कृषि कानूनों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गई तीन सदस्यीय समिति के एक सदस्य, किसान नेता अनिल घनवत (Anil Ghanwat)ने सोमवार को अपनी अंतिम रिपोर्ट सार्वजनिक की. NDTV के साथ बातचीत में घनवत ने इस आलोचना को सिरे से नकार दिया कि उन्होंने सिर्फ, विवादित कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले किसानों से ही राय ली. बातचीत के दौरान घनवत ने बताया कि जिनकी राय (Interviewed )ली गई, उन संगठनों के नाम उनके पास नहीं हैं लेकिन RTI फाइल करके यह सूची प्राप्त की जा सकती है.गौरतलब है कि सोमवार को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुणे निवासी किसान नेता ने कहा था कि उन्होंने रिपोर्ट जारी किए जाने के बारे में सुप्रीम कोर्ट को तीन बार लिखा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर उन्हें खुद यह करना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित इस समिति के दो अन्य सदस्य-अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद नहीं थे. रिपोर्ट में दावा किया गया कि जिन किसानों से उन्होंने बात की, उसमें से 86% कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं थे. कमेटी की ओर से जिन 61 संगठनों से बात की गई, उनके नाम भी रिपोर्ट में नहीं हैं. घनवत ने कहा कि 'इसे छोटा रखने के लिए' ऐसा किया गया.
यह पूछे जाने पर कि क्या जवाब देने वालों (Respondents)के विवरण मीडिया में शेयर किए जा सकते हैं, घनवत ने कहा, 'वे सुप्रीम कोर्ट के पास उपलब्ध हैं और वे इसे बाद में साझा कर सकते हैं. ' इस बारे में दबाव डाले जाने पर उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं मालूम कि यह डेटा किसके पास है? जिसके पास यह है, वह आगे आकर इसे जारी करे. आप RTI (Right to Information Act)के अंतर्गत इसकी मांग कर सकते हैं.' कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने इस समिति का बायकॉट किया था. किसानों का कहना था कि समिति के तीनों सदस्य कृषि कानून समर्थक हैं. बाद में पीएम ने राष्ट्र के नाम संबोधन में इन कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की थी. कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले किसानों के संदर्भ में घनवत ने कहा, 'यदि ये लोग अपना प्रतिनिधित्व चाहते थे तो इन्हें समिति के पास आना चाहिए था.'
यह पूछने पर कि समिति प्रदर्शन स्थल तक क्यों नहीं गई जहां ये किसान नवंबर 2020 से डेरा डाले हुए थे, उन्होंने कहा, 'यह गणतंत्र दिवस के आसपास की बात है...सुरक्षा को लेकर मुद्दे थे, ऐसे में हम प्रदर्शन स्थल नहीं जा सकते थे.' हालांकि घनवत ने यह स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि रिपोर्ट प्रतिनिधित्व करने वाली (Representative)नहीं है. उन्होंने कहा, 'हमारी जिन 73 संगठनों से बात हुई, उसमें से 61 ने कुछ सुझावों के साथ कृषि कानूनों का समर्थन किया. 15 से 16 संगठनों ने ही कहा कि वे कानूनों को निरस्त करने के पक्ष में हैं. ' उन्होंने कहा, 'जिन किसानों को हमने आमंत्रित किया, उसमें से कई कोविड के कारण आने में असमर्थ थे. कई अन्य के नेटवर्क इश्यु (जब ऑनलाइन इंटरव्यू का सुझाव दिया था)थे, ऐसे में हम उनके विचार नहीं जान सके.' 20 हजार से अधिक के मिले ऑनलाइन रिस्पांस में से केवल 5000 जवाब देने वाले ही किसान थे. अन्य के बारे में घनवत ने कहा, 'वे भी हितधारक (stakeholders) हैं. यह एक खुलास पोर्टल था.' इन उत्तरदाताओं की पहचान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'वे व्यापारी, निर्यातक, मिल मालिक हैं. जो भी कृषि क्षेत्र में काम करता है वह stakeholders है.'
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