कुली के बेटे खेमराज ने पास की प्री मेडिकल परीक्षा
जयपुर:
राजस्थान के बाड़मेर जिले के एक उन्नीस साल के लड़के ने अॉल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट पास किया है। वैसे यह कोई हैरत की बात नहीं है , लेकिन इसके पीछे छिपी मेहनत और मज़दूर की कहानी जरूर सराहनीय है। उन्नीस साल के खेमराज को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में 283 वीं रैंक हासिल हुई है।
खेमराज के पिता जुगताराम जोधपुर रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते हैं। उनकी गांव में सिर्फ एक झोपड़ी है। वहां न बिजली का कनेक्शन है न ही कोई अन्य व्यवस्था, लेकिन पिता ने ठान ली की बच्चे को कुछ बनाकर रहूंगा। दिन-रात मेहनत की, उधार भी लिया, अपने बेटे को कोटा से मेडिकल टेस्ट के लिए कोचिंग दिलवाई। बेटा पास हो गया है और अब पिताजी कहते हैं आगे की पढ़ाई के लिए भी वे मजदूरी करके पैसे जुटा ही लेंगे।
खेमराज फिलहाल अपने गांव सरनाउ में है। वहां एनडीटीवी से खास मुलाकात में उन्होंने बताया 'आगे सिलेक्शन हो गया है , पैसे की कमी तो है ही। पापा जितना कर पाएंगे वे करेंगे। अगर पैसे कम होंगे तो किसी से उधार लेकर करेंगे। अब मैं रुकने वाला नहीं हूं, मुझे डॉक्टर बनकर दिखाना ही है।'
जोधपुर में जुगताराम को खुशियां मनाने के लिए समय नहीं है। अब भी दिन-रात मेहनत की जरूरत है, ताकि खेमराज की आगे की पढ़ाई के लिए पैसा इकट्ठा हो जाए। कोचिंग के लिए एक लाख रुपये उधर लिए थे, वे भी चुकाने हैं।
खेमराज पहली कोशिश में पास नहीं हुआ था। पैसों की कमी के कारण कोचिंग में भी एक महीना लेट पहुंचा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। जाहिर है जुगताराम को खुशी मनेने का समय नहीं हो, लेकिन खेमराज के बारे में जब वे बात करते हैं तो उनकी आंखें भर आती हैं। वह कहते हैं 'मेरा यह सपना था कि उससे डॉक्टर बनाऊं। मैं मास्टर नहीं बन सकता, लेकिन उसने मेरा सपना पूरा किया।'
जुगताराम खुद पढ़े लिखे हैं। बीएड भी किया है, लेकिन नौकरी नहीं मिली तो कुली बन गए। वह कहते हैं कि मेरे सपने पूरे नहीं हुए, लेकिन अब अपने बेटे के सपनों को साकार करूंगा।
खेमराज के पिता जुगताराम जोधपुर रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते हैं। उनकी गांव में सिर्फ एक झोपड़ी है। वहां न बिजली का कनेक्शन है न ही कोई अन्य व्यवस्था, लेकिन पिता ने ठान ली की बच्चे को कुछ बनाकर रहूंगा। दिन-रात मेहनत की, उधार भी लिया, अपने बेटे को कोटा से मेडिकल टेस्ट के लिए कोचिंग दिलवाई। बेटा पास हो गया है और अब पिताजी कहते हैं आगे की पढ़ाई के लिए भी वे मजदूरी करके पैसे जुटा ही लेंगे।
खेमराज फिलहाल अपने गांव सरनाउ में है। वहां एनडीटीवी से खास मुलाकात में उन्होंने बताया 'आगे सिलेक्शन हो गया है , पैसे की कमी तो है ही। पापा जितना कर पाएंगे वे करेंगे। अगर पैसे कम होंगे तो किसी से उधार लेकर करेंगे। अब मैं रुकने वाला नहीं हूं, मुझे डॉक्टर बनकर दिखाना ही है।'
जोधपुर में जुगताराम को खुशियां मनाने के लिए समय नहीं है। अब भी दिन-रात मेहनत की जरूरत है, ताकि खेमराज की आगे की पढ़ाई के लिए पैसा इकट्ठा हो जाए। कोचिंग के लिए एक लाख रुपये उधर लिए थे, वे भी चुकाने हैं।
खेमराज पहली कोशिश में पास नहीं हुआ था। पैसों की कमी के कारण कोचिंग में भी एक महीना लेट पहुंचा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। जाहिर है जुगताराम को खुशी मनेने का समय नहीं हो, लेकिन खेमराज के बारे में जब वे बात करते हैं तो उनकी आंखें भर आती हैं। वह कहते हैं 'मेरा यह सपना था कि उससे डॉक्टर बनाऊं। मैं मास्टर नहीं बन सकता, लेकिन उसने मेरा सपना पूरा किया।'
जुगताराम खुद पढ़े लिखे हैं। बीएड भी किया है, लेकिन नौकरी नहीं मिली तो कुली बन गए। वह कहते हैं कि मेरे सपने पूरे नहीं हुए, लेकिन अब अपने बेटे के सपनों को साकार करूंगा।
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