नई दिल्ली:
योगगुरु बाबा रामदेव के अनशन की चौथी रात को रविवार (छुट्टी का दिन) होने के बावजूद अनशनस्थल पर समर्थकों की संख्या में गिरावट आई।
आयोजकों को उम्मीद थी कि सप्ताहांत में स्थानीय लोग अनशन को समर्थन देने के लिए उमड़ेंगे लेकिन जैसे-जैसे शाम ढली, समर्थकों की संख्या कम होते गई। योग गुरु के समर्थकों में बड़ी संख्या दिल्ली के बाहर से आए लोगों की है। पहले दिन जहां 20-22 हजार समर्थक थे वहीं रविवार को उनकी संख्या सिमट कर आठ से 10 हजार के बीच रह गई।
रामदेव ने नौ अगस्त को काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत तीन दिनों के सांकेतिक उपवास से की थी और कई समर्थकों को उम्मीद थी कि तीन दिनों में आंदोलन का नतीजा आ जाएगा लेकिन चार रातों के बाद अब समर्थकों में संशय की स्थिति देखी जा रही है।
अनशन की पहली रात महिलाओं के बनाए दीर्घा में उनकी अच्छी खासी संख्या थी, वहीं रविवार को दीर्घा में काफी जगह खाली दिखी। ऐसा ही नजारा लगभग पूरे अनशनस्थल पर देखने को मिला।
अन्ना हजारे के पिछले साल हुए हुए अनशन और हाल ही में जंतर-मंतर पर हुए उपवास में सप्ताहांतों में शहरी मध्यवर्ग की मौजूदगी अच्छी खासी संख्या में देखी गई थी, वहीं रामदेव के आंदोलन में उनकी संख्या नाममात्र ही रही।
आयोजकों को उम्मीद थी कि सप्ताहांत में स्थानीय लोग अनशन को समर्थन देने के लिए उमड़ेंगे लेकिन जैसे-जैसे शाम ढली, समर्थकों की संख्या कम होते गई। योग गुरु के समर्थकों में बड़ी संख्या दिल्ली के बाहर से आए लोगों की है। पहले दिन जहां 20-22 हजार समर्थक थे वहीं रविवार को उनकी संख्या सिमट कर आठ से 10 हजार के बीच रह गई।
रामदेव ने नौ अगस्त को काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत तीन दिनों के सांकेतिक उपवास से की थी और कई समर्थकों को उम्मीद थी कि तीन दिनों में आंदोलन का नतीजा आ जाएगा लेकिन चार रातों के बाद अब समर्थकों में संशय की स्थिति देखी जा रही है।
अनशन की पहली रात महिलाओं के बनाए दीर्घा में उनकी अच्छी खासी संख्या थी, वहीं रविवार को दीर्घा में काफी जगह खाली दिखी। ऐसा ही नजारा लगभग पूरे अनशनस्थल पर देखने को मिला।
अन्ना हजारे के पिछले साल हुए हुए अनशन और हाल ही में जंतर-मंतर पर हुए उपवास में सप्ताहांतों में शहरी मध्यवर्ग की मौजूदगी अच्छी खासी संख्या में देखी गई थी, वहीं रामदेव के आंदोलन में उनकी संख्या नाममात्र ही रही।
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