जलवायु परिवर्तन (Climate Change) भारतीय कृषि क्षेत्र (Agriculture) पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. तेजी से बदलती जलवायु परिस्थितियों के प्रति किसानों की धारणा और अनुकूलन को इन प्रतिकूलताओं से निपटने के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत उपाय माना जाता है. कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर देश के सबसे बड़े कृषि अनुसंधान संस्थान 'इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट' के डायरेक्टर और कृषि वैज्ञानिक अशोक कुमार सिंह ने NDTV से एक्सक्लूसिव बातचीत की है. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि 1990-2010 के बीच तापमान के औसत ट्रेंड के हिसाब से साल 2040 तक गेहूं उगाने के सीजन के दौरान 1 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो सकती है.
'इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट' के डायरेक्टर अशोक कुमार सिंह ने कहा, "अगर तापमान 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तो इससे 5% तक गेहूं की पैदावार में कमी होगी. अगर किसानों ने इस दौरान जलवायु अनुकूलन (Climate Adaptation) तकनीक और जलवायु लचीली कृषि (Climate Resilient Agriculture) को अपनाया तो गेहूं की पैदावार 10% से 15% तक बढ़ भी सकती है.
पहले फरवरी में गेहूं की फसल पर औसत से अधिक तापमान के असर को लेकर चिंता फिर मार्च में बारिश और ओलावृष्टि...मौसम में हो रहे बदलाव से किसान डरे हुए हैं. मोदीनगर के गदाना गांव के किसान महेंद्र सिंह ने इस साल रबी सीजन में अपने इस 1 एकड़ की जमीन में गेहूं की बुवाई की. मार्च के तीसरे हफ्ते में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में उनकी लगभग तैयार गेहूं की आधी से अधिक फसल बर्बाद हो गई.
मौसम में हो रहे बदलाव ने महेंद्र सिंह को डरा दिया है. अप्रैल में हीटवेव (Heat Wave) के बाद अब खरीफ़ सीजन आने वाला है. महेंद्र सिंह ने NDTV से कहा, "12 मन (40 किलो) गेहूं की पैदावार होनी चाहिए थी, लेकिन बारिश में फसल खराब होने से सिर्फ 6 मन ही निकला. मौसम में बदलाव से खेती करना मुश्किल हो रहा है. पता नहीं खरीफ सीजन में क्या होगा?".
महेंद्र सिंह के खेत से कुछ ही दूरी पर श्यामुद्दीन तैयार गेहूं की फसल की कटाई कर रहे हैं. इस खेत की भी आधी गेहूं की फसल मार्च की बारिश और ओलावृष्टि में बर्बाद हो गई थी. अब गेहूं की पैदावार उम्मीद की आधी रह गई है. श्यामुद्दीन कहते हैं, "50 मन (40 किलो) गेहूं की पैदावार की उम्मीद थी, लेकिन बारिश में फसल खराब होने से करीब 25 मन ही गेहूं निकल सकेगा".
कृषि वैज्ञानिक अशोक कुमार सिंह ने एनडीटीवी से कहा- "मार्च में देश के कुछ राज्यों में ओलावृष्टि की वजह से गेहूं की फसल गिरी जरूर, लेकिन बारिश की वजह से मौसम गेहूं की फसल के लिए कुल मिलकर अनुकूल रहा."
उनके मुताबिक, 2022 में 25 से 28 मार्च के बीच तापमान ज्यादा बढ़ने से गेहूं की पैदावार 10.77 करोड़ टन रही थी, लेकिन 2023 में गेहूं की फसल करीब 5% बढ़कर रिकॉर्ड 11.21 करोड़ टन रहने का अनुमान है. हालांकि, अशोक सिंह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर आने वाले करीब दो दशक के अंदर गेहूं की पैदावार पर पड़ सकता है, क्योंकि इस दौरान गेहूं के सीजन के दौरान तापमान में बढ़ोतरी का अनुमान है.
अशोक के सिंह ने कहा, "1990-2010 के बीच तापमान के औसत ट्रेंड के हिसाब से साल 2040 तक गेहूं उगाने के सीजन के दौरान 1 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो सकती है. अगर तापमान 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो इससे 5% तक गेहूं की पैदावार में कमी होगी. लेकिन अगर इस दौरान मौसम में परिवर्तन से निपटने के लिए जलवायु अनुकूलन तकनीक और जलवायु लचीली कृषि को अपनाया गया, तो गेहूं की पैदावार 10% से 15% तक बढ़ भी सकती है".
फिलहाल इस साल फरवरी से अप्रैल के बीच मौसम में बदलाव से किसान मुश्किल में हैं...खेती के मोर्चे पर अनिश्चितता भी बढ़ती जा रही है और इससे निपटने की चुनौती भी. मौसम में हो रहे बदलाव को लेकर किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है. उन्हें आशंका है कि अगर आने वाले मानसून सीजन के दौरान मौसम में बदलाव का ट्रेंड बना रहा तो इसका असर अहम खरीफ फसलों की पैदावार पर पड़ेगा.
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