
कांग्रेस ने शुक्रवार को सरकार से जातिवार गणना के प्रत्येक चरण के लिए एक 'स्पष्ट समय सीमा' की घोषणा करने और एससी, एसटी एवं ओबीसी के आरक्षण की 50 प्रतिशत की 'मनमानी सीमा' हटाने की अपनी मांग दोहराई. विपक्षी पार्टी ने कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा पारित प्रस्ताव में यह कहा. सीडब्ल्यूसी की अध्यक्षता पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने की और इसमें कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी तथा महासचिव जयराम रमेश, के सी वेणुगोपाल और प्रियंका गांधी वाद्रा सहित अन्य शरीक हुए.
सीडब्ल्यूसी द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार, ‘‘लगातार 11 वर्षों तक विरोध और इनकार के बाद, (नरेन्द्र) मोदी सरकार ने कांग्रेस की वह मांग स्वीकार कर ली है, जिसमें आगामी जनगणना में जाति के आधार पर जनसंख्या के आंकड़े जुटाने की बात कही गई थी. इन 11 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री ने बार-बार कांग्रेस नेतृत्व पर इस मांग को उठाने को लेकर हमले किए.''
प्रस्ताव में कहा गया है कि हालांकि, अब तक सरकार ने यह नहीं बताया है कि वह इस विषय में क्या कदम उठाएगी और न ही इसके लिए कोई वित्तीय प्रावधान किया गया है.
खरगे ने लिखा था पीएम को पत्र
इसमें उल्लेख किया गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 16 अप्रैल 2023 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर एक व्यापक और अद्यतन जातिवार गणना की मांग की थी. इसके साथ ही उन्होंने अनुसूचित जातियों(एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत की मनमानी सीमा हटाने की भी मांग की थी.
प्रस्ताव में कहा गया है कि राहुल गांधी देशव्यापी जातिवार गणना की ‘‘पुरजोर और निरंतर'' मांग करते रहे हैं. इसमें कहा गया है कि उन्होंने 2022 में उदयपुर में आयोजित नव संकल्प शिविर में इस बात पर जोर दिया था कि अगर सरकारी नीतियों को हाशिये पर मौजूद समाजों की वास्तविक ज़िंदगी को प्रतिबिंबित करना है, तो जातिगत आंकड़े जुटाना अत्यावश्यक है. पार्टी ने कहा, ‘‘यह मांग 2023 के रायपुर अधिवेशन में भी दोहराई गई थी और कांग्रेस के 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव घोषणा पत्रों में इसे केंद्र बिंदु में रखा गया. संसद में, देशभर के भाषणों में, दो भारत जोड़ो यात्राओं के दौरान और कल आयोजित प्रेस वार्ता में भी राहुल गांधी ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि जातिवार गणना सामाजिक न्याय को सुदृढ़ करने के लिए अनिवार्य है.''
पार्टी ने कहा कि उनका यह कहना रहा है कि आरक्षण, कल्याण और समावेशन की नीतियां पुराने अनुमानों या मनमानी सीमाओं पर नहीं, बल्कि ठोस तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए.
निजी संस्थानों में भी आरक्षण की मांग
कांग्रेस ने संविधान के अनुच्छेद 15(5) को तत्काल क्रियान्वित करने की भी मांग की, जो निजी शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी, दलितों और आदिवासियों को आरक्षण देने का प्रावधान करेगा. प्रस्ताव के अनुसार, ‘‘यह मांग कांग्रेस के घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से की गई थी और राहुल गांधी द्वारा इसे शैक्षिक न्याय की दिशा में एक जरूरी और लंबित कदम के रूप में दोहराया गया.'' पार्टी ने कहा कि आज जब उच्च शिक्षा में निजी संस्थानों की भूमिका दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, वंचित समुदायों को इन संस्थानों से बाहर रखना असमानता को और बढ़ाता है.
सीडब्ल्यूसी ने प्रस्ताव में कहा, ‘‘अनुच्छेद 15(5) केवल एक संवैधानिक प्रावधान नहीं है, यह सामाजिक न्याय की एक अनिवार्यता है. कांग्रेस का दृढ़ विश्वास है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ओबीसी, ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग), दलित और आदिवासी समुदायों को सार्वजनिक व निजी, दोनों ही संस्थानों में समान रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिए.''
तेलंगाना मॉडल का दिया उदाहरण
सीडब्ल्यूसी ने यह भी कहा कि तेलंगाना द्वारा अपनाया गया मॉडल एक प्रभावशाली और समावेशी ढांचा प्रस्तुत करता है, जिसे केंद्र को अवश्य अपनाना चाहिए. इसने उल्लेख किया कि तेलंगाना में, जाति सर्वेक्षण की रूपरेखा एक सलाहकार और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से तैयार की गई थी, जिसमें नागरिक संस्थाओं, सामाजिक वैज्ञानिकों और समुदाय के नेताओं की सक्रिय भागीदारी थी.
सीडब्ल्यूसी ने केंद्र सरकार से अपील की है कि राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार गणना के लिए इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई जाए.
प्रस्ताव में कहा गया है, ‘‘हम इस दिशा में एक विश्वसनीय, वैज्ञानिक और सहभागी मॉडल तैयार करने में केंद्र को पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं - ऐसा मॉडल जो परामर्श, जवाबदेही और समावेशन के मूल्यों को प्रतिबिंबित करता हो.''
सीडब्ल्यूसी ने प्रस्ताव में कहा, ‘‘यह प्रक्रिया किसी भी हालत में और विलंबित नहीं होनी चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लिया जाना चाहिए. संसद में इस विषय पर तत्काल चर्चा कराई जानी चाहिए.''
इसमें कहा गया है कि सरकार को तुरंत आवश्यक धन आवंटित करना चाहिए और जनगणना के प्रत्येक चरण — प्रश्नावली व पद्धति की तैयारी से लेकर आंकड़ों के संकलन, वर्गीकरण और अंततः उनके प्रकाशन तक — के लिए स्पष्ट समयसीमा घोषित करनी चाहिए. यह पूरी प्रक्रिया हर चरण में पारदर्शी और सहभागिता वाली होनी चाहिए.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं