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This Article is From Apr 14, 2023

डॉ. अंबेडकर की प्रेरणा से दलित छात्र तय कर रहे तरक्की का रास्ता, PhD और MPhil डिग्रीधारी छात्रों ने साझा किया अनुभव

भारत में कई दलित संगठन छात्रों को विदेशों तक में शिक्षा ग्रहण करने में मदद कर रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. अब वंचित छात्र दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई कर रहे हैं.

डॉ. अंबेडकर की प्रेरणा से दलित छात्र तय कर रहे तरक्की का रास्ता, PhD और MPhil डिग्रीधारी छात्रों ने साझा किया अनुभव
डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को 'याचना' से मुक्ति का माध्यम बनाया.
नई दिल्ली:

कभी दूर की कौड़ी समझे जाने वाले उच्च शिक्षा में आज दलित और वंचित वर्ग के छात्र भी झंडा गाड़ रहे हैं. मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से मास्टर्स, एम. फिल और पीएचडी की डिग्री हासिल कर निकले दलित, बहुजन और आदिवासी छात्रों के चेहरे की खुशी काफी कुछ बयां कर रही थी. उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष, अनुभव और इस यात्रा को साझा करते हुए दलित आइकन और भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपना प्रेरणा स्रोत बताया.

इस साल टीआईएसएस के दीक्षांत समारोह में पीएचडी, एम.फिल और मास्टर्स की उपाधि से सम्मानित छात्रों ने बताया कि हम पिछड़े समुदाय से आते हैं, काफी संघर्ष के बाद हम आज यहां पहुंचे हैं, ऐसे में हमारी ये यात्रा विशेष है. हमें काफी खुशी है कि अपने गांव और अपने समाज के लिए ऐसी पहल करने में सफल रहे. उम्मीद है कि आगे और भी छात्र इससे सीखकर अपने सपनों को पूरा करेंगे. 

डॉ. अंबेडकर ने जगाई शिक्षा की अलख
भारत में सदियों से पढ़ाई, खासकर उच्च शिक्षा तक समृद्ध सवर्ण तबके की ही पहुंच थी. आजादी के पहले से राजा, नवाब, जमींदार या बड़े व्यापारी के बच्चे पढ़ने के लिए विदेश जाते थे. तब फॉरेन रिटर्न होना गर्व की बात समझी जाती थी. वहीं दूसरी तरफ वंचित वर्गों के लिए प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा भी सुलभ नहीं थे. उनके लिए शिक्षा हासिल करना बेहद मुश्किल था. लेकिन इनके बीच डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ऐसे चंद अपवादों में से एक थे, जो दलित होते हुए भी विदेश तक पढ़ने गए. उन्हें बड़ोदा के मराठा राजा गायकवाड़ ने स्कॉलरशिप दी थी.

आजादी के समय 12 प्रतिशत थी भारत की साक्षरता दर
डॉक्टर अंबेडकर ने वंचित वर्गों के सामने एक मिसाल पेश की और शिक्षा को याचना से मुक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बनाया. उन्होंने अछूत समझे जाने वाले इस तबके के छात्रों के लिए शिक्षा का द्वार खोला. आजादी के समय साक्षरता दर सिर्फ 12 प्रतिशत थी, जिसमें वंचित वर्ग लगभग नगण्य था. उनके लिए शिक्षा हासिल करना लगभग नामुमकिन था. लेकिन डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने ये रास्ता तय कर उनके लिए शिक्षा की अलख जगाई.

90 के दशक में मजबूत हुई सामाजिक न्याय की लड़ाई
हालांकि आजादी के बाद के कई दशकों में शिक्षा को लेकर नई-नई नीतियां और कार्यक्रम बनाए गए. खासकर 90 के दशक में दलित और पिछड़ी जातियों के नेतृत्व में सामाजिक न्याय की लड़ाई मजबूत हुई. बड़ी यूनिवर्सिटीज और तकनीकी संस्थानों में वंचित वर्गों की मौजूदगी दिखने लगी. ओबीसी आरक्षण के बाद शिक्षण संस्थानों में सामाजिक समीकरण बदला. आदिवासी, दलित और अति पिछड़ी जातियों के छात्रों की तादाद बढ़ी. वंचित वर्ग के लिए कई नए सामाजिक संगठन खड़े हुए.

बड़े संस्थानों की कुछ घटनाओं से बढ़ती है चिंता
लेकिन अब भी उच्च शिक्षा में पहुंच के लिए वंचित वर्गों को संघर्ष करना पड़ रहा है. देश के कई विश्वविद्यालयों से आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती रहती है, जो चिंता का विषय है. फरवरी 2016 में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने सबको झकझोर दिया. हाल के दिनों में आईआईटी बॉम्बे के छात्र दर्शन सोलंकी ने खुदकुशी कर ली. कहा जाता है कि समाज में व्याप्त भेदभाव और घृणा ने इन्हें ये खौफनाक कदम उठाने के लिए मजबूर किया. जबकि सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए.

विदेश में शिक्षा हासिल करने वाले दलित छात्रों की बढ़ी है तादाद
सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में भी लाखों की संख्या में भारत के छात्र शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं. अमेरिका में सबसे ज्यादा विदेशी स्टूडेंट भारत के हैं. ये संख्या लगभग दो लाख है. कहा जाता है कि दूसरे देशों में पढ़ने वाले ज्यादातर भारतीय छात्र सर्वण समुदाय से आते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में सोशल मीडिया टाइम लाइन को देखा जाए तो देश से बाहर जाकर शिक्षा हासिल करने वाले दलित छात्रों की संख्या भी बढ़ रही है. वे संघर्ष कर के आगे बढ़ रहे हैं. वंचित वर्गों में भी इसको लेकर रुचि जगी है.

देश-दुनिया में जातिवाद को लेकर जागरुकता बढ़ी
इसका कारण ये भी है कि केंद्र और राज्य सरकारें वंचित वर्गों के छात्रों को पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप दे रही है. संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण के कारण इस वर्ग के लाखों लोग अब मिडिल क्लास में भी आए हैं. देश और दुनिया में जातिवाद को लेकर भी जागरुकता बढ़ी है. 

मिल रहे हैं सकारात्मक परिणाम
भारत में कई दलित संगठन छात्रों को विदेशों तक में शिक्षा ग्रहण करने में मदद कर रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. अब वंचित छात्र दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई कर रहे हैं. आने वाले एक या दो दशक में बहुजन छात्र भी बड़ी संख्या में दुनिया के दूसरे देशों में नजर आएंगे.

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