कांग्रेस अरुणाचल के गवर्नर पर बीजेपी के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगा रही है
नई दिल्ली:
निगाहें बेशक अभी सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हों, लेकिन कांग्रेस अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे को राजनीतिक तौर पर भी लड़ने की पूरी तैयारी में है। सुप्रीम कोर्ट में क्या फैसला आता है, ये देखने के बाद कांग्रेस अपनी रणनीति के तहत आगे बढ़ेगी।
उसकी कोशिश सरकार के इस फैसले पर संसद में रोड़ा अटकाने की होगी। किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद संसद के दोनों सदनों से उसका अनुमोदन जरूरी होता है। लोकसभा में तो संख्याबल सरकार के साथ है, लेकिन राज्यसभा में स्थिति उलट है। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश तमाम विपक्षी पार्टियों को साथ लेकर राज्यसभा में मोर्चाबंदी की है।
(पढ़ें - अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन : केंद्र और राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस)
कांग्रेस प्रवक्ता राज बब्बर का कहना है कि अरुणाचल में सरकार गिराने के खिलाफ कांग्रेस सड़क से संसद तक लड़ेगी। उनके मुताबिक केंद्र की मोदी सरकार के निशाने पर तमाम गैर बीजेपी शासित राज्य हैं। आज कांग्रेस की सरकार गिराई गई है, कल किसी और दल की राज्य सरकार पर खतरा हो सकता है। इस तानाशाही रवैये के खिलाफ सबको एकजुट होकर मोदी सरकार को बेनकाब करने की जरूरत है।
हालांकि कांग्रेस की कोशिश कहां तक रंग ला पाएगी, ये काफी कुछ मुलायम सिंह यादव जैसे नेता के रुख पर भी निर्भर करेगा। कांग्रेस कह रही है कि अरुणाचल प्रदेश में न तो कानून-व्यवस्था खराब हुई थी और न ही भ्रष्टाचार का कोई मामला साबित हुआ था।
कांग्रेस इसे सीधे तौर पर बीजेपी की साजिश बता रही है और गवर्नर पर बीजेपी के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगा रही है। उसकी ये भी दलील है कि 21 जुलाई, 2015 को विधानसभा सत्र के स्थगन के बाद अरुणाचल विधानसभा का सत्र कांग्रेस ने 14 जनवरी, 2016 को बुलाना तय किया था। लेकिन बिना मुख्यमंत्री की सहमति के गवर्नर ने 16 दिसंबर को एक सामुदायिक भवन में विधानसभा सत्र बुलाकर अपनी सीमा का उल्लंघन किया। इन दलीलों के साथ फिलहाल कांग्रेस कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ेगी। कोर्ट से राहत मिल गई तो ठीक, नहीं तो इस कानूनी लड़ाई के बाद कांग्रेस राजनीतिक तौर पर सरकार से दो-दो हाथ करेगी।
उसकी कोशिश सरकार के इस फैसले पर संसद में रोड़ा अटकाने की होगी। किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद संसद के दोनों सदनों से उसका अनुमोदन जरूरी होता है। लोकसभा में तो संख्याबल सरकार के साथ है, लेकिन राज्यसभा में स्थिति उलट है। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश तमाम विपक्षी पार्टियों को साथ लेकर राज्यसभा में मोर्चाबंदी की है।
(पढ़ें - अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन : केंद्र और राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस)
कांग्रेस प्रवक्ता राज बब्बर का कहना है कि अरुणाचल में सरकार गिराने के खिलाफ कांग्रेस सड़क से संसद तक लड़ेगी। उनके मुताबिक केंद्र की मोदी सरकार के निशाने पर तमाम गैर बीजेपी शासित राज्य हैं। आज कांग्रेस की सरकार गिराई गई है, कल किसी और दल की राज्य सरकार पर खतरा हो सकता है। इस तानाशाही रवैये के खिलाफ सबको एकजुट होकर मोदी सरकार को बेनकाब करने की जरूरत है।
हालांकि कांग्रेस की कोशिश कहां तक रंग ला पाएगी, ये काफी कुछ मुलायम सिंह यादव जैसे नेता के रुख पर भी निर्भर करेगा। कांग्रेस कह रही है कि अरुणाचल प्रदेश में न तो कानून-व्यवस्था खराब हुई थी और न ही भ्रष्टाचार का कोई मामला साबित हुआ था।
कांग्रेस इसे सीधे तौर पर बीजेपी की साजिश बता रही है और गवर्नर पर बीजेपी के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगा रही है। उसकी ये भी दलील है कि 21 जुलाई, 2015 को विधानसभा सत्र के स्थगन के बाद अरुणाचल विधानसभा का सत्र कांग्रेस ने 14 जनवरी, 2016 को बुलाना तय किया था। लेकिन बिना मुख्यमंत्री की सहमति के गवर्नर ने 16 दिसंबर को एक सामुदायिक भवन में विधानसभा सत्र बुलाकर अपनी सीमा का उल्लंघन किया। इन दलीलों के साथ फिलहाल कांग्रेस कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ेगी। कोर्ट से राहत मिल गई तो ठीक, नहीं तो इस कानूनी लड़ाई के बाद कांग्रेस राजनीतिक तौर पर सरकार से दो-दो हाथ करेगी।
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