोड किया. गूगल प्ले स्टोर पर ही ये टॉप रेटेड फ्री ऐप बन गया. इसके कारण अमेरिकी कंपनी एनवीडिया के शेयरों में इतनी गिरावट हुई कि उसके 600 अरब डॉलर डूब गए यानी 50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रकम स्वाहा हो गई और खास बात ये है कि ये सिर्फ 1.3 अरब डॉलर में ही बना था. संयोग देखिए कि जिस 20 जनवरी को ट्रंप की ताजपोशी हुई, उसी दिन एआई डीपसीक भी लॉन्च हुआ. हालांकि, ट्रंप डीपसीक की तारीफ करके अमेरिका में उसका जवाब ढूंढने की बात कर रहे हैं.

  • डीपसीक  V3 एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट है, जिसे लिआंग वेनफेंग की स्टार्टअप कंपनी ने तैयार किया है.
  • वेनफेंग AI और क्वांटिटेटिव फाइनेंस में बैकग्राउंड वाले इंजीनियर हैं.
  • इस कंपनी को जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया था, जिसका  हेडक्वॉर्टर चीन के हांगचो में है. 
  • डीपसीक के लिआंग वेनफेंग ने हेज फंड के जरिए निवेशक जुटाया.
  • वेनफेंगउन्होंने अमेरिका की सबसे बड़ी चिप मेकिंग कंपनी एनवीडिया ए100 चिप्स के ज़रिए एक स्टोर बनाया था. 
  • कहा जा रहा है कि करीब 50 हजार चिप्स के कलेक्शन से उन्होंने डीपसीक को लॉन्च किया था.

अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के अगले ही दिन डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे बड़े एआई नेटवर्क तैयार करने का ऐलान किया था, जिसका नाम स्टारगेट रखा गया. इसे चैटजीपीटी के निर्माता की तरफ से ओपनएआई ही ओरेकल और सॉफ़्टबैंक के साथ मिलकर तैयार करेगा. इसमें 500 अरब डॉलर तक का निवेश करने की बात है. प्रारंभिक निवेश 100 अरब डॉलर होने की उम्मीद है और यह राशि पांच गुना तक बढ़ सकती है. इसके जरिए अमेरिका टेक्सास में डेटा केंद्रों और बिजली उत्पादन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए काम शुरू करेगा, ताकि तेज़ी से विकसित हो रहे एआई का और विकास किया जा सके. हालांकि, ट्रंप के सबसे करीबी एलन मस्क ही इसमें अडंगा लगा रहे थे. एक तरफ एआई पर अमेरिका के भीतर ही तनातनी बढ़ी हुई है, दूसरी तरफ डीपसीक के उछाल ने अमेरिका और चीन के बीच नए तकनीक युद्ध का संकट पैदा कर दिया है. स्टारगेट पर अमेरिका का काम जारी है, लेकिन डीपसीक का असर दिखने लगा है. 

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