Bihar Elections Result 2020: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Elections 2020) में कांग्रेस (Congress) के 'कमजोर' प्रदर्शन से देश की उस सबसे पुरानी पार्टी में फिर से असंतोष के सुर उभर आए हैं जो करीब चार माह पहले विरोध के तूफान के बीच खुद को किसी तरह से एकजुट रखने में कामयाब हुई थी. असंतुष्ट ग्रुप के सदस्य रहे वरिष्ठ नेताओं ने कहा, 'कांग्रेस के प्रदर्शन ने दिखाया है कि तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल और वाम पार्टियों के महागठबंधन को किस कारण 'पीछे' रहना पड़ा.'बिहार में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन केवल 19 सीट किसी तरह जीत पाई, यह आरजेडी की ओर से लड़ी 144 और इसमें से जीती 75 सीटों के एकदम विपरीत है.
यहां तक कि गठजोड़ का हिस्सा रही CPI-ML ने भी 19 सीटों पर उतरते हुए 12 सीटों पर सफलता हासिल कर ली. कांग्रेस के इस प्रदर्शन ने उसे स्ट्राइक रेट के मामले में 'फिसड्डी' साबित किया. बिहार के चुनावों को देख रहे नेताओं ने आधिकारिक तौर पर गलत टिकट वितरण, AIMIM फैक्टर और तीसरे व निर्णायक चरण में वोटों के ध्रुवीकरण को इस लचर प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार बताया है.
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कुछ अन्य ने कहा कि कांग्रेस को 13 सीटें ऐसी दी गई जिस पर वह कभी नहीं लड़ी थी. पहले दो चरणों की वोटिंग में उसका प्रदर्शन अधिक बेहतर था लेकिन तीसरे और निर्णायक चरण में वोटों का ध्रुवीकरण शुरू हो गया. उन्होंने कहा, 'कांग्रेस ने उन 26 सीटों पर भी चुनाव लड़ा जिन पर पिछले तीन दशक में अलायंस के किसी पार्टनर ने जीत हासिल नहीं की है.' हालांकि असंतुष्ट, कांग्रेस पार्टी के इस खराब प्रदर्शन के लिए कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. असंतुष्टों के एक वर्ग ने कहा, 'हमें प्रचार से बाहर रखा गया. बिहार से हमें रिपोर्ट मिल रही थी कि राज्य कांग्रेस के नेताओं को दरकिनार करते हुए अक्षम लोगों को चुनाव की बागडोर संभालने के लिए दिल्ली से भेजा गया.'
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असंतुष्टों के एक अन्य समूह ने जोर देकर कहा कि बिहार चुनाव को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए और यह मध्यप्रदेश, गुजरात और कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों के उपचुनावों के पैटर्न (खराब प्रदर्शन) का हिस्सा है. पार्टी के एकमात्र वरिष्ठ नेता जिसने बिहार में प्रचार किया, वह राहुल गांधी रहे. राहुल गांधी (Rahul Gandhi)का प्रचार पूरी तरह से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ निजी हमला करने पर केंद्रित रहा. ज्यादातर नेताओं का मानना है कि पूर्व के चुनावों में भी यह कदम भारी साबित हुआ था. यह प्रचार तेजस्वी यादव के एकदम उलट था जिन्हें मुद्दों पर आधारित प्रचार अभियान चलाया और रोजगार व भ्रष्टाचार के मसलों पर फोकस दिया. भले ही इस रणनीति के कारण गठबंधन जीत तक नहीं पहुंच पाया लेकिन इसने कुल मिलाकर अच्छा परिणाम दिया. विधानसभा चुनाव में आरजेडी इसी कारण सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि पार्टी की सीटों में वर्ष 2015 की तुलना में पांच की कमी आई.
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