किसान नेता और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav)ने तीनों कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाए गए पैनल के दावे को लेकर प्रतिक्रिया दी है. मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित पैनल ने दावा किया है कि देश के 86% किसान संगठन, कृषि कानूनों (farm law)से खुश थे. इस पैनल में शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल धनवत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी शामिल थे. योगेंद्र यादव ने NDTV से बात करते हुए कहा, 'मैं अनिल घनवत जी को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने देश की सेवा की. इससे तीन बातें सामने आईं कि पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ही रिपोर्ट को क्यों दबाकर रखा. दूसरा ये सिर्फ पुराने मामले नहीं हैं. आने वाले षड्यंत्रों का भी खुलासा हुआ है जो किसानों के लिए खतरे की घंटी है.' यादव ने कहा कि तीसरी बात यह कि इस रिपोर्ट से उन्हें ये समझ आ गया होगा कि क्यों एकेएम ने इसका बॉयकॉट किया था. कमेटी के दो हिस्से हैं पहला कि कमेटी कहती है कि हमने किसानों से बात की. एससी कहता था कि किसानों से बात कीजिए उनकी शिकायतों के बारे में जानिए. शिकायतें उनकी थीं जो सड़कों पर प्रदर्शन (farmers protest)कर रहे थे. 450 किसान संगठन एसकेएम के बैनर तले इन कानूनों के खिलाफ विरोध कर रहे थे लेकिन इनमें से एक भी संगठन ने इस कमेटी(सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी) से बात नहीं की. फिर ये फिर ये 73 संगठन कौन से है.
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष ने कहा, 'कमेटी कहती है कि इसके 3 करोड़ 80 लाख लोग थे तो अनिल जी ये नाम बता दीजिए जो फेक कंपनियां मिलती है वैसे ही ये फेक संगठन मिलेंगे. इनसे वो संगठन मिलने आए जिन्हें कानूनों से शिकायत नहीं थी. संगठनों के अलावा कमेटी कहती है कि हमने किसानों की बात सुनी लेकिन सवाल यह है कि ये आकर कौन से किसानों से मिले. न सर्वे करवाया. सिर्फ एक पोर्टल पर कहा कि देश के किसान उस पोर्टल पर जवाब दे दीजिए इन्हें 19,000 जवाब आ गए. इनमें से कितने किसान हैं. खुद कमेटी कहती है कि इनमें से 5000 किसान हैं. उनकों बाकी 14 हजार के साथ मिलाकर कहती है कि सब ठीक है लोग इसके पक्ष में हैं.
योगेंद्र यादव ने कहा कि चुनाव के समय, सर्वेक्षण हुए हैं. हर सर्वेक्षण में कानूनों के बारे में राय पूछी गई थी. उस समय आंदोलन चल रहा था. चारों राज्यों में लोगों ने कहा कि इन कानूनों को खत्म कर दें उनकी संख्या पांच गुना ज्यादा था. यूपी में पूछा गया तो जो कृषि कानूनों के पक्ष में थे वो 10 प्रतिशत थे और जो नहीं चाहते थे कानूनों को 90 प्रतिशत थे. लोग चाहते थे कि कानून हटें लेकिन ये कानून चुनाव का मुद्दा नहीं बना. मुद्दा बना तो हिंदू मुसलमान, राशन और गुंडागर्दी. उन्होंने कहा कि कुछ मुद्दे लोगों का मन बनाते और कुछ लोगों का वोट तय करते हैं लेकिन कुछ समय से दूसरे मुद्दे ऊपर आ गए हैं. सांप्रदायिकता, ध्रुवीकरण का मुद्दा आगे हो रहा है. लोग कहते हैं कि महंगाई जैसे मुद्दे हैं लेकिन लोग कहते हैं सरकार तो यही आनी चाहिए ये जो है इसे समझना होगा. ज्यादा गंभीर बात है कि रिपोर्ट वो शिफरिश देती है जो कि इसमें किसी ने कहा ही नहीं था. एससी ने कहा कानूनों के बारे में राय बताइए कमेटी के तीन लोगों ने अपनी राय दे दी लेकिन ये तीनों इन कानूनों के समर्थन में रहे हैं. उसके बाद कमेटी कहती है कि सरकारी खरीद जरूरत से ज्यादा हो रही है. ये राशन की दुकान में राशन मत दो लेकिन लोगों के अकाउंट में पैसे दे दो. राशन की दुकानें बंद कर दो, एमएसपी की खरीद बंद कर दो. यही तो दो खतरे थे, यही हम कहते थे. तो लोग कहते थे ये लोग अफवाह पैला रहे हैं, लेकिन वो अफवाह अब लिखित में आ गई है.
यादव ने कहा, 'ये तीन सदस्य खिलाड़ी हैं. यही लोग है जिन्होंने कानून बनवाए थे, इससे सरकार की नीयत स्पष्ट हो गई है. इसलिए ही किसान संगठनों ने इस कमेटी का बॉयकॉट किया था.ये भी स्पष्ट हो गया है कि एमएसपी के नाम पर हम राष्ट्रव्यापी आंदोलन क्यों चला रहे हैं. ये सरकार कहेगी कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी है लेकिन सब जानते हैं कि कौन क्या कर रहा है? सरकार माहौल बना रही है कि चोर दरवाजे से इन कानूनों को वापस लाया जाए. संयुक्त किसान मोर्चा और किसान इसे बर्दाश्त नहीं करेगा. एमएसपी को लेकर एक सप्ताह है.हम MSP सप्ताह मनाएंगे.'
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