फाइल फोटो : अरविंद केजरीवाल
नई दिल्ली:
जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान किसान गजेंद्र सिंह द्वारा की गई आत्महत्या के मामले में अब आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को नया झटका लगा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने गजेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा दिए जाने के फैसले पर सवाल उठाए हैं। साथ ही केजरीवाल सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई है।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा है कि गजेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा कैसे, किसने और किन नियमों के आधार पर दे दिया गया? इस बाबत न्यायालय ने सरकार ने चार हफ्ते में जवाब भी तलब कर लिया है।
दिल्ली सरकार के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील ने जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गजेंद्र की स्मृति में प्रतिमा लगाने से रोकने की मांग की गई थी। याचिका में यह कहा गया कि इस तरह के फैसले से आम लोगों में काफी गलत संदेश जाएगा और यह खुदकुशी जैसे अपराध को महामंडित करने जैसा होगा।
दरअसल, बीते 22 अप्रैल को राजस्थान के दौसा के रहने वाले किसान गजेंद्र ने जंतर-मंतर पर पेड़ पर चढ़कर कथित तौर पर फांसी लगा ली थी। यह घटना केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान हुई थी। गजेंद्र के फांसी लगाए जाने के दौरान भी केजरीवाल और उनके नेताओं द्वारा भाषणबाजी जारी रखने की बाद में चौतरफा आलोचना भी हुई थी। इसके बाद विपक्ष के निशाने पर आई दिल्ली सरकार ने गजेंद्र को 'शहीद' का दर्जा दिया था।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा है कि गजेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा कैसे, किसने और किन नियमों के आधार पर दे दिया गया? इस बाबत न्यायालय ने सरकार ने चार हफ्ते में जवाब भी तलब कर लिया है।
दिल्ली सरकार के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील ने जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गजेंद्र की स्मृति में प्रतिमा लगाने से रोकने की मांग की गई थी। याचिका में यह कहा गया कि इस तरह के फैसले से आम लोगों में काफी गलत संदेश जाएगा और यह खुदकुशी जैसे अपराध को महामंडित करने जैसा होगा।
दरअसल, बीते 22 अप्रैल को राजस्थान के दौसा के रहने वाले किसान गजेंद्र ने जंतर-मंतर पर पेड़ पर चढ़कर कथित तौर पर फांसी लगा ली थी। यह घटना केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान हुई थी। गजेंद्र के फांसी लगाए जाने के दौरान भी केजरीवाल और उनके नेताओं द्वारा भाषणबाजी जारी रखने की बाद में चौतरफा आलोचना भी हुई थी। इसके बाद विपक्ष के निशाने पर आई दिल्ली सरकार ने गजेंद्र को 'शहीद' का दर्जा दिया था।
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