डकोटा विमान की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
भारतीय वायुसेना में एक बार फिर से एक और विंटेज एयरक्राफ्ट डकोटा शामिल गया है. इससे पहले वायुसेना के पास पहले से ही विंटेज एयरक्राफ्ट के तौर पर टाइगर मोथ और हार्वर्ड मौजूद है.
वायुसेना में एक बार फिर से एक और विटेंज एयरकाफ्ट डकोटा शामिल हो गया है. ये विमान लगभग कबाड़ हो चुका था, लेकिन इसे मरम्मत कर उड़ने लायक बना दिया गया है. डकोटा ब्रिट्रेन से करीब 9750 किलोमीटर की दूरी तय करके भारत पहुंचा है. 1930 के दशक का ये एयरकाफ्ट सात देशों यानि कि आधी दुनिया पार करके बिना किसी रुकावट के पहुंच गया.
वीडियो: देखिये कैसे हजारों फीट की ऊंचाई से छलांग लगा रहे हैं भारतीय वायुसेना के जवान
डकोटा पायलट विंग कमांडर अजय मेनन ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं इसे उड़ाकर बिना किसी दिक्कत के ले आया. गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर डकोटा के पायलट रहे एयर कमाडोर एम के चन्द्रशेखर ने इसकी सांकेतिक चाबी वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोवा को सौंपी. डकोटा ने पाकिस्तान के साथ 1947 और 1971 की लंबी लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. 1947 में कश्मीर की घाटी को बचाने में
इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कहा जाता है कि डकोटा की वजह से ही पुंछ भारत के पास है. डकोटा ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का ढाका का मोर्चा ढहाने में भी मदद की थी.
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रिटायर एयर कमाडोर एम के चन्द्रशेखर ने कहा कि हमने ये वायुसेना को इसलिए दिया है कि ताकि वो परंपरा को कायम रख सके. 70 सालों की यादों को जिंदा रख सकें. भारतीय वायुसेना ने डकोटा का नाम परशुराम रखा है. वायुसेना के पास पहले से ही विंटेज एयरक्राफ्ट के तौर पर टाइगर मोथ और हार्वर्ड मौजूद है और अगले पांच सालों से छह और विंटेज एयरक्राफ्ट आएंगे.
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वायुसेना में एक बार फिर से एक और विटेंज एयरकाफ्ट डकोटा शामिल हो गया है. ये विमान लगभग कबाड़ हो चुका था, लेकिन इसे मरम्मत कर उड़ने लायक बना दिया गया है. डकोटा ब्रिट्रेन से करीब 9750 किलोमीटर की दूरी तय करके भारत पहुंचा है. 1930 के दशक का ये एयरकाफ्ट सात देशों यानि कि आधी दुनिया पार करके बिना किसी रुकावट के पहुंच गया.
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डकोटा पायलट विंग कमांडर अजय मेनन ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं इसे उड़ाकर बिना किसी दिक्कत के ले आया. गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर डकोटा के पायलट रहे एयर कमाडोर एम के चन्द्रशेखर ने इसकी सांकेतिक चाबी वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोवा को सौंपी. डकोटा ने पाकिस्तान के साथ 1947 और 1971 की लंबी लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. 1947 में कश्मीर की घाटी को बचाने में
इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कहा जाता है कि डकोटा की वजह से ही पुंछ भारत के पास है. डकोटा ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का ढाका का मोर्चा ढहाने में भी मदद की थी.
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रिटायर एयर कमाडोर एम के चन्द्रशेखर ने कहा कि हमने ये वायुसेना को इसलिए दिया है कि ताकि वो परंपरा को कायम रख सके. 70 सालों की यादों को जिंदा रख सकें. भारतीय वायुसेना ने डकोटा का नाम परशुराम रखा है. वायुसेना के पास पहले से ही विंटेज एयरक्राफ्ट के तौर पर टाइगर मोथ और हार्वर्ड मौजूद है और अगले पांच सालों से छह और विंटेज एयरक्राफ्ट आएंगे.
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