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कांग्रेस ने निजी शैक्षणिक संस्थानों में SC/ST आरक्षण के लिए कानून बनाए जाने की मांग की, जयराम रमेश ने दिया ये तर्क

जयराम रमेश ने अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ के 10 अप्रैल 2008 के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद 15(5) को केवल सरकार द्वारा संचालित और सरकार से सहायता प्राप्त संस्थानों के लिए संवैधानिक रूप से वैध माना गया. निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण को उचित ढंग से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया है.

कांग्रेस ने निजी शैक्षणिक संस्थानों में SC/ST आरक्षण के लिए कानून बनाए जाने की मांग की, जयराम रमेश ने दिया ये तर्क
कांग्रेस नेता जयराम रमेश
नई दिल्ली:

कांग्रेस ने सोमवार को मांग की कि सरकार देश के निजी, गैर-अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण के लिए कानून लाए. कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए एक नए कानून की सिफारिश की थी.

जयराम रमेश ने क्या कुछ कहा

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15(5) सरकार को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए कानून के जरिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है. इन प्रावधान में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर सार्वजनिक और निजी दोनों शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण भी शामिल है. रमेश ने कहा कि कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान निजी शिक्षण संस्थानों में संविधान के अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए कानून लाने की प्रतिबद्धता जताई थी.

नए कानून की सिफारिश

उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल पर द्विदलीय संसदीय स्थायी समिति ने भी उच्च शिक्षा विभाग के लिए अनुदान की मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में अनुच्छेद 15 (5) को लागू करने के लिए एक नए कानून की सिफारिश की. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस मांग को दोहराती है.'' उन्होंने कहा कि संविधान (93वां संशोधन) अधिनियम 2005, 20 जनवरी 2006 से लागू हुआ था और इस संशोधन के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 15 (5) को जोड़ा गया.

रमेश ने कहा, ‘‘इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (जी) की कोई बात सरकार को किसी सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए कोई विशेष प्रावधान करने से नहीं रोकेगी, जब तक कि ऐसे विशेष प्रावधान निजी शैक्षणिक संस्थानों (सरकार द्वारा सहायता प्राप्त या बिना सहायता प्राप्त) समेत शैक्षणिक संस्थानों में उनके प्रवेश से संबंधित हों, लेकिन अनुच्छेद 30(1) में उल्लिखित अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर यह लागू नहीं होगा.''

उन्होंने अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए कानून बनाने के घटनाक्रम की व्याख्या करते हुए कहा कि केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 संसद में पारित हुआ और केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए आरक्षण तीन जनवरी 2007 से लागू हुआ.

अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ मामले का जिक्र

रमेश ने अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ के 10 अप्रैल 2008 के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद 15(5) को केवल सरकार द्वारा संचालित और सरकार से सहायता प्राप्त संस्थानों के लिए संवैधानिक रूप से वैध माना गया. निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण को उचित ढंग से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया है.

उन्होंने कहा कि आईएमए बनाम भारत संघ के 12 मई 2011 के मामले में 2-0 के अंतर से निर्णय दिया गया, जिसमें निजी गैर-सहायता प्राप्त गैर-अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद 15(5) को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया गया.रमेश ने एक अन्य मामले का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ ‘प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट' बनाम भारत संघ के 29 जनवरी 2014 के मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 5-0 के अंतर से अनुच्छेद 15(5) को पहली बार स्पष्ट रूप से बरकरार रखा. उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि निजी संस्थानों में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े नागरिकों के अन्य वर्गों के विद्यार्थियों के लिए आरक्षण संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है.''
 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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