मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) जैसे बड़े नेता को गंवा चुकी कांग्रेस के लिए अभी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में जो घटनाक्रम हुए वे मध्य प्रदेश से बिलकुल मिलते जुलते थे. राजस्थान में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाना सचिन पायलट (Sachin Pilot) की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था. प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही सचिन पायलट ने कई मुद्दों पर सरकार को सड़क पर घेरा. वहीं कांग्रेस आलाकमान को अंदाजा था कि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान हो सकती है और इसलिए अशोक गहलोत को राजस्थान से हटाकर केंद्र की राजनीति में तैनात कर दिया गया. इसके बाद सचिन पायलट के लिए सीएम पद का रास्ता साफ दिख रहा था और उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने बीजेपी को हैरान करते हुए लोकसभा के दो उपचुनाव हरा दिए. लेकिन जब राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने हैरान करते हुए आखिर में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर दिया. हालांकि इसस पहले दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच खूब खींचतान भी हुई. हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाने का भी ऐलान किया ताकि किसी भी तरह की बगावत थामी जा सके.
सचिन पायलट अपनी ही सरकार पर उठाते हैं सवाल
मध्य प्रदेश में जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया उपेक्षा का दंश का झेल रहे थे वही भावना सचिन पायलट के बयानों में भी झलकती है. हाल ही में उन्होंने अस्पतालों में हुई बच्चों की मौत के मामले में खुली तौर पर अपनी ही सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि इसमें जिम्मेदारी होनी चाहिए. उन्होंने कहा, 'आज हम लोगों को जवाबदेही तय करनी पड़ेगी क्योंकि जब इतने कम समय में इतने सारे बच्चे मरे हैं तो कोई ना कोई कारण रहे होंगे. कमियां प्रशासनिक हैं, संसाधन, चिकित्सक,स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ की कमी थी, लापरवाही थी, आपराधिक लापरवाही थी, इन सब की रिपोर्ट बन रही है लेकिन हमें कहीं ना कहीं जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी.' उन्होंने कहा कि जिस घर में मौत होती है, जिस माता-पिता के बच्चे की जान जाती है, जिस मां की कोख उजड़ती है उसका दर्द वो ही जान सकती हैं. वहीं इससे पहले सीएम गहलोत ने सफाई दी थी कि पिछली सरकार की तुलना में इस बार मौतें कम हुई हैं. वहीं इसके अलावा एक जाति विशेष के साथ मारपीट, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर वह अपनी ही सरकार के रवैये पर सवाल उठाते रहे हैं.
जब सचिन पायलट को सीएम बनाने की फिर उठी मांग
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की राजस्थान में बड़ी हार हुई. अशोक गहलोत अपने बेटे की भी सीट नहीं बचा पाए. इसके बाद एक खेमे में फिर सचिन पायलट को सीएम बनाने की मांग उठी. विधायक पृथ्वीराज मीणा ने कहा कहा, 'सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. यह मेरी व्यक्तिगत राय है'. मीणा ने कहा कि वह यह बात पहले भी कह चुके हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हीं के कारण जीती. आपको बता दें कि हाल ही में मुख्यमंत्री गहलोत ने एक टीवी चैनल को साक्षात्कार में कहा कि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को कम से कम जोधपुर सीट पर पार्टी की हार की जिम्मेदारी तो लेनी ही चाहिए क्योंकि वह वहां शानदार जीत का दावा कर रहे थे. इसके बाद गहलोत व पायलट के समर्थन में अलग अलग बयान आ रहे हैं.
क्या बीजेपी डाल रही है पायलट पर डोरे
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर कहा कि थोड़ा इंतजार कीजिए, क्योंकि इंतजार का फल मीठा होता है. दरअसल, उनसे पूछा गया था कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर सचिन पायलट भी चलेंगे? शेखावत ने कहा कि मुझे लगता है कि अभी ऐसी बहुत सारी घटनाएं देश को देखने को मिलेंगी. ज्योतिरादित्य और सचिन ने बहुत साल साथ काम किया है. दोनों एक ही पीढ़ी के नेता हैं. दोनों वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के परिवार से आते हैं. निश्चित ही दोनों में दोस्ती और आत्मीय संबंध होंगे, लेकिन आगे क्या होगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना चाहिए, क्योंकि इंतजार का फल हमेशा मीठा होता है.
सचिन पायलट के बयान के पीछे कांग्रेस आलाकमान को नसीहत?
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से अलग होते ही सचिन पायलट ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से अलग होते देखना दुखद है. काश चीजों को पार्टी के अंदर ही साथ मिलकर सुलझा लिया गया होता.'
Unfortunate to see @JM_Scindia parting ways with @INCIndia. I wish things could have been resolved collaboratively within the party.
— Sachin Pilot (@SachinPilot) March 11, 2020
उनके इस बयान में कांग्रेस आलाकमान को नसीहत दिखाई दे रही है. जहां मिलकर सुलझाने का मतलब है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बातों को मान लेना. क्योंकि सीएम पद छोड़कर कांग्रेस सिंधिया को सब कुछ देने को तैयार थी.
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