दिल्ली की अदालत ने 2020 में प्रदर्शन करने संबंधी मामले में आप के पूर्व मंत्री और अन्य को बरी किया

अदालत ने कहा, ‘‘इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपियों को सीआरपीसी (आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 144 के तहत बड़े समारोहों पर रोक लगाने के बारे में लाउडस्पीकर / बैनर / पोस्टर के माध्यम से सूचित किया गया था.’’

दिल्ली की अदालत ने 2020 में प्रदर्शन करने संबंधी मामले में आप के पूर्व मंत्री और अन्य को बरी किया

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली :

दिल्ली की एक अदालत ने सितंबर 2020 में कोविड-19 के कारण लागू प्रतिबंधात्मक आदेशों के बावजूद पेट्रोल एवं डीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ प्रदर्शन करने के मामले में दिल्ली के पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम, आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक दुर्गेश पाठक और 36 अन्य को बरी कर दिया है.

अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट वैभव मेहता ने 25 नवंबर को पारित आदेश में कहा कि अभियोजन यह साबित करने में नाकाम रहा कि क्या इन प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेने और प्राथमिकी दर्ज करने के पहले उन्हें निषेधाज्ञा लागू होने की विधिवत सूचना दी गई थी.

अदालत ने कहा कि अभियोजन यह भी साबित करने में असफल रहा कि आरोपी अवैध सभा का हिस्सा थे और निषेधाज्ञा अधिसूचना का उल्लंघन कर घटनास्थल पर मौजूद थे.

उसने कहा कि यह मानना तर्कसंगत है कि आरोपियों को बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाए जाने संबंधी अधिसूचना की जानकारी नहीं थी.

अदालत ने कहा, ‘‘इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपियों को सीआरपीसी (आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 144 के तहत बड़े समारोहों पर रोक लगाने के बारे में लाउडस्पीकर / बैनर / पोस्टर के माध्यम से सूचित किया गया था.''

पुलिस का आरोप था कि आरोपियों ने यह समझाए जाने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के विरोध में एक सितंबर, 2020 को प्रदर्शन किया था कि कोविड-19 वैश्विक महामारी फैलने के कारण इस प्रकार की सभा, प्रदर्शन या रैली की अनुमति नहीं है.

न्यायाधीश ने कहा कि कुल 38 अभियुक्तों में से आठ महिलाएं थीं, लेकिन अभियोजन पक्ष ने गवाहों की सूची में एक भी महिला पुलिस अधिकारी का उल्लेख नहीं किया है जिससे यह बताया जा सके कि उन्होंने महिला प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया था.

उन्होंने कहा कि यदि कोई महिला पुलिस अधिकारी मौजूद नहीं थी तो अभियोजन पक्ष यह बताने में विफल रहा कि महिला प्रदर्शनकारियों को कैसे हिरासत में लिया गया और यदि उन्हें हिरासत में लिया गया, तो उन्हें किसने हिरासत में लिया.

अदालत ने कहा, ‘‘इस अदालत का मानना है कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में विरोधाभास हैं.''

उसने कहा कि पुलिस अधिकारियों ने तय सिद्धांतों, कानूनी उदाहरणों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा दिए गए निर्देशों की अनदेखी करते हुए जांच में गंभीर खामियां कीं.

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