
प्रतीकात्मक तस्वीर
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
आईवीएफ और सरोगेसी के एक्सपर्ट डॉक्टरों का आरोप सरकार ने यू टर्न लिया
आरोप है कि बिल सेलिब्रिटी को ध्यान में रखकर बनाया गया
कारोबारी सरोगेसी पर पाबंदी लगाने वाले बिल की कड़ी आलोचना एक खत के जरिए
इन डॉक्टरों के अखिल भारतीय संगठन इंडियन सोसायटी फॉर असिस्टेड रिप्रोडक्शन ने एक खुली चिट्ठी लिखी है जिसमें कारोबारी सरोगेसी (कमर्शियल सरोगेसी) पर पाबंदी लगाने वाले बिल की कड़ी आलोचना की गई है. इस बिल को पिछले हफ्ते कैबिनेट ने हरी झंडी दी है. इन डॉक्टरों का कहना है कि सरकार ने अपने इस अहम बिल पर साल भर से कम वक्त में ही ही यू टर्न कर लिया. उनके मुताबिक बिल का जो खाका पिछले साल जनता की राय जानने के लिये रखा गया था और जो बिल कैबिनेट ने पास किया वह बिल्कुल अलग हैं. पिछले प्रस्तावित बिल में कमर्शियल सरोगेसी का प्रावधान था और सरोगेट मां के लिये मुआवजे की बात भी थी.
अपनी दो पन्नों की खुली चिट्ठी में इंडियन सोसायटी फॉर असिस्टेड रिप्रोडक्शन ने कहा है कि सरकार यह कानून जल्दबाज़ी में लाई है और इसे वापस लिया जाना चाहिये. एकल दंपति यानी सिंगल पेरेंट को इससे वंचित करना अमानवीय है और समानता के अधिकार के खिलाफ है. इस बिल में जो प्रावधान है उसके मुताबिक, परिवार की कोई करीबी सदस्य ही सरोगेट मां हो सकती है और शादीशुदा दंपति विवाह के पांच साल बाद ही सरोगेसी के लिये अर्ज़ी दे सकते हैं. डॉक्टर इन दोनों ही बंदिशों को गलत बता रहे हैं. दिल्ली में आईवीएफ और सरोगेसी क्लिनिक चला रही डॉ शिवाली सचदेव कहती हैं, "सरकार को ऐसे बिल के बजाय वह कानून बनाना चाहिये जो एक प्रतिशत सेलिब्रिटी को देखकर नहीं बल्कि 99 प्रतिशत आम लोगों को देखकर बनाया जाए. अगर आप कहते हैं कि कि सरोगेट मदर परिवार में ही होनी चाहिये तो 99% परिवार में तो ऐसी कोई लेडी ही नहीं है जो सरोगेट मदर बन सके. हमारे पेशेन्ट आकर बोलते हैं कि अपने परिवार में गोपनीयता सबसे महत्वपूर्ण है. उसे हम कैसे छोड़ सकते हैं और अभी अगर किसी मां को सरोगेसी के लिये पैसा नहीं देंगे तो बाद में क्या कीमत चुकानी पड़ेगी."
कैबिनेट से बिल पास होने के बाद सरकार ने कहा था कि वह कोख किराये पर लेने के बाज़ार को रोकने के लिये ये प्रावधान ला रही है ताकि फर्जीवाड़ा रोका जा सके लेकिन अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या ज़रूरतमंद जोड़ों को परिवार के भीतर कोई सरोगेट मिलेगी और उन जोड़ों का क्या होगा जो अपने बच्चे की पैदायश की प्रक्रिया को गोपनीय रखना चाहते हैं? शादी के बाद 5 साल तक इंतजार के प्रावधान पर यह सवाल है कि अगर किसी की शादी देर में होती है तो 5 साल का इंतजार पूरा होते होते प्रजनन क्षमता ही खत्म हो सकती है.
पैसा देकर किसी महिला की कोख बच्चे के लिये इस्तेमाल करने के प्रावधान को तब खत्म किया गया जब यह बिल इस साल ग्रुप ऑफ मिनिस्टर को भेजा गया. आईसीएमआर की निदेशक डॉ सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं कि सरकार किसी को सरोगेसी से रोक नहीं रही है लेकिन किसी की गरीबी का फायदा उठाकर उसके शरीर का इस्तेमाल करने से रोका जा रहा है. विदेशी जोड़ों के भारत आकर सरोगेसी के नाम पर महिलाओं के इस्तेमाल की बात सामने आती रही है. "हमारे पास ऐसी मिसाल हैं जहां विदेशी जोड़े बाहर से आकर सरोगेसी के लिये भारतीय महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं. कई बार इन महिलाओं को सरोगेसी के लिये जो कीमत चुकाने की बात कही जाती है उतना पैसा बाद में नहीं मिलता और उससे काफी कम पैसा दिया जाता है. एक जापानी जोड़े ने गर्भ के दौरान ही आपस में एक दूसरे से रिश्ता तोड़ लिया और फिर उस बच्चे को किसी अनाथाश्रम में ले जाना पड़ा क्योंकि जापानी सरकार सरोगेसी को मान्यता नहीं देती."
सरोगेसी बिल को लेकर जो ग्रुप ऑफ मिनिस्टर का गठन किया गया उसकी प्रमुख विदेश मंत्री सुषमा स्वराज थी और उसमें स्वास्थ्य मंत्री के अलावा वाणिज्य राज्य मंत्री भी थे. लेकिन ताजुब्ब इस बात को लेकर भी है कि महत्वपूर्ण महिला और बाल कल्याण मंत्री इस ग्रुप की सदस्य नहीं थी. पत्रकारों के सवाल पूछे जाने पर महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी का कहना था, "मैं इस मामले में कोई कमेंट नहीं करूंगी. मुझसे इस बिल पर परामर्श नहीं किया गया."
हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र में इस बिल को किसी एक सदन में पेश कर स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया जायेगा. फिर स्टैंडिंग कमेटी तमाम पक्षों से वार्ता कर बिल में संशोधन सुझायेगी. यानी बिल की राह लंबी और कठिन है लेकिन सरकार यह भी कह चुकी है कि कमर्शियल सरोगेसी के प्रावधान पर वह बहुत समझोता नहीं करेगी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
Commercial Surrogacy, कर्मशियल सरोगेसी, सरोगेसी, सरोगेसी बिल, Surrogacy Bill 2016, Surrogacy Bill In Parliament