चौंकिए मत, ये किसी अस्पताल के अहाते का दृश्य नहीं है. ये हक़ीक़त है दिल्ली से महज़ 80 किलोमीटर दूर ग्रेटर नोएडा के मेवला गोपालगढ़ गांव की. लोग बीमार हैं, अस्पताल में जगह नहीं लिहाज़ा यहां नीम के पेड़ के नीचे टहनियों से बांध कर ड्रिप लगाकर मरीज़ों को दवा दी जा रही है.67 साल के हरदीप सिंह के फेफड़ो में इंफेक्शन है, कोरोना पॉज़िटिव हैं और यहां इस तरह इलाज करवा रहे हैं. उनका कहना है कि अस्पताल में हालत और भी ख़राब है. यहां उन्हें ठीक लगता है. अस्पताल की हालत को देखते हुए गांव के लोगों ने मरीज़ों के लिए घरों में ही ऑक्सीजन सिलिंडर लगा लिए हैं.
55 साल की चंद्रावती को बुखार हुआ, सांस लेने में तकलीफ़ हुई तो बेटे दिनेश ने घर में ही ऑक्सीजन सिलिंडर लगवा दिया. दिनेश कहते हैं क्या करें गांव में कोई डॉक्टर आने को तैयार नहीं है. अस्पताल में भर्ती नहीं कर सकते फिर किसी से पूछकर काम चला रहे हैं. मां की हालत भी ठीक हो रही है. गांव में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां कोरोना जैसे लक्षण वाले मरीज ना दिखें.
यहां एक हफ्ते के भीतर पांच लोगों की मौत हो गई है. 65 साल के राजिन्दर सिंह को 5 मई को बुखार हुआ. सही वक्त पर मेडिकल मदद नहीं मिली, 8 मई को उनकी मौत हो गई. राजिन्दर सिंह के बेटे संजय सिंह ने कहा कि पिताजी को कोई डॉक्टर देखे तक नहीं. कोई कोरोना की जांच नहीं हुई. पिताजी छोड़कर चले गए, हम सब अनाथ हो गए. गांव में कोरोना की जांच ही नहीं हो रही.
गांव के प्रधान योगेश तालान के मुताबिक स्वास्थ विभाग की टीम यहां पहुंची ही नहीं. कह रहे हैं लोग मरने पर मजबूर हैं पर प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है. सब राम भरोसे पड़े हुए हैं. झोला छाप डॉक्टर का ही बस आसरा है. उधर जेवर इलाके के स्वास्थ्य अधिकारी मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज डॉक्टर पवन इससे इनकार करते हैं. उनका दावा है कि इस इलाके में हर रोज़ क़रीब 800 रैपिड एंटीजन और 600 आरटीपीसीआर टेस्ट किए जा रहे हैं. हालांकि आसपास के 38 गांवों को लिये ये टेस्टिंग भी काफ़ी कम है. ये हालत ग्रेटर नोएडा के जेवर के मेवला गोपालगढ़ गां की ही नहीं, आसपास के तमाम गांवों में ऐसे ही हालात हैं. कहते हैं भारत गांवों का देश है. अब गांव अगर इस हालत में होंगे तो भारत की हालत ख़ुद ही सोच लीजिए.
कोरोना का कहर बरकरार, एक बार फिर 4,000 से ज्यादा मौतें
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